जामताड़ा: लॉकडाउन में गरीब दंपत्ति आदिवासियों को काफी परेशानी हो रही है. उनके घरों में चूल्हे नहीं जल रहे हैं. सरकार लॉक डाउन की स्थिति में कोई भूखा नहीं रहे इसके लिए कई कदम उठाए जा रहे हैं. उन्हें राशन देने का काम कर रही है. साथ ही कई योजनाएं चला रही है.
बावजूद इसके ऐसे कई गरीब परिवार ऐसे हैं, जिनके घर में चूल्हा तक जल पा रहा है. ऐसा ही एक मामला जामताड़ा के गरीब आदिवासी दंपति का सामने आया है. बहुजन मुर्मू और उसकी बीमार पत्नी के घर में इस लॉकडाउन में राशन नहीं रहने के कारण चूल्हा नहीं जल पा रहा है. इधर-उधर से कई दिनों तक मांग कर भूख मिटायी.
राशन पानी का जुगाड़ करने का भी प्रयास किया, पर नहीं हो पाया. उसका कहना है कि वह मजदूरी करके किसी तरह खाता पीता है. लॉकडाउन में काम नहीं मिलने पर कई दिनों तक मांग कर खाना खाया. बाद में प्रशासन को जब खबर लगी तो कुछ राशन दिया गया. बाबू जान मुर्मू का कहना है कि उसका कोई नहीं है. उसकी बीमार पत्नी है. इलाज के लिए पैसे भी नहीं है.
नहीं मिलता है सरकारी योजना का कोई लाभ
उसके पास न राशन है न आयुष्मान कार्ड. यह दंपत्ति आदिवासी जामताड़ा के बिजली विभाग सामने एक बागान में किसी तरह गुजर बसर करता हैं . उनका गांव मोचीयङीह हैं. यहीं रहकर किसी तरह जिंदगी की गुजर बसर करते हैं, लेकिन जिस बागान की देखरेख करते हैं वह भी सुध नहीं लेता है.
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न ही राशन पानी का जुगाड़ करता है. आलम यह है कि इस दंपत्ति के पास ना अपना मकान है न राशन कार्ड है न आयुष्मान कार्ड है. और न ही पेंशन ही मिल पाती है. आपदा और विश्व महामारी गरीबों के लिए अभिशाप ही बनकर आती है.
वैसे तो सरकार और प्रशासन गरीबों के लाभकारी योजनाओं का लाभ दिलाने के लिए दम भरती है, परंतु इस आदिवासी दंपत्ति परिवार की कहानी सरकार और प्रशासन के सारे दावों की पोल खोल रही है. जरूरत है ऐसे पीड़ित परिवारों को सरकारी लाभ पहुंचाने की.