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प्लास्टिक ने बंद किया पत्ते का बाजार, बढ़ीं बीमारियां बेरोजगारी से हुए लाचार - खतरनाक है प्लास्टिक का उपयोग

एक वक्त था जब लोग किसी भी सार्वजनिक समारोह में पत्ते की थाली का इस्तेमाल करते थे. लेकिन बदलते वक्त ने पत्ते की थाली और दोना की जगह प्लास्टिक के प्लेट ने ले ली. इससे एक तरफ लोगों की सेहत और प्रकृति का नुकसान हो रहा है तो वहीं, दूसरी तरफ पत्ते का कारोबार पूरी तरह से खत्म हो गया. जिससे कई लोग बेरोजगार हो गए.

people are using plastic plates
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Published : May 17, 2022, 4:21 PM IST

Updated : May 17, 2022, 5:39 PM IST

लातेहार: जंगलों से घिरा लातेहार जिले में कभी पत्तों से बने थाली और दोना का प्रचलन चरम पर रहता था. लेकिन आधुनिकता की चकाचौंध में जहरीले प्लास्टिक ने पत्तों की थाली के इस व्यवसाय को पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया है. जहां प्लास्टिक के उपयोग से लोगों में तरह-तरह की बीमारियों का खतरा रहता है वहीं, पत्तों के व्यवसाय से जुड़े लोगों के समक्ष आर्थिक समस्या भी खड़ी हो गई है.

ये भी पढ़ें: चतरा: प्रकृति संवार रही जीवन, महिलाएं पलाश के पत्तों से बना रहीं पत्तल पर कम दाम का संकट

दरअसल, लातेहार जिला पूरी तरह जंगल से घिरे जिला है. यहां के जंगलों में बड़ी संख्या में सखुआ के पेड़ पाए जाते हैं. ऐसे में पेड़ के पत्तों से थाली बनाकर खरीद बिक्री करने का व्यवसाय यहां चरम पर होता था. किसी भी धार्मिक या पारिवारिक कार्यक्रम होने पर लोग इसी पत्तों से बने थाली का उपयोग किया करते थे. वैवाहिक कार्यक्रम या श्राद्ध कर्म के लिए तो हरे भरे पत्तों से बनी थाली और दोना का प्रयोग होता था. पत्तों से बनी थाली की मांग रहने के कारण इस व्यवसाय से कई परिवारों का जीविकोपार्जन भी आसानी से चल जाता था. लेकिन धीरे-धीरे पत्तों से बनी थाली का स्थान प्लास्टिक से बने थाली का इस्तेमाल होने लगा है. वर्तमान स्थिति यह हो गई है कि पत्तों से बना थाली का व्यवसाय अब मात्र परंपरा तक सिमट कर रह गया है.

देखें वीडियो



काफी कम हो गई मांग: पत्तों के व्यवसाय से जुड़ी महिला सुगनी देवी ने कहा कि वह पिछले कई वर्षों से पत्ता से थाली बनाने का काम कर रही हैं. पहले तो इसकी अच्छी खासी मांग होती थी, परंतु अब काफी कम लोग इसकी मांग करते हैं. उन्होंने कहा कि अब इस व्यवसाय में ज्यादा फायदा भी नहीं है. वहीं, स्थानीय व्यवसाय दुर्गा प्रसाद का कहना है कि अब लोग प्लास्टिक से बने रेडीमेड थाली और ग्लास का ही उपयोग अधिक करते हैं. हरे पत्तों से बने थाली की मांग अब काफी कम हो गई है. इसीलिए वे लोग अब रेडीमेड थाली और ग्लास को ही दुकान में रखते हैं.



काफी खतरनाक है प्लास्टिक का उपयोग: हरे पत्तों से बनी थाली के बदले प्लास्टिक से बनी थाली का प्रचलन बढ़ने पर स्थानीय चिकित्सकों ने भी गहरी चिंता जताई है. लातेहार सिविल सर्जन डॉक्टर हरेन चंद्र महतो ने कहा कि प्लास्टिक के बर्तन में खाना खाने से लोगों को कई प्रकार की बीमारियां हो सकती है. उन्होंने कहा कि प्लास्टिक में कई खतरनाक कार्बनिक पदार्थ होते हैं, जो भोजन में मिलकर जहर के समान शरीर को नुकसान पहुंचाते हैं. अगर प्लास्टिक में गर्म भोजन का उपयोग किया जाता है तो यह और भी खतरनाक हो जाता है. उन्होंने कहा कि प्लास्टिक में खाना खाना बच्चों, महिलाओं, गर्भवती महिलाओं के लिए तो इतना खतरनाक है जिसकी व्याख्या नहीं की जा सकती. उन्होंने कहा कि प्लास्टिक के बर्तन में कभी भी खाना नहीं खाना चाहिए.

पत्तों से बनी थाली के व्यवसाय को दिया जाएगा बढ़ावा: इधर इस संबंध में लातेहार उपायुक्त अबु इमरान ने कहा कि प्लास्टिक का उपयोग समाज के लिए काफी खतरनाक है. ऐसे में लोगों को प्लास्टिक की थाली के बदले हरे पत्तों से बनी थाली का उपयोग करना चाहिए. उन्होंने कहा कि लातेहार जिला प्रशासन जिले के सभी पर्यटन स्थलों पर प्लास्टिक को प्रतिबंधित किया है. उन्होंने कहा कि पर्यटन स्थलों पर हरे पत्तों से बने थाली या कागज से बने प्लेट का ही उपयोग किया जाएगा. उपायुक्त ने कहा कि पत्तों के व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिए जिला प्रशासन तत्पर है. जिला मुख्यालय में खोले जा रहे पलाश मार्च में पत्ता व्यवसाय से जुड़ी महिलाओं को स्थान दिया जाएगा. इसके अलावे इन महिलाओं के व्यवसाय को ई-कॉमर्स के माध्यम से भी बढ़ावा देने की योजना जिला प्रशासन बनाएगी.

लातेहार: जंगलों से घिरा लातेहार जिले में कभी पत्तों से बने थाली और दोना का प्रचलन चरम पर रहता था. लेकिन आधुनिकता की चकाचौंध में जहरीले प्लास्टिक ने पत्तों की थाली के इस व्यवसाय को पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया है. जहां प्लास्टिक के उपयोग से लोगों में तरह-तरह की बीमारियों का खतरा रहता है वहीं, पत्तों के व्यवसाय से जुड़े लोगों के समक्ष आर्थिक समस्या भी खड़ी हो गई है.

ये भी पढ़ें: चतरा: प्रकृति संवार रही जीवन, महिलाएं पलाश के पत्तों से बना रहीं पत्तल पर कम दाम का संकट

दरअसल, लातेहार जिला पूरी तरह जंगल से घिरे जिला है. यहां के जंगलों में बड़ी संख्या में सखुआ के पेड़ पाए जाते हैं. ऐसे में पेड़ के पत्तों से थाली बनाकर खरीद बिक्री करने का व्यवसाय यहां चरम पर होता था. किसी भी धार्मिक या पारिवारिक कार्यक्रम होने पर लोग इसी पत्तों से बने थाली का उपयोग किया करते थे. वैवाहिक कार्यक्रम या श्राद्ध कर्म के लिए तो हरे भरे पत्तों से बनी थाली और दोना का प्रयोग होता था. पत्तों से बनी थाली की मांग रहने के कारण इस व्यवसाय से कई परिवारों का जीविकोपार्जन भी आसानी से चल जाता था. लेकिन धीरे-धीरे पत्तों से बनी थाली का स्थान प्लास्टिक से बने थाली का इस्तेमाल होने लगा है. वर्तमान स्थिति यह हो गई है कि पत्तों से बना थाली का व्यवसाय अब मात्र परंपरा तक सिमट कर रह गया है.

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काफी कम हो गई मांग: पत्तों के व्यवसाय से जुड़ी महिला सुगनी देवी ने कहा कि वह पिछले कई वर्षों से पत्ता से थाली बनाने का काम कर रही हैं. पहले तो इसकी अच्छी खासी मांग होती थी, परंतु अब काफी कम लोग इसकी मांग करते हैं. उन्होंने कहा कि अब इस व्यवसाय में ज्यादा फायदा भी नहीं है. वहीं, स्थानीय व्यवसाय दुर्गा प्रसाद का कहना है कि अब लोग प्लास्टिक से बने रेडीमेड थाली और ग्लास का ही उपयोग अधिक करते हैं. हरे पत्तों से बने थाली की मांग अब काफी कम हो गई है. इसीलिए वे लोग अब रेडीमेड थाली और ग्लास को ही दुकान में रखते हैं.



काफी खतरनाक है प्लास्टिक का उपयोग: हरे पत्तों से बनी थाली के बदले प्लास्टिक से बनी थाली का प्रचलन बढ़ने पर स्थानीय चिकित्सकों ने भी गहरी चिंता जताई है. लातेहार सिविल सर्जन डॉक्टर हरेन चंद्र महतो ने कहा कि प्लास्टिक के बर्तन में खाना खाने से लोगों को कई प्रकार की बीमारियां हो सकती है. उन्होंने कहा कि प्लास्टिक में कई खतरनाक कार्बनिक पदार्थ होते हैं, जो भोजन में मिलकर जहर के समान शरीर को नुकसान पहुंचाते हैं. अगर प्लास्टिक में गर्म भोजन का उपयोग किया जाता है तो यह और भी खतरनाक हो जाता है. उन्होंने कहा कि प्लास्टिक में खाना खाना बच्चों, महिलाओं, गर्भवती महिलाओं के लिए तो इतना खतरनाक है जिसकी व्याख्या नहीं की जा सकती. उन्होंने कहा कि प्लास्टिक के बर्तन में कभी भी खाना नहीं खाना चाहिए.

पत्तों से बनी थाली के व्यवसाय को दिया जाएगा बढ़ावा: इधर इस संबंध में लातेहार उपायुक्त अबु इमरान ने कहा कि प्लास्टिक का उपयोग समाज के लिए काफी खतरनाक है. ऐसे में लोगों को प्लास्टिक की थाली के बदले हरे पत्तों से बनी थाली का उपयोग करना चाहिए. उन्होंने कहा कि लातेहार जिला प्रशासन जिले के सभी पर्यटन स्थलों पर प्लास्टिक को प्रतिबंधित किया है. उन्होंने कहा कि पर्यटन स्थलों पर हरे पत्तों से बने थाली या कागज से बने प्लेट का ही उपयोग किया जाएगा. उपायुक्त ने कहा कि पत्तों के व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिए जिला प्रशासन तत्पर है. जिला मुख्यालय में खोले जा रहे पलाश मार्च में पत्ता व्यवसाय से जुड़ी महिलाओं को स्थान दिया जाएगा. इसके अलावे इन महिलाओं के व्यवसाय को ई-कॉमर्स के माध्यम से भी बढ़ावा देने की योजना जिला प्रशासन बनाएगी.

Last Updated : May 17, 2022, 5:39 PM IST
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