खूंटी: जिला में आनाथ आलय के बच्चों और वृद्धाश्रम में रहने वाले बुजुर्गों के सामने पोषण की गंभीर संकट पैदा हो गयी है. साथ ही डेढ़ सौ कर्मचारी भी अनाथाश्रम में कार्यरत हैं. जिला के विभिन्न अनाथाश्रम में बीते सात महीनों से पोषण की राशि नहीं आयी है. जहां के अनाथ बच्चे और बुजुर्ग किसी तरह अनाथाश्रम के प्रबंधकों के रहमोकरम पर जिंदा हैं. अनाथ आश्रमों में लगातार लाखों रुपये का राशन पानी खूंटी जैसे छोटे जिले में उधार पर ही चल रहा है. अब दुकानदार भी उधार की खाता बही का संचालन करने से कतराने लगे हैं. उधार का राशन पानी अब अनाथों और बुजुर्गों को कुपोषित और भुखमरी की कगार पर पहुंचा सकता है. आखिर इसके लिए जवाबदेह कौन होगा?
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क्या कहते हैं डीसी: इधर खूंटी डीडीसी नीतीश कुमार सिंह ने मामले पर गंभीरता दिखाई और कहा कि ईटीवी भारत ने मामले की जानकारी दी है. इसे संज्ञान में ले लिया गया है. मामले की जांच कराई जाएगी और जल्द ही फंड मुहैया कराई जाएगी ताकि बच्चों के पोषण में कमी न हो पाए. खूंटी में चार बाल गृह हैं, जिसमें सबसे पहला बाल गृह सहयोग विलेज जहां करीब 60 बच्चे हैं. दूसरा, आशा किरण जहां बड़े व छोटे बच्चों को मिलाकर 60, तीसरा कैलेवरी चैपल ट्रस्ट में 20 अनाथ बच्चे हैं. इन्हीं संस्थाओं में मानव तस्करी में मुक्त कराई गई पीड़िता भी रहती हैं. वहीं चौथे बाल गृह आशा मोलिशा में एक भी बच्चे या बड़े नहीं हैं.
आने वाले लंबे समय तक यदि राज्य सरकार की ओर से अनाथाश्रमों के पोषण-वित्त की व्यवस्था नहीं होती है तो अनाथाश्रमों के बच्चे और बुजुर्ग भुखमरी के साथ-साथ कुपोषण की समस्या से भी जूझते मिलेंगे. साथ ही कुपोषण और अन्य बीमारियों की वजह से आकस्मिक खर्च भी बढ़ने की संभावना है. झारखंड सरकार अनाथ आश्रमों को बगैर वित्तीय सहयोग के कितने समय तक चला पाएगी यह बड़ा सवाल है. वित्तीय सहयोग के बगैर अनाथों और बुजुर्गों का सामाजिक कल्याण असंभव सा प्रतीत होता है.