खूंटीः जिले के मुरहू में एक बात जोर शोर से फैली कि गांव में एक बच्चे की बलि देने का प्रयास किया जा रहा है. ये खबर जंगल में आग की तरह फैल गयी और गांव में जितनी मुंह उतनी बातें होने लगीं. इसको लेकर लोगों के अफवाह का रूप ले लिया. लेकिन मामला गांव से बाहर नहीं निकला. इस बीच एक सामाजिक कार्यकर्ता ने पहल करते हुए एसपी को आवेदन देकर पूरे मामले की जांच की मांग की. इसके बाद पुलिसिया जांच में बलि देने की सारी सच्चाई सामने आ गयी.
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क्या है पूरा मामलाः जानकरी के अनुसार ये घटना 1 जून की बताई जा रही है. मुरहू थाना क्षेत्र में 8 वर्षीय बच्चे की बलि देने के की कोशिश की गयी. सामाजिक कार्यकर्ता के आवेदन में बताया कि मुरहू थाना के मारूंग टोली गांव में सोमा कुम्हार ने अपने 8 वर्षीय बच्चे की बलि होने से बचा लिया. 1 जून को सोमा कुम्हार का बेटा गुम हो गया और वह अपने बेटे को ढूंढते हुए रैनू सिंह के घर पहुंचा. वहां उसने अपने बेटे को अजीबोगरीब हालत में पाया और शोर मचाकर ग्रामीणों को बुलाया. इसके बाद ग्रामसभा की बैठक हुई, जिसमें रैनू सिंह ने बलि के प्रयास की बात स्वीकार की साथ ही भविष्य में ऐसा नहीं करने की बात कहते हुए माफी मांग ली.
सामाजिक कार्यकर्ता लक्ष्मी बाखला के आवेदन के अनुसार उन्होंने ग्राम प्रधान पीटर मुंडा से मामले की जानकारी ली. जिसमें पाया गया कि ग्राम सभा में आरोपी रैनू सिंह पर 8 हजार रुपये का जुर्माना लगा और पुलिस केस ना करने पर समझौता हुआ. जानकारी मिलने पर लक्ष्मी बाखला ने मुरहू थाना प्रभारी से संपर्क किया थाना प्रभारी ने बताया कि मामला काफी पुराना है. ग्रामसभा की बैठक में दोनो पक्षों के बीच समझौता करा दिया गया था. पुलिस को इस मामले में कोई शिकायत नहीं मिली थी. लेकिन जब एसपी अमन कुमार ने डीएसपी अमित कुमार के नेतृत्व में जांच कराई तो नर बलि का मामला पूरी तरह से अफवाह साबित हुआ. इस मामले को लेकर खूंटी के रेवा गांव निवासी एक सामाजिक कार्यकर्ता लक्ष्मी बाखला ने सीआइडी मुख्यालय और खूंटी एसपी से लिखित शिकायत कर मामले की जांच करने की मांग की थी. इसको लेकर एसपी ने ग्रामीणों से अफवाहों पर ध्यान ना देने की अपील की है.
बलि नहीं पूजा के लिए हुआ था बच्चे का इस्तेमालः खूंटी एसपी अमन कुमार ने बताया कि महिला द्वारा दिये आवेदन पर मामले की जांच कराई गई तो नर बलि की अफवाह निकली. लेकिन जांच में पुलिस को पता चला कि उस दिन रैनू सिंह अपने घर के आंगन में पत्थर पूजा (एक प्रकार का पूजा) कर रहा था. रैनू सिंह की एक बेटी मानसिक तौर पर बीमार रहती है, जिसके कारण उसने पत्थर पूजा कर ये पता करने की कोशिश कर रहा था कि उसकी बेटी को जो बीमारी है वो कहां से आया है.
जांच में ये भी बात सामने आई कि इस पूजा में एक बच्चे की जरूरत पड़ती है और उस बच्चे को एक चावल रखे सिलबट्टे की जरूरत होती है. सिल पर बैठाकर उसे बट्टे (लोढ़ा) से घुमाया जाता है. सिट रुकते ही उसे पता चलता कि बीमारी कहां से आई है लेकिन उससे पहले ही गांव का किसी व्यक्ति द्वारा अफवाह फैला दिया गया कि बच्चे को बलि दी जा रही है. हालांकि मामले पर गांव में ग्राम सभा हुई जिसमें ये स्पष्ट हुआ कि किसी तरह की बलि नहीं दी जा रही था, ये सिर्फ एक पूजा की प्रक्रिया, जिसे रैनू सिंह द्वारा पूरा किया गया था. घटना के दो दिन बाद ग्राम सभा में रैनू सिंह ने स्वीकार किया कि वो परिजनों से पूछे बगैर बच्चे को पूजा में शामिल किया, जिसके कारण ग्राम सभा ने उसपर आठ हजार का जुर्माना लगाया.