खूंटी: भगवान बिरसा मुंडा की जन्मस्थली को झारखंडवासी उलिहातू के नाम से जानते हैं, लेकिन उलिहातू का क्या मतलब है शायद कम ही लोग जानते हैं. उलिहातू का नाम कैसे पड़ा इस विषय पर बिरसा मुंडा के वंशज समेत उलिहातू के स्थानीय निवासियों ने जानकारी दी जो काफी दिलचस्प है.
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पीएम मोदी भगवान बिरसा मुंडा को श्रद्धांजलि देने के लिए उलिहातू आने वाले हैं. ऐसे में पूरे देश में इस गांव की चर्चा हो रही है. ईटीवी भारत से बात करते हुए बिरसा मुंडा के वंशज और स्थानीय निवासियों ने बताया कि मुंडारी में उली मतलब आम और हातू का मतलब गांव. इन दो मुंडारी शब्दों से मिलकर उलिहातू गांव का नाम रखा गया.
स्थानीय लोगों का मानना है कि जब पहली बार यहां जंगल पहाड़ों के बीच पूर्ति गोत्र के लोग रहने आए तो यहां विशाल आम के पेड़ थे. यहीं उनके पूर्वजों ने रात गुजारा था. आम पेड़ की छत्रछाया में पहली बार यहां के उनके पूर्वजों ने शरण ली थी. इसलिए गांव का नाम उलिहातू पड़ा. कुछ लोग मानते हैं कि इस क्षेत्र में विशाल आम के पेड़ हुआ करते थे. लेकिन समय के साथ वे पेड़ कटते चले गए. आसपास आज भी कुछ आम के वृक्ष और सखुआ के पेड़ बचे हैं.
मुंडारी खुटकट्टी इलाके में गांव टोलों के नाम पेड़-पौधे, फल-फूल और पशु-पक्षियों के नाम पर रखे जाते थे, उलिहातू के आसपास के गांव हैं कंटडापीड़ी यानी कटहल का क्षेत्र, जोजोहातू यानी इमली का गांव, रुगड़ी यानी कंकड़ से भरा क्षेत्र, किताहातू यानी खजूर के पेड़ों का गांव, जानुमपीड़ी यानी कांटों से भरा क्षेत्र. इस तरह जिले के कई ऐसे गांव है जो पेड़ पौधों के नाम पर हैं. उनकी पहचान पेड़ों के नाम पर ही है. इस तरह के गांव का नामकरण प्रकृति से जुड़ा होता था.