खूंटी: कभी कुख्यात नक्सली कुंदन पाहन और डिम्बा पाहन के साथ कई बड़े कांड को अंजाम देने वाला पूर्व नक्सली लादू मुंडा आज ग्रामीणों के लिए मसीहा बन गया है. लादू 18 बरस से कम उम्र में ही नक्सली संगठन में शामिल हो गया था और फिर माओवादियों के नक्शे कदम पर चलता रहा. 9 साल बाद लादू को समझ आया कि नक्सलवाद का रास्ता गलत है. फिर लादू ने सरकार की सरेंडर पॉलिसी का लाभ उठाया और 2017 में उसने पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया. कभी सरकार के विकास कार्यों का विरोध करने वाला लादू आज लोगों को सरकारी सुविधाएं दिलाने में मदद कर रहा है.
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लोगों को दिलाया सरकारी योजनाओं का लाभ
लादू ने बताया कि जब वह जेल में बंद था तब उसे जिला के बारे में जानकारी मिली. जिला में सरकार की तरफ से चलाए जा रहे विकास कार्यों के बारे में सूचना मिली. उसने बताया कि जब वह संगठन में काम करता था तब कभी नहीं सोचता था कि स्कूल और कॉलेज बंद कराएंगे. विकास कार्यों को रोकने की बात उसके दिमाग में नहीं आती थी. बेल मिलने के बाद लादू ने ग्रामीणों के साथ बैठक की और सरकारी योजनाओं के बारे में पूरी जानकारी दी. लोगों को बताया कि सरकारी योजनाएं उनके लिए अच्छी है. योजनाओं का लाभ लेना चाहिए. इसके बाद कई लोग लादू के बताए रास्ते पर चल पड़े. अब गांव में ऐसी स्थिति है कि कोई भी विकास का काम हो लादू लोगों को आगे बढ़कर योजना का लाभ लेने के लिए उत्साहित करता है.
लादू के बताए रास्ते पर चल पड़े ग्रामीण
जब लादू जेल से छूटा तब पत्थलगड़ी को लेकर काफी विरोध हो रहा था. ग्रामीणों को समझाना आसान नहीं था. इसके बाद भी उसने हिम्मत से काम लिया और धीरे-धीरे लोगों को सरकार की विकास योजना की जानकारी दी और इसके लाभ भी बताए. ज्यादातर ग्रामीणों ने लादू की बात मानी. लादू ग्रामीणों को बताता था कि सरकार से मांग करे कि अस्पताल में डॉक्टर की सेवा होनी चाहिए. जर्जर सड़क को दुरुस्त कराया जाए और पीने के पानी की भी व्यवस्था की जाए. सरकार का विरोध करना है तो संवैधानिक तरीके से आंदोलन करे ना कि गलत तरीके से लड़ाई लड़े.
नक्सल संगठन में रहते हुए ही पास की मैट्रिक परीक्षा
लादू ने बताया कि संगठन से जुड़ने के बाद भी उसने पढ़ाई नहीं छोड़ी. संगठन से जुड़े रहने के दौरान ही उसने मैट्रिक की परीक्षा भी पास कर ली. वह सुबह में स्कूल जाता था और दोपहर में स्कूल से छूटने के बाद संगठन के लिए भी काम करता था. लादू कुंदन पाहन के लिए काम करता था. एक दिन पढ़ाई की बात कुंदन को पता चल गई. कुंदन ने भी उसे पढ़ने से नहीं रोका. कुंदन ने ही उसे नक्सल संगठन में शामिल कराया था. कुंदन उससे कहता था कि संगठन का काम करो पढ़ने से कोई दिक्कत नहीं है.
पढ़ाई के दौरान लादू को सरकारी सिस्टम के बारे में भी जानकारी मिली. लादू ने बताया कि पढ़ाई के दौरान ही कई बार उसके दिमाग में विचार आता था कि नक्सलवाद छोड़कर मुख्य धारा से जुड़ जाए और एक दिन ऐसा ही हुआ. आज लादू ना सिर्फ खुशहाल जिंदगी जी रहा है बल्कि युवाओं को भटकने से रोक भी रहा है. लादू ग्रामीणों के लिए किसी मसीहा से कम नहीं.