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हौसले के आगे हारी दिव्यांगता, नेत्रहीन छोटेलाल बने समाज के लिए प्रेरणास्रोत - नेत्रहीन छोटेलाल

लातेहार में नेत्रहीन छोटेलाल उरांव समाज के लिए प्रेरणास्रोत (Chhote Lal became inspiration for society) बन गए हैं. नेत्रहीन होने के बावजूद खेती करने के साथ साथ परिवार का भरण पोषण करते हैं.

Chhote Lal became inspiration for society
हौसला के आगे हारी दिव्यांगता
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Published : Dec 15, 2022, 2:26 PM IST

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लातेहारः कहा जाता है कि जिनके हौसले बुलंद हो, वह अपनी कमियों पर रोना नहीं रोते हैं. परिस्थितियों से लड़कर हमेशा आगे बढ़ते हैं. सालोडीह गांव के रहने वाले दिव्यांग छोटेलाल उरांव (Chhote Lal became inspiration for society) इस कहावत को चरितार्थ कर रहे हैं. छोटेलाल उरांव पूरी तरफ से नेत्रहीन होने के बावजूद एक सामान्य व्यक्ति की तरह अपने खेतों में खेती करते हैं और अपने परिवार का पालन पोषण कर रहे हैं.

यह भी पढ़ेंः गिरिडीह में समाज के लिए मिसाल बने हैं दिव्यांग, आत्मनिर्भर बनकर परिवार का कर रहे भरण पोषण

दरअसल, छोटेलाल उरांव सिर्फ ढाई साल के थे तो एक बीमारी के कारण उनकी दोनों आंखों की रोशनी चली गई. माता-पिता काफी गरीब थे. इससे छोटेलाल का किसी बड़े अस्पतालों में इलाज नहीं करा सके. ढाई साल की उम्र में ही छोटेलाल उरांव पूरी तरह नेत्रहीन हो गए. छोटेलाल की आंखों की रोशनी जाने के बाद उनके माता-पिता काफी परेशान थे. आलम यह था कि गरीबी के कारण नेत्रहीन छोटेलाल को किसी ब्लाइंड स्कूल में भी नहीं भेज सके.

हालांकि, छोटेलाल जैसे-जैसे बड़ा होते गए, वैसे वह परिस्थितियों से समझौता करने के बदले लड़कर जीवन में आगे बढ़ने का निश्चय किया. छोटेलाल कहते हैं कि बचपन में ही उनकी आंखों की रोशनी चली गई. इसके बावजूद हार नहीं मानी और अपने जीवन को सामान्य तरीके से चलाने का प्रयास किया. छोटेलाल के पिता एतवा उरांव कहते हैं कि गरीबी के कारण छोटेलाल का किसी बड़े अस्पताल में इलाज नहीं करा पाए. इससे उसकी आंखों की रोशनी चली गई. लेकिन नेत्रहीन होने के बावजूद छोटेलाल खेती से लेकर खाना बनाने तक का काम आसानी से कर लेता है.

दिव्यांगता को पीछे छोड़ते हुए छोटेलाल उरांव ने सबसे पहले अपने पिता के साथ मिलकर खेती करना शुरू किया. धीरे-धीरे छोटेलाल खेतों में फसल लगाने, पटवन करने के साथ साथ फसल काटने की विधि सीखा और अब छोटे से जमीन पर खेती कर छोटेलाल अपने माता-पिता का भरण पोषण करना शुरू किया. छोटेलाल कहते हैं कि परिवार का पालन पोषण करने के लिए काम तो करना ही पड़ता है. इसीलिए खेती का काम कर रहे हैं.


छोटेलाल उरांव बिल्कुल सामान्य लोगों की तरह साइकिल भी चला लेता है. वह अपने गांव से लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित लातेहार जिला मुख्यालय आकर सामान्य लोगों की तरह खरीदारी भी करता है. शादी के बाद जब छोटेलाल की जिम्मेवारी बढ़ी तो उसने अपने खेती का दायरा भी बढ़ा लिया. छोटेलाल अब अपने खेतों में सालों भर कुछ ना कुछ खेती करता है. छोटेलाल उरांव ने बताया कि सरकार से सिर्फ दिव्यांगता पेंशन मिलता है. उन्होंने कहा कि रोजगार के लिए सरकारी सहायता मिले तो वह अपने जीवन को और आसान बना सकते है. उसने कहा कि बच्चों की चिंता रहती है.

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लातेहारः कहा जाता है कि जिनके हौसले बुलंद हो, वह अपनी कमियों पर रोना नहीं रोते हैं. परिस्थितियों से लड़कर हमेशा आगे बढ़ते हैं. सालोडीह गांव के रहने वाले दिव्यांग छोटेलाल उरांव (Chhote Lal became inspiration for society) इस कहावत को चरितार्थ कर रहे हैं. छोटेलाल उरांव पूरी तरफ से नेत्रहीन होने के बावजूद एक सामान्य व्यक्ति की तरह अपने खेतों में खेती करते हैं और अपने परिवार का पालन पोषण कर रहे हैं.

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दरअसल, छोटेलाल उरांव सिर्फ ढाई साल के थे तो एक बीमारी के कारण उनकी दोनों आंखों की रोशनी चली गई. माता-पिता काफी गरीब थे. इससे छोटेलाल का किसी बड़े अस्पतालों में इलाज नहीं करा सके. ढाई साल की उम्र में ही छोटेलाल उरांव पूरी तरह नेत्रहीन हो गए. छोटेलाल की आंखों की रोशनी जाने के बाद उनके माता-पिता काफी परेशान थे. आलम यह था कि गरीबी के कारण नेत्रहीन छोटेलाल को किसी ब्लाइंड स्कूल में भी नहीं भेज सके.

हालांकि, छोटेलाल जैसे-जैसे बड़ा होते गए, वैसे वह परिस्थितियों से समझौता करने के बदले लड़कर जीवन में आगे बढ़ने का निश्चय किया. छोटेलाल कहते हैं कि बचपन में ही उनकी आंखों की रोशनी चली गई. इसके बावजूद हार नहीं मानी और अपने जीवन को सामान्य तरीके से चलाने का प्रयास किया. छोटेलाल के पिता एतवा उरांव कहते हैं कि गरीबी के कारण छोटेलाल का किसी बड़े अस्पताल में इलाज नहीं करा पाए. इससे उसकी आंखों की रोशनी चली गई. लेकिन नेत्रहीन होने के बावजूद छोटेलाल खेती से लेकर खाना बनाने तक का काम आसानी से कर लेता है.

दिव्यांगता को पीछे छोड़ते हुए छोटेलाल उरांव ने सबसे पहले अपने पिता के साथ मिलकर खेती करना शुरू किया. धीरे-धीरे छोटेलाल खेतों में फसल लगाने, पटवन करने के साथ साथ फसल काटने की विधि सीखा और अब छोटे से जमीन पर खेती कर छोटेलाल अपने माता-पिता का भरण पोषण करना शुरू किया. छोटेलाल कहते हैं कि परिवार का पालन पोषण करने के लिए काम तो करना ही पड़ता है. इसीलिए खेती का काम कर रहे हैं.


छोटेलाल उरांव बिल्कुल सामान्य लोगों की तरह साइकिल भी चला लेता है. वह अपने गांव से लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित लातेहार जिला मुख्यालय आकर सामान्य लोगों की तरह खरीदारी भी करता है. शादी के बाद जब छोटेलाल की जिम्मेवारी बढ़ी तो उसने अपने खेती का दायरा भी बढ़ा लिया. छोटेलाल अब अपने खेतों में सालों भर कुछ ना कुछ खेती करता है. छोटेलाल उरांव ने बताया कि सरकार से सिर्फ दिव्यांगता पेंशन मिलता है. उन्होंने कहा कि रोजगार के लिए सरकारी सहायता मिले तो वह अपने जीवन को और आसान बना सकते है. उसने कहा कि बच्चों की चिंता रहती है.

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