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World Tribal Day: योजनाओं के बावजूद नहीं बदल रही आदिवासियों की तकदीर

9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस (World Tribal Day) मनाया जाता है. लेकिन इसकी सार्थकता क्या है, इतने साल के बाद भी आदिवासी समाज अपने आप को कहां खड़ा पाता है. योजनाएं बनती हैं इसके बावजूद आदिवासियों का विकास (tribal community not developing) नहीं हो रहा है. ईटीवी भारत की रिपोर्ट में जानकारों से समझिए इसके पीछे की वजह.

tribal community not developing despite government schemes in Khunti
खूंटी
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Published : Aug 9, 2022, 8:15 AM IST

Updated : Aug 9, 2022, 9:28 AM IST

खूंटीः झारखंड में हर साल विश्व आदिवासी दिवस (World Tribal Day) धूमधाम से मनाई जाती है. आदिवासियों के विकास के लिए लंबी चौड़ी घोषणाएं (government schemes in Khunti) होती हैं. लेकिन भगवान बिरसा मुंडा की धरती के आदिवासियों की तकदीर नहीं बदलती. आखिर क्यों और कौन हैं इसके जिम्मेदार? आदिवासियों के जानकार और पद्मविभूषण कड़िया मुंडा (Padma Vibhushan Kadiya Munda) कहते हैं कि अगर ऐसा ही रहा तो एक दिन आदिवासियों का अस्तित्व खत्म हो जाएगा.

इसे भी पढ़ें- विश्व आदिवासी दिवस: झारखंड की सत्ता में रहकर भी धरती पुत्र के सपने हैं अधूरे, कहां रूके, कहां फंसे, कहां बढ़ना जरूरी

आदिवासी बहुल जिला खूंटी (tribal society in Khunti), जो धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा का जन्मस्थली है. यहां हर साल भगवान बिरसा मुंडा की जयंती और पुण्यतिथि धूमधाम से मनाई जाती है. विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर भी कई तरह के कार्यक्रम किए जाते हैं. लेकिन आज भी खूंटी जिला के आदिवासी विकास की बाट (backwardness of tribal society) जोह रहे हैं. पूर्व लोकसभा उपाध्यक्ष पद्मविभूषण कड़िया मुंडा ने आदिवासी दिवस की सार्थकता पर ही सवाल उठाया है. उनका कहना है कि आखिर क्यों आदिवासी दिवस मनाया जाता है? आदिवासी दिवस के नाम पर करोड़ों अरबों रुपये खर्च होते हैं लेकिन आदिवासी आज भी हाशिये पर है. जनजातीय समुदाय की जनसंख्या में लगातार कमी होती जा रही है. आज भी आदिवासी रोजगार के लिए पलायन करते हैं. स्थानीय स्तर और रोजगार के अवसर नहीं मिलने से बड़े पैमाने पर अवैध अफीम की खेती करते हैं. अवैध अफीम की खेती से बगैर बाजार के ही घर या गांव से ही तस्करों के माध्यम से अफीम की सौदेबाजी होती है. अफीम की खेतीं करने के कारण के कारण खूंटी बंजर होता जा रहा है और यहां के आदिवासी खेती से दूर होते जा रहे है. यहां के अधिकांश आदिवासी युवक भी अफीम की जद में है.

देखें पूरी खबर

वहीं समाजसेवी दिलीप मिश्रा के अनुसार आदिवासियों के नाम पर योजनाएं बनती हैं, राशि आती है लेकिन बंदरबांट होने से आदिवासियों का कल्याण नाममात्र का ही होता है. नेता, अफसर आदिवासियों के नाम पर बनी योजनओं से मालामाल होते हैं और धरातल पर विकास शून्य और कागजों में विकास की गंगा बहती नजर आती है.

खूंटी में आज ज्यादातर आदिवासियों ने अफीम की खेती को ही अपना रोजगार बना लिया है. पांच वर्ष में 288 एफआईआर दर्ज हुआ है और 350 से अधिक आदिवासी जेल में है. रोजगार के अवसर में बढ़ोतरी नहीं होने से प्रत्येक वर्ष एनडीपीएस एक्ट के तहत अफीम की खेती करने वाले आदिवासी जेल भेजे जाएंगे और संख्या में कमी होती जाएगी. यह सोचने समझने वाला कोई नहीं है कि अफीम की खेती गैरकानूनी है. कई मुखिया भी अफीम की खेती में जुटे हैं. लोग जागरूक होंगे तभी आदिवासी समाज को बचाया जा सकेगा.

खूंटीः झारखंड में हर साल विश्व आदिवासी दिवस (World Tribal Day) धूमधाम से मनाई जाती है. आदिवासियों के विकास के लिए लंबी चौड़ी घोषणाएं (government schemes in Khunti) होती हैं. लेकिन भगवान बिरसा मुंडा की धरती के आदिवासियों की तकदीर नहीं बदलती. आखिर क्यों और कौन हैं इसके जिम्मेदार? आदिवासियों के जानकार और पद्मविभूषण कड़िया मुंडा (Padma Vibhushan Kadiya Munda) कहते हैं कि अगर ऐसा ही रहा तो एक दिन आदिवासियों का अस्तित्व खत्म हो जाएगा.

इसे भी पढ़ें- विश्व आदिवासी दिवस: झारखंड की सत्ता में रहकर भी धरती पुत्र के सपने हैं अधूरे, कहां रूके, कहां फंसे, कहां बढ़ना जरूरी

आदिवासी बहुल जिला खूंटी (tribal society in Khunti), जो धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा का जन्मस्थली है. यहां हर साल भगवान बिरसा मुंडा की जयंती और पुण्यतिथि धूमधाम से मनाई जाती है. विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर भी कई तरह के कार्यक्रम किए जाते हैं. लेकिन आज भी खूंटी जिला के आदिवासी विकास की बाट (backwardness of tribal society) जोह रहे हैं. पूर्व लोकसभा उपाध्यक्ष पद्मविभूषण कड़िया मुंडा ने आदिवासी दिवस की सार्थकता पर ही सवाल उठाया है. उनका कहना है कि आखिर क्यों आदिवासी दिवस मनाया जाता है? आदिवासी दिवस के नाम पर करोड़ों अरबों रुपये खर्च होते हैं लेकिन आदिवासी आज भी हाशिये पर है. जनजातीय समुदाय की जनसंख्या में लगातार कमी होती जा रही है. आज भी आदिवासी रोजगार के लिए पलायन करते हैं. स्थानीय स्तर और रोजगार के अवसर नहीं मिलने से बड़े पैमाने पर अवैध अफीम की खेती करते हैं. अवैध अफीम की खेती से बगैर बाजार के ही घर या गांव से ही तस्करों के माध्यम से अफीम की सौदेबाजी होती है. अफीम की खेतीं करने के कारण के कारण खूंटी बंजर होता जा रहा है और यहां के आदिवासी खेती से दूर होते जा रहे है. यहां के अधिकांश आदिवासी युवक भी अफीम की जद में है.

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वहीं समाजसेवी दिलीप मिश्रा के अनुसार आदिवासियों के नाम पर योजनाएं बनती हैं, राशि आती है लेकिन बंदरबांट होने से आदिवासियों का कल्याण नाममात्र का ही होता है. नेता, अफसर आदिवासियों के नाम पर बनी योजनओं से मालामाल होते हैं और धरातल पर विकास शून्य और कागजों में विकास की गंगा बहती नजर आती है.

खूंटी में आज ज्यादातर आदिवासियों ने अफीम की खेती को ही अपना रोजगार बना लिया है. पांच वर्ष में 288 एफआईआर दर्ज हुआ है और 350 से अधिक आदिवासी जेल में है. रोजगार के अवसर में बढ़ोतरी नहीं होने से प्रत्येक वर्ष एनडीपीएस एक्ट के तहत अफीम की खेती करने वाले आदिवासी जेल भेजे जाएंगे और संख्या में कमी होती जाएगी. यह सोचने समझने वाला कोई नहीं है कि अफीम की खेती गैरकानूनी है. कई मुखिया भी अफीम की खेती में जुटे हैं. लोग जागरूक होंगे तभी आदिवासी समाज को बचाया जा सकेगा.

Last Updated : Aug 9, 2022, 9:28 AM IST
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