लातेहार: जिले में आदिम जनजातियों को सुविधा देने के नाम पर सरकार बड़ी-बड़ी बातें तो करती है लेकिन धरातल पर इसकी सच्चाई कुछ और ही है. जिसका जीता जागता उदाहरण लातेहार के ओरवाई गांव में देखा गया. इस गांव के रहने वाले दो आदिम जनजाति समूह जो कि सरकारी मदद से पूरी तरह वंचित है, और दाने-दाने को मोहताज हो गये हैं.
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नहीं मिलता आदिम जनजाति पेंशन
लातेहार सदर प्रखंड के तरवाडीह पंचायत के ओरवाई गांव पहाड़ की तलहटी में बसा हुआ गांव है. जहां आदिम जनजाति समूह के लोग बड़े पैमाने पर निवास करते हैं. इसी गांव में रामवृक्ष परहिया, चनकी परहीन के अलावे कई ऐसे ग्रामीण हैं. जिनके पास न तो राशन कार्ड है और ना ही इन्हें सामाजिक सुरक्षा का पेंशन ही दिया जाता है.रामवृक्ष ने बताया कि उसे ना तो राशन मिलता है और ना ही आदिम जनजाति पेंशन. किसी प्रकार मजदूरी कर वह अपना परिवार चलाता था. परंतु लॉकडाउन की स्थिति में वर्तमान में मजदूरी भी नहीं मिलने से वह दाने-दाने को मोहताज हो गया है.
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दातून बेचकर कर रहे गुजारा
इस गांव के कई आदिम जनजाति परिवारों के पास आज तक कोई सरकारी सुविधा नहीं पहुंच पाई है. सरकार ने प्रत्येक जरूरतमंद परिवारों को 10 किलो चावल भी उपलब्ध कराने का आदेश है, परंतु उस आदेश का भी इस गांव के गरीब परिवारों को कोई लाभ नहीं मिल पाया है. राशन के अभाव में ग्रामीणों की स्थिति काफी दयनीय हो गई है. ग्रामीण महिला चनकी ने बताया कि दातुन आदि बेचकर वे लोग अपना जीवन यापन करते थे. परंतु वर्तमान में वह भूखे मरने की कगार पर पहुंच गए हैं.
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राशन पहुंचाने में असफल रहा प्रशासन
सुदूरवर्ती क्षेत्रों में रहने वाले गरीबों की मदद करने के लिए राशन पहुंचाने में सरकार पूरी तरह असफल साबित हो रही है. जिसके कारण उन्हें विकट परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है.ऐसे में जरूरत इस बात की है कि ऐसे सुदूरवर्ती क्षेत्रों में रहने वाले गरीबों को इस विकट परिस्थिति में अनिवार्य रूप से मदद पहुंचाई जाए.