खूंटीः झारखंड के खूंटी, सिमडेगा, गुमला, लोहरदगा, सिंहभूम, सरायकेला सहित अन्य जनजातीय बहुत जिलों के आदिवासियों का लोक जीवन मूल रूप से प्रकृति और कृषि पर आधारित है. कृषक समाज लोक पर्वों और लोकगीतों के माध्यम से अपने भावों को व्यक्त करता रहा है. इस लोक पर्व का सीधा संबंध कृषि और प्रकृति से है. करम या करमा पर्व बहनें अपने भाइयों की सुख समृद्धि के लिए करती हैं.
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झारखंड के दक्षिणी भागों में जनजातीय समाज द्वारा कई तरह के पर्व-त्योहार मनाये जाते (Karam Puja in Jharkhand) हैं, जिनमें सरहुल, करमा, जितिया प्रमुख हैं. इनमें करमा या करम का पर्व (Tribal Festival Karam) ऐसा है, जिसे आदिवासी और सदान (गैर आदिवासी) सभी कोई समान भक्ति और निष्ठा से मनाते हैं. अंतर यही है कि जनजातीय समाज में पूजा अनुष्ठान गांव के पाहन पूजा संपन्न कराते हैं. वहीं सदानों के घरों में पंडितों द्वारा पूजा-पाठ कराया जाता है. करमा का त्योहार भाद्रपद (भादो) महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है. जब खरीफ फसल की बुआई का काम खत्म हो जाता है तो पूरा समाज मिलकर अच्छी फसल की कामना करते हुए नाच-गाकर उत्सव मनाता है. वहीं रबी फसल की कटाई के बाद और वसंत के आगमन पर सरहुल का पर्व मनाया जाता है.
करमा पर्व परिश्रम और भाग्य को इंगित करता है. करमा पर्व में पाहन और पंडित कथा के दौरान करम और धरम नामक दो भाइयों की कहानी सुनाते हैं. करम को धर्म और निष्ठा पर विश्वास नहीं था, जबकि इसका छोट भाई धरम को धर्म-कर्म में काफी भरोसा था. छोटे भाई धरम की तरक्की देख बड़े भाई को इर्ष्या होती है और वह छोटे भाई को बर्बाद करने का षडयंत्र रचता रहता था. लेकिन उसे कभी सफलता नहीं मिलती और अंततः वह अपनी गलती स्वीकार कर लेता है और दोनों भाई मिलजुल कर रहने लगते हैं. हालांकि करमा पर्व के दैारान अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग कथा सुनायी जाती है, लेकिन सभी कुछ मिलती जुलती हैं. करमा पर्व बहनें अपने भाइयों के दीर्घायु और समृद्धि की कामना (Worship for brothers prosperity) करने के लिए करती हैं. भादो एकादशी के दिन बहनें दिन भर निर्जला उपवास करती (brother sister festival) हैं और रात को करम डाली की पूजा कर भाइयों और गांव के लोगों के बीच प्रसाद और जावा का वितरण करने के बाद ही अन्न-जल ग्रहण करती हैं. करम की डाली को ही करम देवता का प्रतीक माना जाता है.
करमा एकादशी की पूजा के सात दिन पहले महिलाएं, बच्चियां और युवतियां सात तरह के अनाज को अपने घर में पत्ते या मिट्टी के बर्तन में बालू डालकर उगाती हैं. हर दिन स्नान आदि से पवित्र होकर सात दिनों तक उसमें जल देती हैं, इसे ही जावा कहा जाता है. करम पर्व में जावा एक प्रमुख पूजन सामग्री है. करम डाली की पूजा के बाद गांव के महिला-पुरुष रात भर ढोल-मांदर की थाप पर नाचते-गाते हैं और सुबह सूर्याेदय से पहले करम की डाली को नदी या तालाब में विसर्जित कर दिया जाता है.
आदिवसी समाज में लड़कियां करम के एक दिन पहले तालाबों में फूल चुनने जाती हैं और करम राजा को निमंत्रण देती हैं. झारखंड के कुछ जनजातीय इलाकों में करमा का त्योहार भादो महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को नहीं, बल्कि जीवित्पुत्रिका पर्व या जितिया (जिउतिया) के दिन अर्थात आश्विन महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है. उस दिन गांव के अखड़ा में करम की डाली लगाकर कुंवारी कन्याएं करम देवता की पूजा-अर्चना करती हैं. कर्रा के पहाड़टोली, डुमरगड़ी, चिदी सहित कई गांवों में कुंवारी कन्याएं अच्छे घर-वर पाने के लिए जितिया का भी उपवास करती हैं.