ETV Bharat / state

यहां भगवान शिव को निरंजन दास के नाम से जानते हैं लोग, पूरी होती है हर मनोकामना - झारखंड समाचार

भगवान शिव को अनेकों नामो से जाना जाता है. कोई उन्हें औघड़दानी कहता है तो कोई भोले-भंडारी, कोई भोलेनाथ और कोई बाबा. नाम उनके जो भी हो उनके प्रति आस्था कम कहीं नहीं है. सावन में तो शिवभक्तों की आस्था परवान पर रहती है. इसलिए चलिए आज सावन के दूसरे सोमवार पर हम आपको आस्था के एक मंदिर कोडरमा के मसनोडीह में विराजमान भगवान भोले के स्वरूप से अवगत कराते हैं. जहां भगवान स्फटिक से बने पूरी पारदर्शी शिवलिंग के रूप में विराजमान होकर भक्तों को अपनी अनोखी छटा से रूबरू कराते हैं.

कोडरमा के मसनोडीह मंदिर में स्थापित शिवलिंग
author img

By

Published : Jul 29, 2019, 8:42 PM IST

Updated : Aug 17, 2019, 5:53 PM IST

कोडरमा: जिले के डोमचांच प्रखंड के मसनोडीह में एक मंदिर में शिवलिंग पूरी तरह से पारदर्शी है. यहां लोग भगवान भोले को 'निरंजन दास' के नाम से जानते हैं. 1850 में राजा महाराजाओं ने यहां यह शिवलिंग स्थापित किया था. पारदर्शी शिवलिंग होने के कारण यह मंदिर काफी विख्यात है. जहां दूर-दूर से लोग आराधना करने आते हैं.

देखें पूरी खबर


जुड़ी है लोगों की आस्था
इस मंदिर को लेकर कई पौराणिक कथाएं भी हैं. कहते हैं कि राजा महाराजाओं के शासनकाल में बने इस मंदिर पर अंग्रेजों की भी नजर थी. पारदर्शी शिवलिंग होने के कारण कई बार अंग्रेजों ने इस शिवलिंग को खरीदने की चेष्टा भी की थी लेकिन ऐसा हो नहीं पाया. लोगों का मानना है कि मंदिर की स्थापना के बाद से गांव की खूब तरक्की हुई और लोगों के रहन-सहन में काफी बदलाव आया.

क्या कहते हैं स्थानीय
मसनोडीह के दीपक बताते हैं कि करीब डेढ़ सौ साल पहले भगवान भोले राजा के स्वप्न में दिखाई दिए थे, जिसके बाद यहां यह शिवलिंग स्थापित किया गया था. तब से यहां के प्रति लोगों की आस्था जुड़ी हुई है. वहीं मंदिर के पुजारी रविंद्र पांडे बताते हैं कि मंदिर की स्थापना के बाद गांव की तरक्की से राजा महाराजा काफी खुश थे और उसी वक्त से सभी तबके के लोगों का मंदिर में आना जाना था.

कोडरमा: जिले के डोमचांच प्रखंड के मसनोडीह में एक मंदिर में शिवलिंग पूरी तरह से पारदर्शी है. यहां लोग भगवान भोले को 'निरंजन दास' के नाम से जानते हैं. 1850 में राजा महाराजाओं ने यहां यह शिवलिंग स्थापित किया था. पारदर्शी शिवलिंग होने के कारण यह मंदिर काफी विख्यात है. जहां दूर-दूर से लोग आराधना करने आते हैं.

देखें पूरी खबर


जुड़ी है लोगों की आस्था
इस मंदिर को लेकर कई पौराणिक कथाएं भी हैं. कहते हैं कि राजा महाराजाओं के शासनकाल में बने इस मंदिर पर अंग्रेजों की भी नजर थी. पारदर्शी शिवलिंग होने के कारण कई बार अंग्रेजों ने इस शिवलिंग को खरीदने की चेष्टा भी की थी लेकिन ऐसा हो नहीं पाया. लोगों का मानना है कि मंदिर की स्थापना के बाद से गांव की खूब तरक्की हुई और लोगों के रहन-सहन में काफी बदलाव आया.

क्या कहते हैं स्थानीय
मसनोडीह के दीपक बताते हैं कि करीब डेढ़ सौ साल पहले भगवान भोले राजा के स्वप्न में दिखाई दिए थे, जिसके बाद यहां यह शिवलिंग स्थापित किया गया था. तब से यहां के प्रति लोगों की आस्था जुड़ी हुई है. वहीं मंदिर के पुजारी रविंद्र पांडे बताते हैं कि मंदिर की स्थापना के बाद गांव की तरक्की से राजा महाराजा काफी खुश थे और उसी वक्त से सभी तबके के लोगों का मंदिर में आना जाना था.

Intro:आज सावन की दूसरी सोमवारी है । सावन के पूरे महीने में भगवान भोले के अलग-अलग स्वरूप देखने को मिलते हैं ,आज हम आपको कोडरमा के मसनोडीह के एक मंदिर में विराजमान भगवान भोले के स्वरूप से अवगत कराएंगे ,यहाँ भगवान भोले का शिवलिंग पूरी तरह से पारदर्शी है एक रिपोर्ट ।


Body:भगवान भोले को अनेकों नामो से जाना जाता है। कोडरमा के डोमचांच प्रखंड के मसनोडीह में जिस मंदिर में भगवान भोले का शिवलिंग स्थापित किया गया है वह पूरी तरह से पारदर्शी है , यहाँ लोग भगवान भोले को निरंजन दास के नाम से जानते हैं । 1950 में राजा महाराजाओं के द्वारा यहाँ शिवलिंग लाकर स्थापित किया गया था और पारदर्शी शिवलिंग होने की विशेषता के कारण है यह मंदिर काफी विख्यात है ।मसनोडीह के दीपक सिंह बताते हैं कि डेढ़ सौ साल पहले भगवान भोले स्वप्न में दिखाई दिए थे जिसके बाद यहाँ शिवलिंग स्थापित किया गया था और तब से यहां के प्रति लोगों की आस्था जुड़ी हुई है ।
बाईट:-दीपक सिंह ।

1980 में स्थापित इस मंदिर को लेकर कई पौराणिक कथाएं भी हैं । राजा महाराजाओं के शासनकाल में बने इस मंदिर पर अंग्रेजों की भी नजर थी , पारदर्शी शिवलिंग होने के कारण कई बार अंग्रेजों ने राजा महाराजाओ से इस शिवलिंग को खरीदने की चेष्टा भी की थी लेकिन ऐसा हुआ नहीं , मंदिर की स्थापना के बाद से मसनोडीह गांव की खूब तरक्की हुई और लोगों के रहन-सहन में काफी बदलाव आया ।




Conclusion:वहीं मंदिर के पुजारी रविंद्र पांडे बताते हैं कि मंदिर की स्थापना के बाद गांव की तरक्की से राजा महाराजा काफी खुश थे और उसी वक्त से सभी तबके के लोगों का मंदिर में आना जाना था , आज भी लोग श्रद्धा भक्ति के साथ इस मंदिर में आते हैं और भगवान शिव की आराधना करते हैं । यहां आने वाले श्रद्धालु बताते हैं कि भगवान भोले का ऐसा पारदर्शी स्वरूप शायद ही किसी मंदिर में हो और यहां आने वाले भक्तों की हर मुरादे पूरी होती है ।
Last Updated : Aug 17, 2019, 5:53 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.