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चट्टानी इरादों से बदली मेड और मैड की पहचान! जानिए, कौन है स्मिता और क्या है उसकी कहानी

कहते हैं मन के हारे हार है, मन के जीते जीत. यह साबित किया है लातेहार की दिव्यांग स्मिता ने. कभी मेड और मैड नाम से पहचानी जाने वाली स्मिता, आज पैरा पावर लिफ्टर स्मिता के नाम से जानी और पहचानी जाती हैं. स्पेशल पैरालंपिक में पावर लिफ्टिंग कर स्मिता ने तीन कांस्य पदक जीते और देश में अपनी अलग पहचान बनाई है. ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट में जानिए, स्मिता के बुलंद हौसले की बुलंद कहानी.

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लातेहार
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Published : Apr 25, 2022, 3:49 PM IST

Updated : Apr 25, 2022, 4:12 PM IST

लातेहारः कहा जाता है कि प्रतिभा और बुलंद हौसला हो तो किसी भी इंसान को मंजिल पाने से कोई रोक नहीं सकता है. इस कहावत को चरितार्थ किया है लातेहार की स्मिता ने. स्मिता ने अपने बुलंद हौसलों की बदौलत घरेलू नौकरानी और मंदबुद्धि यानी कि Maid और Mad की पहचान को बदलते हुए आज देश की पहचान बन गई है. अबूधाबी में आयोजित स्पेशल पैरालंपिक में पावर लिफ्टिंग कर स्मिता ने तीन कांस्य पदक जीते और समाज को यह सबक सिखाया कि किसी भी इंसान की कमियों को देख उसको कमतर न आंके, पता नहीं उसमें कौन सी खूबी हो जिसकी आप चाहकर भी बराबरी न कर पाएं.

इसे भी पढ़ें- हादसों के बाद भी हार न मानने वाले पैरास्विमर्स कर रहे ओलंपिक की तैयारी



लातेहार की दिव्यांग स्मिता की कहानी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है. अत्यंत गरीब परिवार में जन्मी स्मिता का बचपन काफी मुश्किलों और तनाव में गुजरा. स्मिता का मानसिक विकास आम बच्चों के अपेक्षा काफी कम थी. ऐसे में स्मिता को पालना उसके गरीब मां-बाप के लिए मुसीबत बन गयी. इसी बीच वर्ष 2013 में स्मिता के पिता कालेश्वर लोहरा ने स्मिता को गांव के ही कुछ लोगों के साथ घरेलू नौकरानी के रूप में कार्य करने के लिए दिल्ली भेज दिया. स्मिता को एक घर में नौकरानी के रूप में काम पर भी लगा दिया गया.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

अचानक जिंदगी ने ली करवटः एक दिन स्मिता सब्जी लेने के लिए बाजार गई थी, जहां वो खो गई. स्मिता की मानसिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह अपने घर और पता की जानकारी किसी दूसरे को दे सके. ऐसे में स्थानीय प्रशासन की मदद से स्मिता को आशा किरण नामक संस्था को सौंप दिया गया. स्मिता की मानसिक स्थिति को देखते हुए संस्था के द्वारा उसका इलाज भी करवाया गया. इसी बीच संस्था के लोगों ने नोटिस किया कि स्मिता भारी वजन को भी आसानी से उठा लेती है.

इसके बाद संस्था के द्वारा स्मिता के हुनर को निखारने का कार्य आरंभ किया गया और उसे पावर लिफ्टिंग की ट्रेनिंग आरंभ करवाई गयी. लगभग 6 वर्षों की कड़ी मेहनत और सही प्रशिक्षण के कारण स्मिता का चयन अबूधाबी में आयोजित स्पेशल पैरालंपिक के लिए हुआ. वर्ष 2019 में स्मिता देश का प्रतिनिधित्व करते हुए अबूधाबी गईं और वहां पावर लिफ्टिंग प्रतियोगिता में तीन कांस्य पदक जीतकर देश का नाम रोशन किया.

disable powerlifter Smita return home after 10 years in Latehar
मेडल और प्रमाण पत्र के साथ पैरा पावर लिफ्टर स्मिता

पहचान मिली तो पता भी मिलाः स्मिता की इस सफलता के बाद उसके घर और परिवार का पता लगाने का कार्य तेज कर दिया गया. इसी बीच स्मिता की दिमागी हालत भी काफी सुधर गई थी और वह अपने घर के बारे में कुछ कुछ बताने लगी. स्मिता के द्वारा बालूमाथ का नाम लिया जाता था. जानकारी मिलने के बाद मिनिस्ट्री ऑफ सोशल वेलफेयर ने लातेहार डीसी अबु इमरान से संपर्क कर स्मिता के माता पिता की जानकारी ली. छानबीन में पता चला कि स्मिता लातेहार के बालूमाथ प्रखंड के एक छोटे से गांव हेमपुर की रहने वाली है. इसके बाद स्मिता के माता-पिता को दिल्ली भेजकर उसके माता-पिता को सौंपा गया.

इसे भी पढ़ें- World Disabilities Day 2021: साहिबगंज में दिव्यांग बने प्रेरणास्रोत, आत्मनिर्भर होकर चला रहे हैं परिवार

पहचान बदलकर लौटी गांवः जिस स्मिता को लगभग 10 साल पहले गांव के लोग मंदबुद्धि कहते थे, वही स्मिता 10 साल बाद अपनी पहचान बदलकर गांव वापस लौटी है. स्मिता को लातेहार जिला प्रशासन के द्वारा सभी प्रकार की सुविधा मुहैया कराने की बात कही गई है. उपायुक्त ने स्मिता और उसके परिजनों को अपने कार्यालय कक्ष में बुलाकर बातचीत की और उन्हें सम्मानित भी किया. डीसी ने कहा कि स्मिता को आगे बढ़ने के लिए पूरा माहौल उपलब्ध कराया जाएगा. जिला खेल पदाधिकारी शिवेंद कुमार सिंह ने कहा कि स्मिता ने लातेहार के साथ-साथ देश का नाम रोशन किया है. स्मिता को आगे बढ़ाने के लिए स्टेट पावर लिफ्टिंग एसोसिएशन (State Power Lifting Association) से बात की जा रही है.

disable powerlifter Smita return home after 10 years in Latehar
दिव्यांग स्मित को डीसी ने किया सम्मानित

परिजनों में खुशी की लहरः 10 साल पहले परिजनों से खो गई स्मिता के वापस लौटने और उसकी उपलब्धि से परिजन भी काफी खुश हैं. स्मिता के चाचा ने बताया कि प्रशासन की पहल पर वो लोग दिल्ली जाकर स्मिता को घर ले आए हैं. प्रशासनिक अधिकारी आश्वस्त किए हैं कि स्मिता को आगे बढ़ाने में पूरी मदद करेंगे. स्मिता की कहानी और उसकी सफलता लोगों के लिए प्रेरणा है. घरेलू नौकरानी और मानसिक बीमार लड़की के रूप में पहचाने जाने वाली स्मिता अपनी मेहनत से एक सफल खिलाड़ी बन कर गांव लौटी है. स्मिता की जीवनी यह बताती है कि जीवन में कभी हार नहीं मानना चाहिए. परिस्थितियां जैसी भी हो सफलता के लिए रास्ता मिल ही जाता है.

लातेहारः कहा जाता है कि प्रतिभा और बुलंद हौसला हो तो किसी भी इंसान को मंजिल पाने से कोई रोक नहीं सकता है. इस कहावत को चरितार्थ किया है लातेहार की स्मिता ने. स्मिता ने अपने बुलंद हौसलों की बदौलत घरेलू नौकरानी और मंदबुद्धि यानी कि Maid और Mad की पहचान को बदलते हुए आज देश की पहचान बन गई है. अबूधाबी में आयोजित स्पेशल पैरालंपिक में पावर लिफ्टिंग कर स्मिता ने तीन कांस्य पदक जीते और समाज को यह सबक सिखाया कि किसी भी इंसान की कमियों को देख उसको कमतर न आंके, पता नहीं उसमें कौन सी खूबी हो जिसकी आप चाहकर भी बराबरी न कर पाएं.

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लातेहार की दिव्यांग स्मिता की कहानी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है. अत्यंत गरीब परिवार में जन्मी स्मिता का बचपन काफी मुश्किलों और तनाव में गुजरा. स्मिता का मानसिक विकास आम बच्चों के अपेक्षा काफी कम थी. ऐसे में स्मिता को पालना उसके गरीब मां-बाप के लिए मुसीबत बन गयी. इसी बीच वर्ष 2013 में स्मिता के पिता कालेश्वर लोहरा ने स्मिता को गांव के ही कुछ लोगों के साथ घरेलू नौकरानी के रूप में कार्य करने के लिए दिल्ली भेज दिया. स्मिता को एक घर में नौकरानी के रूप में काम पर भी लगा दिया गया.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

अचानक जिंदगी ने ली करवटः एक दिन स्मिता सब्जी लेने के लिए बाजार गई थी, जहां वो खो गई. स्मिता की मानसिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह अपने घर और पता की जानकारी किसी दूसरे को दे सके. ऐसे में स्थानीय प्रशासन की मदद से स्मिता को आशा किरण नामक संस्था को सौंप दिया गया. स्मिता की मानसिक स्थिति को देखते हुए संस्था के द्वारा उसका इलाज भी करवाया गया. इसी बीच संस्था के लोगों ने नोटिस किया कि स्मिता भारी वजन को भी आसानी से उठा लेती है.

इसके बाद संस्था के द्वारा स्मिता के हुनर को निखारने का कार्य आरंभ किया गया और उसे पावर लिफ्टिंग की ट्रेनिंग आरंभ करवाई गयी. लगभग 6 वर्षों की कड़ी मेहनत और सही प्रशिक्षण के कारण स्मिता का चयन अबूधाबी में आयोजित स्पेशल पैरालंपिक के लिए हुआ. वर्ष 2019 में स्मिता देश का प्रतिनिधित्व करते हुए अबूधाबी गईं और वहां पावर लिफ्टिंग प्रतियोगिता में तीन कांस्य पदक जीतकर देश का नाम रोशन किया.

disable powerlifter Smita return home after 10 years in Latehar
मेडल और प्रमाण पत्र के साथ पैरा पावर लिफ्टर स्मिता

पहचान मिली तो पता भी मिलाः स्मिता की इस सफलता के बाद उसके घर और परिवार का पता लगाने का कार्य तेज कर दिया गया. इसी बीच स्मिता की दिमागी हालत भी काफी सुधर गई थी और वह अपने घर के बारे में कुछ कुछ बताने लगी. स्मिता के द्वारा बालूमाथ का नाम लिया जाता था. जानकारी मिलने के बाद मिनिस्ट्री ऑफ सोशल वेलफेयर ने लातेहार डीसी अबु इमरान से संपर्क कर स्मिता के माता पिता की जानकारी ली. छानबीन में पता चला कि स्मिता लातेहार के बालूमाथ प्रखंड के एक छोटे से गांव हेमपुर की रहने वाली है. इसके बाद स्मिता के माता-पिता को दिल्ली भेजकर उसके माता-पिता को सौंपा गया.

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पहचान बदलकर लौटी गांवः जिस स्मिता को लगभग 10 साल पहले गांव के लोग मंदबुद्धि कहते थे, वही स्मिता 10 साल बाद अपनी पहचान बदलकर गांव वापस लौटी है. स्मिता को लातेहार जिला प्रशासन के द्वारा सभी प्रकार की सुविधा मुहैया कराने की बात कही गई है. उपायुक्त ने स्मिता और उसके परिजनों को अपने कार्यालय कक्ष में बुलाकर बातचीत की और उन्हें सम्मानित भी किया. डीसी ने कहा कि स्मिता को आगे बढ़ने के लिए पूरा माहौल उपलब्ध कराया जाएगा. जिला खेल पदाधिकारी शिवेंद कुमार सिंह ने कहा कि स्मिता ने लातेहार के साथ-साथ देश का नाम रोशन किया है. स्मिता को आगे बढ़ाने के लिए स्टेट पावर लिफ्टिंग एसोसिएशन (State Power Lifting Association) से बात की जा रही है.

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दिव्यांग स्मित को डीसी ने किया सम्मानित

परिजनों में खुशी की लहरः 10 साल पहले परिजनों से खो गई स्मिता के वापस लौटने और उसकी उपलब्धि से परिजन भी काफी खुश हैं. स्मिता के चाचा ने बताया कि प्रशासन की पहल पर वो लोग दिल्ली जाकर स्मिता को घर ले आए हैं. प्रशासनिक अधिकारी आश्वस्त किए हैं कि स्मिता को आगे बढ़ाने में पूरी मदद करेंगे. स्मिता की कहानी और उसकी सफलता लोगों के लिए प्रेरणा है. घरेलू नौकरानी और मानसिक बीमार लड़की के रूप में पहचाने जाने वाली स्मिता अपनी मेहनत से एक सफल खिलाड़ी बन कर गांव लौटी है. स्मिता की जीवनी यह बताती है कि जीवन में कभी हार नहीं मानना चाहिए. परिस्थितियां जैसी भी हो सफलता के लिए रास्ता मिल ही जाता है.

Last Updated : Apr 25, 2022, 4:12 PM IST
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