खूंटीः जिला की एक नाबालिग के साथ ऐसी घिनौनी हरकत हुई है जिससे समाज शर्मसार हो जाए. कभी इस नाबालिग को आठ युवकों ने अपना शिकार बनाया था. वो उससे उभरी भी नहीं थी कि पीड़िता को जीवन भर साथ रखने वाला प्रेमी उसे गर्भवती कर फरार हो गया. इसके ढुकु प्रथा की बानगी मानी जा रही है. जिसकी जद में इलाके के लड़के-लड़कियां आ रहे हैं.
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खूंटी में ढुकु प्रथा खिलाफ जागरुकता अभियान चलाने के लिए जिला बाल कल्याण समिति पहल कर रही है. यह मामला जिला के मारंगहादा थाना क्षेत्र का है. उस गांव में समाज ने पहले उस नाबालिग को बहु की तरह स्वीकार किया. लेकिन जैसे ही गर्भवती हो गई तो उसका कथित पति उसे छोड़कर कहीं चला गया. उसके बाद क्या था ससुराल वालों ने घर से निकाल दिया उसके बाद मायके गई तो वहां से भी उसे भगा दिया. गर्भवती नाबालिग सीडब्ल्यूसी पहुंची तो उसे तत्काल बेहतर चिकित्सा के लिए सेल्टर होम भेज दिया.
बाल कल्याण समिति के पास जब मामला पहुंचा तो उसकी मानसिक एवं शारिरिक कमजोर होने के कारण उसे इलाज के लिए भेज दिया है. पीड़िता का बयान लिया जाएगा उसके बाद आगे की कार्रवाई करेगी और उसे न्याय दिलाने की पहल शुरू होगी. इसको लेकर ढुकु प्रथा के खिलाफ जागरुकता अभियान चलाने की तैयारी की जा रही है. जिसमें नाबालिग अगर इस प्रथा के दायरे में आते है तो उसे चिन्हित कर कार्रवाई की जाएगी.
बाल कल्याण समिति अध्यक्ष तनुश्री सरकार ने कहा कि ढुकु प्रथा के दायरे में अगर नाबालिग गर्भवती होती है तो सुसंगत धाराओं के तहत कार्रवाई होगी और उसे न्याय दिलाने के लिए बाल कल्याण समिति पहल करेगा. उन्होंने कहा कि जिला का ढुकु प्रथा आम होता जा रहा है और इस प्रथा में कई ऐसे नाबालिग भी शामिल हो गए है जो जिला के लिए बेहतर नहीं है. यहां इस प्रथा के तहत कई बच्चे ट्रैफिकिंग के शिकार होते है जिसे रोकना सीडब्ल्यूसी की जिम्मेदारी है. उन्होंने कहा कि इस प्रथा के खिलाफ पहले जागरूक किया जाएगा उसके बाद सख्ती से कार्रवाई शुरू होगी.
क्या है ढुकु प्रथाः एक-दूसरे से प्यार करने वाले प्रेमी जोड़े शादी के बंधन में बंधे बिना साथ रहने का फैसला लेते हैं, उसे लिव इन रिलेशनशिप कहा जाता है. लेकिन झारखंड के कई आदिवासी इलाकों में ढुकू के नाम से लिव इन में रहने की प्रथा एक अरसे से चली आ रही है. ढुकू जोड़ी उम्र बढ़ने पर भी शादी करते हैं. ढुकु प्रथा सबसे ज्यादा झारखंड के गुमला, खूंटी, बसिया, घाघरा, पालकोट, चटकपुर, तोरपा, सिमडेगा और मनातू जैसे जिलों और यहां के गांवों में देखी जाती है.
साल 2019 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इन जिलों के गांवों में कुल 358 कपल्स लिव इन रिलेशनशिप में रहते थे. पूरे झारखंड में करीब 2 लाख कपल्स ढुकु प्रथा के तहत रहते हैं. आदिवासियों में ढुकू प्रथा प्यार ही नहीं बल्कि मजबूरी की वजह से भी कायम है. जो गरीबी और मजबूरी में भी इस प्रथा के रास्ते पर चलने को तैयार हो जाते हैं. क्योंकि शादी करने के लिए इस प्रेमी जोड़े को पूरे गांव को दावत देनी पड़ती है. लेकिन पर्याप्त मात्रा में पैसा ना होने की वजह से वो ढुकु प्रथा का सहारा लेते हैं.
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ढुकू का तात्पर्यः ढुकू, आदिवासी समाज में जिसका शाब्दिक अर्थ ढुकना होता है, जिसका मतलब है कि घर में प्रवेश करना. अगर कोई महिला शादी किए बिना किसी के साथ किसी के घर में रहती है तो उसे ढुकु या ढुकनी महिला कहा जाता है. इसका सीधा अर्थ है कि वो महिला जो किसी के घर में आ चुकी है घुस गयी हो. बिना शादी के ऐसे प्रेमी जोड़े लिव इन रिलेशनशिप में रहते हैं, जिन्हें ढुकु जोड़ा कहा जाता है.
शादी के लिए गांव को देनी पड़ती है दावतः गरीब आदिवासी प्रेमी जोड़ा जब शादी के लिए तैयार होता है तो उसे समाज में मान्यता देने के लिए कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. अगर ऐसे प्रेमी जोड़े शादी करने की इच्छा रखते हैं तो इसके एवज में एक मोटी रकम खर्च करके पूरे गांव को दावत देनी पड़ती है. लड़की वाले अपने गांव को अलग खिलाते हैं तो लड़का पक्ष की ओर से उनके गांव को अलग दावत दी जाती है. इसमें मांस, मदिरा, चावल का भी इंतजाम करना पड़ता है. ऐसे में दिहाड़ी मजदूर या खेती पर निर्भर रहने वाले गरीब इतनी मोटी रकम खर्च करने के डर से ढुकु जोड़ा बन जाते हैं.
ढुकु जोड़ी और उनके बच्चों को समाज में नही मिलता सम्मानः ऐसे प्रेमी जोड़े बिना शादी के ही साथ रहना शुरू कर देते हैं. इसलिए ये महिलाएं ढुकू कहलाती हैं. इन्हें समाज में इज्जत नहीं मिलती और ना ही ढुकू जोड़ी के बच्चों को कानूनी अधिकार मिलता है. इसके साथ ही ढुकु महिलाओं को सिंदूर लगाने की इजाजत तो मिलती है लेकिन परिजनों के साथ घर की पूजा में शामिल होने का अधिकार उन्हें नहीं दिया जाता है. ऐसी कई महिलाएं आज भी ससुराल में तो है लेकिन उन्हें वो सम्मान आज तक नहीं मिला है.
इतना ही नहीं ढुकु जोड़ी से जन्म बच्चे को पिता का नाम और संपत्ति से महरूम रखा जाता है. इनके बच्चों को समाज और सरकारी दस्तावेजों में पिता का नाम नहीं दिया जाता है. बच्चों के सरकारी दस्तावेज तो बनते हैं लेकिन उनमें पिता का नाम अंकित नहीं किया जाता है. जिसकी वजह से ऐसे प्रेमी जोड़े के बच्चों को आने वाले समय में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. क्योंकि इनके प्रेम की सजा इनके आने वाली नस्लों को भी दिया जाता है. मजबूरी में अपनाई गयी ढुकु प्रथा आज के स्वस्थ समाज के लिए किसी नासूर से कम नहीं है.