लातेहारः उड़ान पंखों से नहीं, बल्कि हौसलों से होती है. इस कहवात को पिंटू उरांव ने चरितार्थ कर दिखाया है. 27 वर्षीय पिंटू उरांव का कद 3 फीट से भी कम है. लेकिन उनके हौसले पहाड़ों से भी ऊंचे हैं. पिंटू अपने कला के बल पर अलग पहचान (Pintu Oraon made identity on strength of art) बना ली है. लातेहार में रंगमंच के कलाकारों की बात आती है तो पिंटू का नाम सबसे पहले लिया जाता है.
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पिंटू उरांव चंदवा प्रखंड के छाता सिमर गांव के रहने वाले हैं. 3 फीट से भी कम कद के होने के बावजूद पिंटू उराव अपनी कला के बदौलत जिले में अलग पहचान बना ली है. पिंटू अपनी कला का उपयोग मुख्य रूप से सरकारी योजनाओं के प्रचार प्रसार को लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में आयोजित कार्यक्रमों में करते हैं. हालांकि गांव में आयोजित नुक्कड़ नाटक में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं और ग्रामीणों का खूब मनोरंजन करते हैं. इसी कारण पिंटू की पहचान आज उनके छोटे कद के कारण नहीं, बल्कि उनके उत्कृष्ट कला के कारण होती है.
पिंटू को शुरुआती दिनों में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा. छोटा कद काठी होने के कारण लोग उनका मजाक करते थे. इस स्थिति में पिंटू थक हार कर सर्कस में काम करने चले गए. सर्कस में जोकर के रूप में काम शुरू किया. लेकिन वहां सर्कस वाले ना तो उनका सम्मान करते थे और ना ही ठीक से पैसे ही देते थे. लगातार हो रहे आर्थिक और मानसिक शोषण से परेशान होकर पिंटू वापस गांव लौट आए.
गांव वापस लौटने के बाद पिंटू एक कला जत्था के साथ जुड़े और नुक्कड़ नाटक के सहारे ग्रामीणों को जागरूक करने लगे. पिंटू के कारण ग्रामीणों की भीड़ नुक्कड़ नाटक में जुटने लगी. धीरे-धीरे पिंटू एक प्रसिद्ध कलाकार के रूप में चर्चित होने लगे और उन्होंने खुद ही एक कलाकारों की टीम बना ली. पिंटू के नेतृत्व में कला जत्था की टीम रंगमंच के माध्यम से लोगों को सरकारी योजनाओं के प्रति जागरूक करने में लग गए. पिंटू कहते हैं कि अपने जीवन से कोई शिकवा शिकायत नहीं है. ईश्वर जिस रूप में बनाया है, उसमें खुश हैं. उन्होंने कहा कि समाज के सभी लोगों को हमेशा आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए. हताशा हमेशा ही मार्ग को रोकता है. हालांकि, पिंटू यह भी कहते हैं कि झारखंड सरकार जिस प्रकार अन्य लोगों के लिए योजनाएं बनाई है, उसी प्रकार कलाकारों के लिए भी योजना बनाएं.
पिंटू उरांव के साथ काम करने वाले साथी कलाकार भी उनके जज्बे को सलाम करते हैं. पिंटू के सहकर्मी महेश लोहरा कहते हैं कि जितना अच्छा प्रदर्शन पिंटू कर लेते है, उतना तो सामान्य लोग भी नहीं कर पाते. पिंटू के कारण ग्रामीणों की भीड़ अधिक जुटती है, जिससे सरकारी योजनाओं के संबंध में जानकारी देने और समझाने में आसानी होती है.
पिंटू के कला का कद्रदान सिर्फ ग्रामीण और उनके सहकर्मी ही नहीं, बल्कि सरकारी पदाधिकारी भी हैं. लातेहार एसडीएम शेखर कुमार कहते हैं कि पिंटू उरांव ने जिस प्रकार विपरीत परिस्थितियों के बावजूद अपने कला के बल पर समाज में पहचान बनाई है, वह वाकई काबिले तारीफ है.