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लातेहार में बदलने लगा खेती का स्वरूप, पारंपरिक खेती के बदले वैकल्पिक खेती पर किसानों का फोकस

लातेहार रेन शैडो एरिया के रूप में जाना जाता है, इसलिए यहां के किसानों को हमेशा बारिश की बेवफाई झेलनी पड़ती है. इसी कारण अब किसानों ने धान की खेती छोड़ वैकल्पिक खेती की ओर फोकस करना शुरु कर दिया है. अब यहां के किसान मूंगफली की खेती पर जोर देने लगे हैं, क्योंकि इसकी खेती के लिए ज्यादा बारिश की जरूरत नहीं होती.

nature of farming started changing
लातेहार में बदलने लगा खेती का स्वरुप
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Published : Jun 20, 2020, 8:54 PM IST

Updated : Jun 20, 2020, 10:51 PM IST

लातेहार: जिले के किसान हर साल मौसम की दगाबाजी का शिकार होकर कृषि में नुकसान उठाते हैं. ऐसे में उन्होंने अपने नुकसान की भरपाई के लिए पारंपरिक खेती के बदले वैकल्पिक खेती पर फोकस करना शुरु कर दिया है. इस साल जिले के बहुसंख्य किसानों ने मूंगफली की खेती के लिए तैयारी कर ली है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

लातेहार जिला रेन शैडो एरिया के रूप में चिन्हित है. अर्थात यहां बारिश की संभावना अपेक्षाकृत काफी कम होती है. इसके बावजूद जिले के अधिकांश किसान बारिश के भरोसे अपने खेतों में धान की खेती करते हैं. यदि भगवान भरोसे बारिश अच्छी हुई तो खेतों में उपज भी अच्छी हो जाती है. अगर बारिश ने धोखा दिया तो किसान पूरी तरह बर्बाद हो जाते हैं. लातेहार में रोजगार के साधन के रूप में कृषि कार्य छोड़ कर अन्य कोई भी साधन उपलब्ध नहीं है. ऐसे में किसानों के सामने खेती के अतिरिक्त दूसरा कोई भी कार्य नजर नहीं आता है.

ये भी पढ़ें- विधायक बंधु तिर्की ने की बैठक, नरकोपी प्रखंड गठन की मांग पर चर्चा

नुकसान से बचने का निकाला रास्ता

लगभग प्रत्येक वर्ष मानसून की दगाबाजी के कारण नुकसान उठाने वाले किसानों ने इससे बचने के लिए नया रास्ता निकाल लिया है. किसान अब मूंगफली की खेती की ओर झुकने लगे हैं. मूंगफली की खेती में सबसे अच्छी बात यह है कि इसमें कम बारिश में भी उपज अच्छी होती है. इसके अलावा मूंगफली की बिक्री भी आसानी से हो जाती है. इसी को लेकर लातेहार जिले में लगभग प्रत्येक प्रखंड के किसान ने बड़े पैमाने पर मूंगफली की खेती शुरु कर दी है.

nature of farming started changing
मूंगफली की खेती में लगा किसान

पिछले वर्ष 1800 हेक्टेयर हुई थी मूंगफली

लातेहार जिले में पिछले वर्ष लगभग 1800 हेक्टेयर भूमि में किसानों ने मूंगफली की खेती की थी. इस वर्ष किसानों ने 3000 हेक्टेयर से अधिक भूमि में मूंगफली की खेती करने की तैयारी शुरु कर दी है. महुआडांड़ प्रखंड में तो बड़े पैमाने पर मूंगफली की खेती शुरु कर दी गई है. सदर प्रखंड के मोंगर पंचायत में भी सैकड़ों किसान मूंगफली की खेती कर रहे हैं.

ये भी पढ़ें- प्रयाग संगीत समिति और प्राचीन कला केंद्र की डिग्रियां फर्जी, राज्य सरकार की चिट्ठी के बाद कला प्रेमियों में आक्रोश

किसान मोहन सिंह और राजू सिंह ने बताया कि मूंगफली की खेती काफी कम पानी में हो जाती है. इससे उन्हें अच्छी आमदनी भी हो जाती है. वहीं पंचायत समिति सदस्य पिंटू कुमार रजक ने बताया कि इस इलाके में बारिश काफी कम होती है. ऐसे में किसानों को धान में प्रत्येक वर्ष नुकसान उठाना पड़ता है. इसी को देखते हुए पंचायत के अधिकांश किसान मूंगफली की खेती करने लगे हैं. इस संबंध में जिला कृषि पदाधिकारी अंजनी कुमार मिश्रा ने कहा कि मूंगफली की खेती के लिए ऊपरी जमीन भी बेहतर होता है. उन्होंने कहा कि लातेहार में मूंगफली की खेती की परंपरा बढ़ी है.

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किसान

क्या होता है फायदा

मूंगफली की खेती करने से किसानों को कई फायदे होते हैं. सबसे पहले तो इस खेती के लिए अधिक बारिश की जरूरत नहीं है. वहीं मूंगफली की बीज की बुवाई के बाद मात्र 2 बार खेत में कुड़ाई की जरूरत पड़ती है. अर्थात किसानों को धान और अन्य फसलों के अपेक्षा काफी कम मेहनत करना पड़ता है. 3 माह के अंतराल में अच्छी फसल तैयार हो जाती है. वहीं मूंगफली की फसल आसानी से बाजार में बिक भी जाते हैं. मूंगफली की खेती लातेहार के किसानों के लिए वरदान बन गया है. इस खेती से किसानों को अच्छी आमदनी हो जाती है. वहीं बारिश के अभाव में नुकसान का भी डर नहीं होता है.

लातेहार: जिले के किसान हर साल मौसम की दगाबाजी का शिकार होकर कृषि में नुकसान उठाते हैं. ऐसे में उन्होंने अपने नुकसान की भरपाई के लिए पारंपरिक खेती के बदले वैकल्पिक खेती पर फोकस करना शुरु कर दिया है. इस साल जिले के बहुसंख्य किसानों ने मूंगफली की खेती के लिए तैयारी कर ली है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

लातेहार जिला रेन शैडो एरिया के रूप में चिन्हित है. अर्थात यहां बारिश की संभावना अपेक्षाकृत काफी कम होती है. इसके बावजूद जिले के अधिकांश किसान बारिश के भरोसे अपने खेतों में धान की खेती करते हैं. यदि भगवान भरोसे बारिश अच्छी हुई तो खेतों में उपज भी अच्छी हो जाती है. अगर बारिश ने धोखा दिया तो किसान पूरी तरह बर्बाद हो जाते हैं. लातेहार में रोजगार के साधन के रूप में कृषि कार्य छोड़ कर अन्य कोई भी साधन उपलब्ध नहीं है. ऐसे में किसानों के सामने खेती के अतिरिक्त दूसरा कोई भी कार्य नजर नहीं आता है.

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नुकसान से बचने का निकाला रास्ता

लगभग प्रत्येक वर्ष मानसून की दगाबाजी के कारण नुकसान उठाने वाले किसानों ने इससे बचने के लिए नया रास्ता निकाल लिया है. किसान अब मूंगफली की खेती की ओर झुकने लगे हैं. मूंगफली की खेती में सबसे अच्छी बात यह है कि इसमें कम बारिश में भी उपज अच्छी होती है. इसके अलावा मूंगफली की बिक्री भी आसानी से हो जाती है. इसी को लेकर लातेहार जिले में लगभग प्रत्येक प्रखंड के किसान ने बड़े पैमाने पर मूंगफली की खेती शुरु कर दी है.

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मूंगफली की खेती में लगा किसान

पिछले वर्ष 1800 हेक्टेयर हुई थी मूंगफली

लातेहार जिले में पिछले वर्ष लगभग 1800 हेक्टेयर भूमि में किसानों ने मूंगफली की खेती की थी. इस वर्ष किसानों ने 3000 हेक्टेयर से अधिक भूमि में मूंगफली की खेती करने की तैयारी शुरु कर दी है. महुआडांड़ प्रखंड में तो बड़े पैमाने पर मूंगफली की खेती शुरु कर दी गई है. सदर प्रखंड के मोंगर पंचायत में भी सैकड़ों किसान मूंगफली की खेती कर रहे हैं.

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किसान मोहन सिंह और राजू सिंह ने बताया कि मूंगफली की खेती काफी कम पानी में हो जाती है. इससे उन्हें अच्छी आमदनी भी हो जाती है. वहीं पंचायत समिति सदस्य पिंटू कुमार रजक ने बताया कि इस इलाके में बारिश काफी कम होती है. ऐसे में किसानों को धान में प्रत्येक वर्ष नुकसान उठाना पड़ता है. इसी को देखते हुए पंचायत के अधिकांश किसान मूंगफली की खेती करने लगे हैं. इस संबंध में जिला कृषि पदाधिकारी अंजनी कुमार मिश्रा ने कहा कि मूंगफली की खेती के लिए ऊपरी जमीन भी बेहतर होता है. उन्होंने कहा कि लातेहार में मूंगफली की खेती की परंपरा बढ़ी है.

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किसान

क्या होता है फायदा

मूंगफली की खेती करने से किसानों को कई फायदे होते हैं. सबसे पहले तो इस खेती के लिए अधिक बारिश की जरूरत नहीं है. वहीं मूंगफली की बीज की बुवाई के बाद मात्र 2 बार खेत में कुड़ाई की जरूरत पड़ती है. अर्थात किसानों को धान और अन्य फसलों के अपेक्षा काफी कम मेहनत करना पड़ता है. 3 माह के अंतराल में अच्छी फसल तैयार हो जाती है. वहीं मूंगफली की फसल आसानी से बाजार में बिक भी जाते हैं. मूंगफली की खेती लातेहार के किसानों के लिए वरदान बन गया है. इस खेती से किसानों को अच्छी आमदनी हो जाती है. वहीं बारिश के अभाव में नुकसान का भी डर नहीं होता है.

Last Updated : Jun 20, 2020, 10:51 PM IST
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