कोडरमा: आज विश्व पर्यावरण दिवस है और हर तरफ पर्यावरण संरक्षण की चर्चा हो रही है. कोडरमा के जिला एवं सत्र न्यायाधीश बीरेंद्र कुमार तिवारी भी एक ऐसे ही नेचर लवर है जिनका समय न्यायिक कार्यो के बाद पर्यावरण को सजाने संवारने में व्यतीत होता है. न्यायिक सेवा के सर्वोच्च पद पर आसीन प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश प्रकृति के साथ उतने ही संवेदनशील होकर इंसाफ करते हैं जितना किसी फरियादी के साथ. सत्र न्यायाधीश के प्रयासों का परिणाम है कि आज न्यायालय परिसर का बाहरी इलाका काफी खूबसूरत नजर आता है.
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बंजर इलाके को बनाया हरा भरा: करीब ढाई साल पूर्व तक न्यायालय परिसर का जो इलाका बंजर और कंकड़ीला होने के साथ साथ वीरान जैसा नजर आता था, आज वहां हर तरह तरफ हरियाली हैं. गुलाब फूल, गेंदा फूल, सूरजमुखी के फूल और न जाने कितने देसी विदेशी फूल कोडरमा न्यायालय परिसर में लहलहा रहे हैं. प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश के व्यक्तिगत प्रयास से न्यायालय परिसर में छोटे-छोटे कई पार्क बनाए गए हैं, जहां फूल पौधों के अलावे फलदार और छायादार वृक्ष भी लगाए गए हैं.पीडीजे बीरेंद्र कुमार तिवारी ने कहा कि प्रकृति के साथ छेड़छाड़ का दुष्परिणाम कोरोना के भयावहता के रूप में सब ने देखा है, और उसी से सिख लेते हुए लोगों को संभलने की जरूरत हैं. पीडीजे बीरेंद्र कुमार तिवारी बताते है कि निराशा के साथ कोर्ट आने वाले लोगो मे यह हरियाली देखकर सकारात्मक ऊर्जा का संचार हो यही उनका प्रयास है.
बदल गई है न्यायालय की तस्वीर: आज न्यायालय परिसर का बाहरी इलाका काफी खूबसूरत नजर आता है. पीडीजे के सोच से यहां की तस्वीर के साथ-साथ यहां की आबोहवा भी बदल गई है. छोटे-छोटे पार्क और न्यायालय परिसर के हरा-भरा होने पर दूसरे न्यायिक पदाधिकारी भी प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश के कार्यों की सराहना करते नहीं थकते. उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले में जन्मे वीरेंद्र कुमार तिवारी को बचपन से ही प्रकृति के प्रति अगाध प्रेम रहा है और शुरुआत से ही वे पर्यावरण को संजाने संवारने में अपना समय व्यतीत करते रहें हैं । 27 सालों के न्यायिक सेवा के दौरान वीरेंद्र कुमार तिवारी का पदस्थापन जहां भी हुआ वहां वहां उन्होंने प्रकृति के प्रति अपने अगाढ़ प्रेम को दर्शाया और न्यायिक परिसर को सजाने और संवारने का कार्य किया. कोडरमा न्यायालय परिसर में बने पार्क में वे सुबह और शाम दो-दो घंटे समय देते हैं और फूल पौधों को पानी पटाने से लेकर पौधों में मिट्टी भरने और उसकी देखरेख का काम भी किया करते हैं. माली बताते हैं कि इतने बड़े अधिकारी को खुद से पौधों की सेवा करते देख उनका भी उत्साह दोगुना हो जाता है.