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झारखंड में शिक्षा बेहाल, साल 2016 के बाद एक भी शिक्षक की नहीं हुई नियुक्ति, बच्चों ने निकाला आक्रोश मार्च, अभिभावकों ने सीएम को लिखा पत्र - protest for teacher

भले ही सरकार द्वारा कागज पर शिक्षा कानून लागू कर दिया गया हो, लेकिन लातेहार जिले में यह कानून धरातल पर लागू होता नहीं दिख रहा है. जिले में कई ऐसे प्राथमिक विद्यालय हैं जहां आज भी मात्र एक ही शिक्षक बहाल हैं. ऐसे में बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल पाना लगभग असंभव है. इन्हीं मुद्दों को लेकर लातेहार के मनिका प्रखंड मुख्यालय पर प्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रोफेसर ज्यां द्रेज के नेतृत्व में विरोध प्रदर्शन किया गया. Protest against shortage of teachers in School

Protest against shortage of teachers in School
शिक्षकों की कमी के खिलाफ बच्चों और अभिभावकों ने निकाला आक्रोश मार्च
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Sep 29, 2023, 5:53 PM IST

शिक्षकों की कमी के खिलाफ बच्चों और अभिभावकों ने निकाला आक्रोश मार्च

लातेहार: झारखंड में एक तरफ सरकारी स्कूलों को निजी स्कूलों की तर्ज पर मॉडल स्कूल बनाया जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ ग्रामीण इलाकों के स्कूल महज खानापूर्ति का साधन बनकर रह गये हैं. आलम यह है कि छोटे-छोटे बच्चे अब शिक्षा के अधिकार के लिए तख्तियां लेकर आवाज उठा रहे हैं. इन तख्तियों पर लिखा है....एकल शिक्षक नहीं चलेगा. शिक्षा अधिकार का पालन करो, हमें टीचर लाकर दो. शिक्षा के अधिकार की लड़ाई में अभिभावक भी सड़कों पर उतर आए हैं. ये खबर लातेहार के मनिका प्रखंड से आई है. इसके विरोध में बच्चों, अभिभावकों और ग्राम स्वराज से जुड़े संगठनों के लोगों ने मनिका हाई स्कूल से लेकर प्रखंड कार्यालय तक आक्रोशपूर्ण मार्च निकाला. बाद में अभिभावकों ने अपनी मांगों के समर्थन में मुख्यमंत्री को लिखे पत्र पर हस्ताक्षर किये.

यह भी पढ़ें: झारखंड में पारा शिक्षकों का आंदोलन तेज, मुंडन कराकर सरकार को दी धमकी, बिहार से सीख लेने की दी सलाह

दरअसल, मनिका के प्राथमिक विद्यालय जमुना में 120 बच्चे पढ़ते हैं. सभी को शिक्षा प्रदान करने की जिम्मेदारी केवल एक शिक्षक के कंधों पर है. मास्टर साहब 11 बजे आते हैं और 1 बजे चले जाते हैं. यही हाल पूरे मनिका प्रखंड का है. यहां के 44 प्राथमिक विद्यालय एकल शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं. अभिभावक इस बात पर बेहद नाराज थे कि साल 2016-17 के बाद से कोई शिक्षक नियुक्ति हुई ही नहीं है. पिछले दिनों सीएम ने जिन 3,469 शिक्षकों को नियुक्ति पत्र दिया था, वे 2016 में हुई शिक्षक नियुक्ति परीक्षा का हिस्सा था.

हाई कोर्ट ने लगा दी नियुक्ति पर रोक: झारखंड में शिक्षा की हालत साल दर साल बिगड़ती जा रही है. एक ओर शिक्षक रिटायर हो रहे हैं तो दूसरी ओर कोई उनकी जगह नहीं ले रहा है. सरकार बार-बार कहती है कि हजारों की संख्या में शिक्षकों की बहाली होगी. हाल में शिक्षकों की बहाली की प्रक्रिया शुरू हुई तो कल्स्टर रिसोर्स पर्सन और ब्लॉक रिसोर्स पर्सन ने नियुक्ति में हिस्सेदारी को लेकर हाई कोर्ट में याचिका दे दी. इसकी वजह से नियुक्ति प्रक्रिया पर ही रोक लग गई. ग्रामीण इलाकों में शिक्षकों की कमी का सबसे ज्यादा खामियाजा दलित और आदिवासी समाज के बच्चे झेल रहे हैं.

अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज ने कहा कि बच्चों का मौलिक अधिकार है शिक्षा. लेकिन उनके साथ नाइंसाफी हो रही है. उन्होंने कहा कि शिक्षा के अधिकार के तहत हर 30 बच्चों पर एक शिक्षक होना चाहिए. हर स्कूल में कम से कम दो शिक्षक होने चाहिए. लेकिन शिक्षक के अभाव में बच्चे पढ़ नहीं पा रहे हैं. इसका मतलब यह नहीं है कि बच्चा बेवकूफ है. इसका मतलब है कि सरकार बच्चों को पढ़ा नहीं रही है.

'बच्चों को शिक्षा से वंचित करना मतलब देश को कमजोर करना': सामाजिक कार्यकर्ता जेम्स हेरेंज ने कहा कि बच्चों को शिक्षा से वंचित करने का मतलब है देश को कमजोर करना. दुर्भाग्यवश, यह स्थिति पूरे राज्य की है. कानूनी प्रावधान के हिसाब से मनिका के 44 स्कूलों में 106 शिक्षक होने चाहिए, लेकिन केवल 44 शिक्षक हैं. इस मसले को उठाने पर जिला शिक्षा पदाधिकारी कविता खलखो कहती हैं कि मैनेज कीजिए. इसका मतलब है कि संवैधानिक जिम्मेदारी को पूरा करने में सरकार विफल है.

शिक्षकों की कमी के खिलाफ बच्चों और अभिभावकों ने निकाला आक्रोश मार्च

लातेहार: झारखंड में एक तरफ सरकारी स्कूलों को निजी स्कूलों की तर्ज पर मॉडल स्कूल बनाया जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ ग्रामीण इलाकों के स्कूल महज खानापूर्ति का साधन बनकर रह गये हैं. आलम यह है कि छोटे-छोटे बच्चे अब शिक्षा के अधिकार के लिए तख्तियां लेकर आवाज उठा रहे हैं. इन तख्तियों पर लिखा है....एकल शिक्षक नहीं चलेगा. शिक्षा अधिकार का पालन करो, हमें टीचर लाकर दो. शिक्षा के अधिकार की लड़ाई में अभिभावक भी सड़कों पर उतर आए हैं. ये खबर लातेहार के मनिका प्रखंड से आई है. इसके विरोध में बच्चों, अभिभावकों और ग्राम स्वराज से जुड़े संगठनों के लोगों ने मनिका हाई स्कूल से लेकर प्रखंड कार्यालय तक आक्रोशपूर्ण मार्च निकाला. बाद में अभिभावकों ने अपनी मांगों के समर्थन में मुख्यमंत्री को लिखे पत्र पर हस्ताक्षर किये.

यह भी पढ़ें: झारखंड में पारा शिक्षकों का आंदोलन तेज, मुंडन कराकर सरकार को दी धमकी, बिहार से सीख लेने की दी सलाह

दरअसल, मनिका के प्राथमिक विद्यालय जमुना में 120 बच्चे पढ़ते हैं. सभी को शिक्षा प्रदान करने की जिम्मेदारी केवल एक शिक्षक के कंधों पर है. मास्टर साहब 11 बजे आते हैं और 1 बजे चले जाते हैं. यही हाल पूरे मनिका प्रखंड का है. यहां के 44 प्राथमिक विद्यालय एकल शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं. अभिभावक इस बात पर बेहद नाराज थे कि साल 2016-17 के बाद से कोई शिक्षक नियुक्ति हुई ही नहीं है. पिछले दिनों सीएम ने जिन 3,469 शिक्षकों को नियुक्ति पत्र दिया था, वे 2016 में हुई शिक्षक नियुक्ति परीक्षा का हिस्सा था.

हाई कोर्ट ने लगा दी नियुक्ति पर रोक: झारखंड में शिक्षा की हालत साल दर साल बिगड़ती जा रही है. एक ओर शिक्षक रिटायर हो रहे हैं तो दूसरी ओर कोई उनकी जगह नहीं ले रहा है. सरकार बार-बार कहती है कि हजारों की संख्या में शिक्षकों की बहाली होगी. हाल में शिक्षकों की बहाली की प्रक्रिया शुरू हुई तो कल्स्टर रिसोर्स पर्सन और ब्लॉक रिसोर्स पर्सन ने नियुक्ति में हिस्सेदारी को लेकर हाई कोर्ट में याचिका दे दी. इसकी वजह से नियुक्ति प्रक्रिया पर ही रोक लग गई. ग्रामीण इलाकों में शिक्षकों की कमी का सबसे ज्यादा खामियाजा दलित और आदिवासी समाज के बच्चे झेल रहे हैं.

अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज ने कहा कि बच्चों का मौलिक अधिकार है शिक्षा. लेकिन उनके साथ नाइंसाफी हो रही है. उन्होंने कहा कि शिक्षा के अधिकार के तहत हर 30 बच्चों पर एक शिक्षक होना चाहिए. हर स्कूल में कम से कम दो शिक्षक होने चाहिए. लेकिन शिक्षक के अभाव में बच्चे पढ़ नहीं पा रहे हैं. इसका मतलब यह नहीं है कि बच्चा बेवकूफ है. इसका मतलब है कि सरकार बच्चों को पढ़ा नहीं रही है.

'बच्चों को शिक्षा से वंचित करना मतलब देश को कमजोर करना': सामाजिक कार्यकर्ता जेम्स हेरेंज ने कहा कि बच्चों को शिक्षा से वंचित करने का मतलब है देश को कमजोर करना. दुर्भाग्यवश, यह स्थिति पूरे राज्य की है. कानूनी प्रावधान के हिसाब से मनिका के 44 स्कूलों में 106 शिक्षक होने चाहिए, लेकिन केवल 44 शिक्षक हैं. इस मसले को उठाने पर जिला शिक्षा पदाधिकारी कविता खलखो कहती हैं कि मैनेज कीजिए. इसका मतलब है कि संवैधानिक जिम्मेदारी को पूरा करने में सरकार विफल है.

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