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नक्सलवाद और अफीम की खेती के लिए बदनाम खूंटी में केसर की खुशबू - खूंटी में नक्सली की खेती

झारखंड का धुर नक्सल प्रभावित जिला खूंटी अफीम की खेती को लेकर भी बदनाम रहा है. यहां 10 लाख के इनामी नक्सली चरकु पहान और 5 लाख के इनामी नक्सली नागेश्वर पहान ने केसर की खेती शुरू की है. ये दोनों साल 2012 में आत्मसमर्पण कर समाज की मुख्यधारा से जुड़ चुके हैं और अब जिले की छवि को बदलने की कोशिश कर रहे हैं.

cultivating saffron
केसर की खुशबू
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Published : Nov 2, 2020, 7:10 PM IST

Updated : Nov 2, 2020, 8:29 PM IST

खूंटीः झारखंड में नक्सलियों के सबसे खरनाक गढ़ खूंटी में कभी माओवादियों की चहलकदमी, बंदूकों की तर्रतराहट और बम के धमाके आम थे. पत्थलगड़ी और अफीम की खेती के लिए भी ये जिला सुर्खियों में रहता था. लेकिन अब यहां विकास की बयार बह रही है और जल्द ही यहां की फिजा में केसर की खुश्बू बिखरने वाली है. जिन नक्सलियों के नाम से इलाके के ग्रामीण थर्राते थे, आज वही समाज की मुख्यधारा में लौटकर मिसाल बन चुके हैं. दरअसल, पीएलएफआई के पूर्व एरिया कमांडर चरकु पहान और नागेश्वर पहान करीब 8 साल पहले हिंसा का रास्ता छोड़ चुके हैं. बीते दिनों उन्होंने यूट्यूब के जरिए केसर लगाने की तकनीक सीखी और बीज मंगाकर खेती शुरू कर दी.

देखें स्पेशल स्टोरी

केसर की खेती की पहल

चरकु पहान ने ईटीवी भारत को बताया कि आत्मसमर्पण के बाद उन्होंने धान की खेती शुरू की लेकिन उसमें ज्यादा मुनाफा नहीं होता था. बीते दिनों उन्होंने यूट्यूब पर केसर की खेती के बारे में देखा तो उन्होंने भी बीज मंगाकर इसकी खेती शुरू कर दी. वहीं नागेश्वर पहान ने कहा कि जिले में चोरी-छिपे अफीम की खेती होती रही है, जिसकी वजह से पुलिस के छापे और युवाओं के अपराध के दलदल में फंसने का रिस्क बना रहता है. केसर की खेती से मुनाफा बढ़ेगा और परेशानी भी नहीं होगी.

ये भी पढ़ें- लाखों मुश्किलों को धता बता किसान फूलचंद बने आत्मनिर्भर, बेटे को बनाया इंजीनियर

ग्रामीणों को मिली प्रेरणा

चरकु और नागेश्वर को प्रेरणा मानकर जिले के दूसरे ग्रामीण भी केसर की खेती करने की सोच रहे हैं. ग्रामीणों को उम्मीद है कि इससे मुनाफा होगा और खूंटी पर लगे अफीम और लाल आतंक के कलंक से भी छुटकारा मिलेगा. ग्रामीण बाजू पहान ने कहा कि कभी चरकु और नागेश्वर के नाम की दहशत थी लेकिन अब वे दोनों मिलकर गांव की छवि बदल रहे हैं. उन्होंने केसर की खेती से खुद तो मुनाफा कमाने की तरकीब ढूंढ निकाली है साथ ही वैसे ग्रामीणों को भी प्रोत्साहित कर रहे है जो अफीम की खेती करते आए हैं. अफीम का बीज 5 सौ रुपए किलो मिलता है जबकि केसर का बीज 70 हजार रुपए किलो. इसके बावजूद खूंटी के ग्रामीणों में बदलाव की चाहत साफ देखी जा सकती है. खेतों में लगी केसर की फसल चार महीने में तैयार हो जाएगी. केसर की लैब टेस्टिंग के बाद इसे बाजार में बेचा जा सकेगा.

केसर को जाफरान और सेफ्रॉन भी कहते हैं. जम्मू-कश्मीर में इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है. आम तौर पर एक किलो केसर की कीमत 1 लाख से 3 लाख रुपए तक हो सकती है. खास जलवायु में ही इसके पौधे लगाए जा सकते हैं, खूंटी का मौसम इसके अनुकूल माना जा रहा है. अगस्त-सितंबर महीने में इसकी बोआई की जाती है और दिसंबर-जनवरी में फसल तैयार हो जाती है. केसर के एक फूल से तीन केसर अलग करना पड़ता है. इस तरह करीब दो लाख फूलों से करीब एक किलो केसर प्राप्त होता है.

खूंटीः झारखंड में नक्सलियों के सबसे खरनाक गढ़ खूंटी में कभी माओवादियों की चहलकदमी, बंदूकों की तर्रतराहट और बम के धमाके आम थे. पत्थलगड़ी और अफीम की खेती के लिए भी ये जिला सुर्खियों में रहता था. लेकिन अब यहां विकास की बयार बह रही है और जल्द ही यहां की फिजा में केसर की खुश्बू बिखरने वाली है. जिन नक्सलियों के नाम से इलाके के ग्रामीण थर्राते थे, आज वही समाज की मुख्यधारा में लौटकर मिसाल बन चुके हैं. दरअसल, पीएलएफआई के पूर्व एरिया कमांडर चरकु पहान और नागेश्वर पहान करीब 8 साल पहले हिंसा का रास्ता छोड़ चुके हैं. बीते दिनों उन्होंने यूट्यूब के जरिए केसर लगाने की तकनीक सीखी और बीज मंगाकर खेती शुरू कर दी.

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केसर की खेती की पहल

चरकु पहान ने ईटीवी भारत को बताया कि आत्मसमर्पण के बाद उन्होंने धान की खेती शुरू की लेकिन उसमें ज्यादा मुनाफा नहीं होता था. बीते दिनों उन्होंने यूट्यूब पर केसर की खेती के बारे में देखा तो उन्होंने भी बीज मंगाकर इसकी खेती शुरू कर दी. वहीं नागेश्वर पहान ने कहा कि जिले में चोरी-छिपे अफीम की खेती होती रही है, जिसकी वजह से पुलिस के छापे और युवाओं के अपराध के दलदल में फंसने का रिस्क बना रहता है. केसर की खेती से मुनाफा बढ़ेगा और परेशानी भी नहीं होगी.

ये भी पढ़ें- लाखों मुश्किलों को धता बता किसान फूलचंद बने आत्मनिर्भर, बेटे को बनाया इंजीनियर

ग्रामीणों को मिली प्रेरणा

चरकु और नागेश्वर को प्रेरणा मानकर जिले के दूसरे ग्रामीण भी केसर की खेती करने की सोच रहे हैं. ग्रामीणों को उम्मीद है कि इससे मुनाफा होगा और खूंटी पर लगे अफीम और लाल आतंक के कलंक से भी छुटकारा मिलेगा. ग्रामीण बाजू पहान ने कहा कि कभी चरकु और नागेश्वर के नाम की दहशत थी लेकिन अब वे दोनों मिलकर गांव की छवि बदल रहे हैं. उन्होंने केसर की खेती से खुद तो मुनाफा कमाने की तरकीब ढूंढ निकाली है साथ ही वैसे ग्रामीणों को भी प्रोत्साहित कर रहे है जो अफीम की खेती करते आए हैं. अफीम का बीज 5 सौ रुपए किलो मिलता है जबकि केसर का बीज 70 हजार रुपए किलो. इसके बावजूद खूंटी के ग्रामीणों में बदलाव की चाहत साफ देखी जा सकती है. खेतों में लगी केसर की फसल चार महीने में तैयार हो जाएगी. केसर की लैब टेस्टिंग के बाद इसे बाजार में बेचा जा सकेगा.

केसर को जाफरान और सेफ्रॉन भी कहते हैं. जम्मू-कश्मीर में इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है. आम तौर पर एक किलो केसर की कीमत 1 लाख से 3 लाख रुपए तक हो सकती है. खास जलवायु में ही इसके पौधे लगाए जा सकते हैं, खूंटी का मौसम इसके अनुकूल माना जा रहा है. अगस्त-सितंबर महीने में इसकी बोआई की जाती है और दिसंबर-जनवरी में फसल तैयार हो जाती है. केसर के एक फूल से तीन केसर अलग करना पड़ता है. इस तरह करीब दो लाख फूलों से करीब एक किलो केसर प्राप्त होता है.

Last Updated : Nov 2, 2020, 8:29 PM IST
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