खूंटीः जिले में एक मुस्लिम महिला सांप्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल हैं. वो महिला हैं साजदा खातून. साजदा 70 साल की उम्र में भी महावीरी पताका का दुकान लगाती है. इस काम में पूरा परिवार उनका साथ देता है. साजदा इस काम को इबादत मानती हैं.
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रामनवमी के मौके पर महावीरी पताका सिलकर उसे बेचने की 50 साल पुरानी परंपरा खूंटी के मरहूम हुसैन के परिवार की है, जिसे वो बखूबी अंजाम दे रहे हैं. महज एक शौक से शुरू होकर आज जुनून बन चुके मरहूम हुसैन के परिवार के लिए महावीरी पताका की सिलाई खुदा के इबादत है. 70 वर्षीय साजदा खातून को अपने इस काम में पूरे परिवार का साथ मिलता है. यही कारण है कि एक झंडे से शुरू हुई परंपरा आज हजारों झंडे तक जा पहुंची है.
बताते चले कि साजदा खातून की जब से शादी हुई तब से लेकर आज तक झंडा सिल अपने परिवार का भरण पोषण कर रही है. उसका कहना है कि रामनवमी पर्व के साथ-साथ सालों भर उसके पास महावीर पताके उपलब्ध रहते हैं. झंडों के सिलने की तैयारी एक माह पूर्व शुरू हो जाती है, इस दौरान पवित्रता का पूरा ख्याल रखा जाता है.
खूंटी में रामनवमी का गौरवशाली इतिहास रहा है. यहां की रामनवमी 83 साल पुरानी है और इसकी शुरुआत सन 1939 में जुलूस के साथ हुई थी. तब से हर साल इसे भव्य तरीके से मनाने की परंपरा जारी है. प्रारंभिक 10 वर्षों तक खूंटी में रामनवमी सिर्फ एक दिन चैत शुल्क नवमी तिथि को मनाई जाती थी, लेकिन अब धीरे-धीरे खूंटी की आबादी बढ़ती गयी और इसके साथ-साथ रामनवमी मनाने का स्वरुप भी बदलता गया.