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जामताड़ाः डीवीसी विस्थापित गांवों में मूलभूत सुविधाओं का अभाव, जनता में भारी आक्रोश - DVC displaced village in Jamtara

जामताड़ा जिले में डीवीसी के दर्जनों विस्थापित गांवों में आज भी बुनियादी सुविधाएं नहीं पहुंच पाईं हैं.ग्रामीण जनता सड़क, बिजली, पानी आदि के लिए शासन प्रशासन से गुहार लगा रही है, लेकिन सिवाय आश्वासन के कुछ नहीं मिल रहा.

विस्थापित गांव
विस्थापित गांव
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Published : Sep 4, 2020, 7:02 PM IST

जामताड़ाः जिले में दर्जनों डीवीसी के विस्थापित गांव हैं, जहां जनता को आज भी बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार जैसी बुनियादी सुविधाओं से महरूम रहना पड़ता है, जिसके प्रति न सरकार गंभीर है न ही प्रशासन और न ही डीवीसी प्रशासन. नतीजा आज भी डीवीसी विस्थापित गांव में जनता अपने हक अधिकार की लड़ाई लड़ रही हैं, लेकिन आश्वासन के सिवाय उन्हें आज तक कुछ हासिल नहीं हो पाया है.

देखें पूरी खबर.

मुफ्त बिजली पानी देने की मांग

जामताड़ा जिले के डीवीसी डैम के विस्थापित गांव के ग्रामीणों का कहना है कि डैम में उनका जमीन चली गईं उन्हीं की जमीन से दूसरा कोई खुशहाल हो रहा है लेकिन उनका जिंदगी नर्क और अंधकारमय बन गई है.

डीवीसी द्वारा आज तक उन्हें एसआईपी योजना से कोई सुविधा मुहैया नहीं कराया गया ग्रामीण जनता का कहना है कि उन्हें बिजली और पानी मुफ्त दिया जाए. ग्रामीणों का कहना है की बिजली तो मिलती है लेकिन उन्हें इतना चुकाना पड़ता है कि वह दे नहीं पाते हैं रोजी रोजगार का भी गांव में समस्या है.

14 मौजा के दर्जनों गांव हुए विस्थापित

डीवीसी डैम के किनारे जामताड़ा जिला के दर्जनों गांव बसा हुए हैं, जोकि विस्थापित गांव है. लादना, चांद्रढीपा, गोवा कोला तालबेरिया मेजिया बिरगांव शामिल हैं, जो डैम के किनारे बसा हुआ है.

उनकी जमीन डैम में चली गई, जो भी खेती की जमीन थी वह भी डीवीसी डैम में चली गई, रोजी रोजगार का भी अभाव है. सिंचाई के भी कोई सुविधा नहीं है. बिजली और पानी के लिए भी परेशान होना पड़ता है. बिजली के लिए लंबा चौड़ा बिल भुगतान करना पड़ता है. असमर्थ होने पर उन्हें बिजली के लिए केस मुकदमा भी झेलना पड़ता है.

लंबे समय से कर रहे हैं आंदोलन

विस्थापित गांव के ग्रामीण दामोदर वैली मजदूर संघर्ष समिति के बैनर तले और अन्य विभिन्न संगठन के बैनर तले अपने हक और अधिकार की लड़ाई को लेकर कई बार आंदोलन चलाएं धरना प्रदर्शन से लेकर स्थानीय जनप्रतिनिधि प्रशासन और सरकार तक अपनी आवाज बुलंद कर चुके हैं. लेकिन आज तक उनकी ना मांगें पूरी हुईं, न डीवीसी प्रशासन ने कुछ दिया.

सिर्फ आश्वासन के सिवाय कुछ अभी तक हासिल नहीं हो पाया है. दामोदर वैली मजदूर संघर्ष समिति के नेता और विस्थापितों के लड़ाई लड़ रहे विस्थापित गांव के रॉबिन मिर्धा बताते हैं कि उनके दर्जनों विस्थापित 14 मौजा गांव की जमीन ङीवीसी में चली गई, लेकिन पानी बिजली शिक्षा जैसा मूलभूत सुविधा भी विस्थापित गांव में नहीं मिली.

यह भी पढ़ेंः हाई कोर्ट में बड़ा तालाब में प्रदूषण को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई, 2 सप्ताह में मांगा जवाब

इसके लिए कई बार आंदोलन भी किया सरकार का भी ध्यान आकृष्ट कराया गया, लेकिन अब तक कुछ हासिल नहीं हो पाया है. बहरल डीवीसी डैम के दर्जनों गांव अपने हक अधिकार और लड़ाई को लेकर गोलबंद होकर आवाज बुलंद करने लगे हैं और बिजली पानी शिक्षा स्वास्थ जैसे मूलभूत सुविधाओं देने की मांग कर रहे हैं. अब देखने वाली बात है कि डीवीसी से स्थापित ग्रामीण गांव की समस्या और उनकी मांग कब तक पूरी हो पाती है या नहीं.

जामताड़ाः जिले में दर्जनों डीवीसी के विस्थापित गांव हैं, जहां जनता को आज भी बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार जैसी बुनियादी सुविधाओं से महरूम रहना पड़ता है, जिसके प्रति न सरकार गंभीर है न ही प्रशासन और न ही डीवीसी प्रशासन. नतीजा आज भी डीवीसी विस्थापित गांव में जनता अपने हक अधिकार की लड़ाई लड़ रही हैं, लेकिन आश्वासन के सिवाय उन्हें आज तक कुछ हासिल नहीं हो पाया है.

देखें पूरी खबर.

मुफ्त बिजली पानी देने की मांग

जामताड़ा जिले के डीवीसी डैम के विस्थापित गांव के ग्रामीणों का कहना है कि डैम में उनका जमीन चली गईं उन्हीं की जमीन से दूसरा कोई खुशहाल हो रहा है लेकिन उनका जिंदगी नर्क और अंधकारमय बन गई है.

डीवीसी द्वारा आज तक उन्हें एसआईपी योजना से कोई सुविधा मुहैया नहीं कराया गया ग्रामीण जनता का कहना है कि उन्हें बिजली और पानी मुफ्त दिया जाए. ग्रामीणों का कहना है की बिजली तो मिलती है लेकिन उन्हें इतना चुकाना पड़ता है कि वह दे नहीं पाते हैं रोजी रोजगार का भी गांव में समस्या है.

14 मौजा के दर्जनों गांव हुए विस्थापित

डीवीसी डैम के किनारे जामताड़ा जिला के दर्जनों गांव बसा हुए हैं, जोकि विस्थापित गांव है. लादना, चांद्रढीपा, गोवा कोला तालबेरिया मेजिया बिरगांव शामिल हैं, जो डैम के किनारे बसा हुआ है.

उनकी जमीन डैम में चली गई, जो भी खेती की जमीन थी वह भी डीवीसी डैम में चली गई, रोजी रोजगार का भी अभाव है. सिंचाई के भी कोई सुविधा नहीं है. बिजली और पानी के लिए भी परेशान होना पड़ता है. बिजली के लिए लंबा चौड़ा बिल भुगतान करना पड़ता है. असमर्थ होने पर उन्हें बिजली के लिए केस मुकदमा भी झेलना पड़ता है.

लंबे समय से कर रहे हैं आंदोलन

विस्थापित गांव के ग्रामीण दामोदर वैली मजदूर संघर्ष समिति के बैनर तले और अन्य विभिन्न संगठन के बैनर तले अपने हक और अधिकार की लड़ाई को लेकर कई बार आंदोलन चलाएं धरना प्रदर्शन से लेकर स्थानीय जनप्रतिनिधि प्रशासन और सरकार तक अपनी आवाज बुलंद कर चुके हैं. लेकिन आज तक उनकी ना मांगें पूरी हुईं, न डीवीसी प्रशासन ने कुछ दिया.

सिर्फ आश्वासन के सिवाय कुछ अभी तक हासिल नहीं हो पाया है. दामोदर वैली मजदूर संघर्ष समिति के नेता और विस्थापितों के लड़ाई लड़ रहे विस्थापित गांव के रॉबिन मिर्धा बताते हैं कि उनके दर्जनों विस्थापित 14 मौजा गांव की जमीन ङीवीसी में चली गई, लेकिन पानी बिजली शिक्षा जैसा मूलभूत सुविधा भी विस्थापित गांव में नहीं मिली.

यह भी पढ़ेंः हाई कोर्ट में बड़ा तालाब में प्रदूषण को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई, 2 सप्ताह में मांगा जवाब

इसके लिए कई बार आंदोलन भी किया सरकार का भी ध्यान आकृष्ट कराया गया, लेकिन अब तक कुछ हासिल नहीं हो पाया है. बहरल डीवीसी डैम के दर्जनों गांव अपने हक अधिकार और लड़ाई को लेकर गोलबंद होकर आवाज बुलंद करने लगे हैं और बिजली पानी शिक्षा स्वास्थ जैसे मूलभूत सुविधाओं देने की मांग कर रहे हैं. अब देखने वाली बात है कि डीवीसी से स्थापित ग्रामीण गांव की समस्या और उनकी मांग कब तक पूरी हो पाती है या नहीं.

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