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मदद की दरकारः मेटोकॉर्डियल सेटोपैथी बीमारी से जूझ रही है 5 वर्षीय दिव्या - कोडरमा सिविल सर्जन

कोडरमा में एक ऑटो चालक पिता अपनी बेटी के इलाज के लिए दर-दर भटकने को मजबूर है. मेटोकॉर्डियल सेटोपैथी बीमारी से ग्रसित 5 साल की दिव्या शर्मा मानसिक और शारीरिक रूप से दिव्यांग है.

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मदद की दरकार
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Published : Jan 14, 2021, 5:30 PM IST

कोडरमा: सहारों के जरिए लड़खड़ाते कदमों से आगे बढ़ रही यह है कोडरमा की दिव्या शर्मा. यह बच्ची बीमारी के कारण उम्र के लिहाज से भले ही बढ़ रही है लेकिन बच्ची का विकास नहीं हो पा रही है. झुमरीतिलैया के तारा तांड निवासी नमिता शर्मा और विकास शर्मा की 5 वर्षीय एकलौती बेटी शारीरिक और मानसिक रूप से दिव्यांग है. उसकी जिंदगी 2 साल के बच्चे की उम्र में आकर थम गई है.

SPECIAL REPORT: दिव्या को मदद की दरकार

मदद की गुहार

दिव्या की मां नमिता शर्मा बताती है कि बच्ची को उठाने बैठाने के साथ हर कार्य में उसकी मदद करनी पड़ती है. खान-पान से लेकर उसके देखभाल में पूरा दिन बीत जाता है, बच्ची की स्थिति में कोई खास सुधार नहीं हो पा रहा है. लाचार मां की मानें तो दिव्या उनके घर खुशियां लेकर आई थी और 18 महीने तक दिव्या की किलकारियां से पूरा परिवार खुश था, फिर उसके बाद मानो सब कुछ छिन गया हो, उन्होंने सरकार और प्रशासन से बेटी के इलाज के लिए मदद की गुहार लगाई है.

इलाज में लाखों का खर्च

दिव्या के पिता विकास शर्मा ने बताया कि शुरुआत में कुछ समझ में ही नहीं आया. तिलैया, कोडरमा से लेकर रांची तक इलाज कराया लेकिन हर अस्पताल में इस बीमारी को लाइलाज बताकर रेफर कर दिया गया. ऑटो चालक पिता विकास की मजबूरी इतनी है कि इस बीमारी के इलाज में ना तो आयुष्मान कार्ड साथ दे रहा है, ना ही यह बीमारी मुख्यमंत्री गंभीर बीमारी की सूची में शामिल है. उन्होंने बताया कि इस बीमारी का इलाज अब तक दिल्ली के एम्स और सीएमसी वेल्लोर में ही इलाज होता है और इन दोनों बड़े अस्पतालों में आयुष्मान कार्ड का कोई महत्व ही नहीं है. जिसमें लाखों रुपए खर्च होंगे.

इसे भी पढ़ें- सांसद अन्नपूर्णा देवी ने किया डिस्ट्रिक्ट क्रिकेट टूर्नामेंट का उद्धघाटन, कहा- हेमंत सरकार खेल के प्रति उदासीन



योजना की लिस्ट में नहीं है ये बीमारी

दिव्या के पिता के अनुसार सीएमसी वेल्लोर में तकरीबन 5 साल तक नियमित इलाज किया जाएगा तभी सुधार संभव है, इसके लिए प्रत्येक वर्ष 50 हजार रुपये का अनुमानित खर्च है. इधर मेटोकॉर्डियल सेटोपैथी नामक बीमारी गंभीर और असाध्य रोग की सूची में शामिल नहीं होना स्वास्थ्य विभाग के लिए भी मजबूरी का सबब बना हुआ है. सिविल सर्जन डॉक्टर पार्वती नाग ने बताया कि पिछले वर्ष विभागीय प्रक्रिया से अलग जिला प्रशासन की पहल पर स्वास्थ विभाग की ओर से दिव्या के इलाज के लिए डेढ़ लाख रुपए मुहैया कराए गए थे लेकिन सरकारी प्रक्रिया के अनुसार अब आगे बच्ची की मदद नहीं की जा सकती हैं. उन्होंने कहा कि झारखंड में बच्ची का नियमित इलाज होता तो परिवार को मदद की जा सकती थी.

कोडरमा: सहारों के जरिए लड़खड़ाते कदमों से आगे बढ़ रही यह है कोडरमा की दिव्या शर्मा. यह बच्ची बीमारी के कारण उम्र के लिहाज से भले ही बढ़ रही है लेकिन बच्ची का विकास नहीं हो पा रही है. झुमरीतिलैया के तारा तांड निवासी नमिता शर्मा और विकास शर्मा की 5 वर्षीय एकलौती बेटी शारीरिक और मानसिक रूप से दिव्यांग है. उसकी जिंदगी 2 साल के बच्चे की उम्र में आकर थम गई है.

SPECIAL REPORT: दिव्या को मदद की दरकार

मदद की गुहार

दिव्या की मां नमिता शर्मा बताती है कि बच्ची को उठाने बैठाने के साथ हर कार्य में उसकी मदद करनी पड़ती है. खान-पान से लेकर उसके देखभाल में पूरा दिन बीत जाता है, बच्ची की स्थिति में कोई खास सुधार नहीं हो पा रहा है. लाचार मां की मानें तो दिव्या उनके घर खुशियां लेकर आई थी और 18 महीने तक दिव्या की किलकारियां से पूरा परिवार खुश था, फिर उसके बाद मानो सब कुछ छिन गया हो, उन्होंने सरकार और प्रशासन से बेटी के इलाज के लिए मदद की गुहार लगाई है.

इलाज में लाखों का खर्च

दिव्या के पिता विकास शर्मा ने बताया कि शुरुआत में कुछ समझ में ही नहीं आया. तिलैया, कोडरमा से लेकर रांची तक इलाज कराया लेकिन हर अस्पताल में इस बीमारी को लाइलाज बताकर रेफर कर दिया गया. ऑटो चालक पिता विकास की मजबूरी इतनी है कि इस बीमारी के इलाज में ना तो आयुष्मान कार्ड साथ दे रहा है, ना ही यह बीमारी मुख्यमंत्री गंभीर बीमारी की सूची में शामिल है. उन्होंने बताया कि इस बीमारी का इलाज अब तक दिल्ली के एम्स और सीएमसी वेल्लोर में ही इलाज होता है और इन दोनों बड़े अस्पतालों में आयुष्मान कार्ड का कोई महत्व ही नहीं है. जिसमें लाखों रुपए खर्च होंगे.

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योजना की लिस्ट में नहीं है ये बीमारी

दिव्या के पिता के अनुसार सीएमसी वेल्लोर में तकरीबन 5 साल तक नियमित इलाज किया जाएगा तभी सुधार संभव है, इसके लिए प्रत्येक वर्ष 50 हजार रुपये का अनुमानित खर्च है. इधर मेटोकॉर्डियल सेटोपैथी नामक बीमारी गंभीर और असाध्य रोग की सूची में शामिल नहीं होना स्वास्थ्य विभाग के लिए भी मजबूरी का सबब बना हुआ है. सिविल सर्जन डॉक्टर पार्वती नाग ने बताया कि पिछले वर्ष विभागीय प्रक्रिया से अलग जिला प्रशासन की पहल पर स्वास्थ विभाग की ओर से दिव्या के इलाज के लिए डेढ़ लाख रुपए मुहैया कराए गए थे लेकिन सरकारी प्रक्रिया के अनुसार अब आगे बच्ची की मदद नहीं की जा सकती हैं. उन्होंने कहा कि झारखंड में बच्ची का नियमित इलाज होता तो परिवार को मदद की जा सकती थी.

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