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जामताड़ाः ईंट भट्टों में काम करने को मजबूर मजदूरों के बच्चे, श्रम कानूनों की उड़ रहीं धज्जियां - मजदूर वर्ग के बच्चे

कोरोना महामारी के दौर में सबसे ज्यादा प्रभाव गरीब मजदूर वर्ग के लोगों पर पड़ रहा है. इसी कड़ी में जामताड़ा में मजदूर वर्ग के लोगों को जहां रोजगार के अभाव में आर्थिक संकट से जूझना पड़ रहा है. वहीं, उनके बच्चे भी ईंट-भट्टा में अपना बचपन झोंक रहे हैं, जिसके प्रति न सरकार का ध्यान है न ही प्रशासन का.

children of  working class are forced to work in brick-kiln
ईट-भट्टा में काम करने को मजबूर हैं मजदूर वर्ग के बच्चे
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Published : Mar 11, 2021, 5:42 PM IST

जामताड़ा: कोरोना महामारी के दौर में सबसे ज्यादा प्रभाव गरीब मजदूर वर्ग के लोगों पर पड़ रहा है. मजदूर वर्ग के लोगों को जहां रोजगार के अभाव में आर्थिक संकट से जूझना पड़ रहा है. वहीं, उनके बच्चे भी ईंट-भट्टा में अपना बचपन झोंक रहे हैं, जहां मजदूरी करना उनकी मजबूरी बन गई है.

देखें पूरी खबर
यह भी पढ़ेंः रांची पुलिस लाइन की पारंपरिक पूजा में शामिल हुए एसएसपी, महाशिवरात्रि पर होती है विशेष पूजा

मजदूर वर्ग पड़ रहा बुरा प्रभाव

कोरोना संकट के दौर में गरीब मजदूर वर्ग के लोगों पर भी काफी प्रभाव पड़ रहा है. वहीं, उनके बच्चे पर भी काफी बुरा प्रभाव पड़ रहा है. बच्चे अपने घर परिवार चलाने को लेकर अपना जिंदगी भी मजदूरी में झोंक रहे हैं. ईंट-भट्टा में काम करना उनकी मजबूरी बन गई है, जिसके प्रति न सरकार का ध्यान है न ही प्रशासन का.

झोक रहे हैं अपना बचपन

ग्रामीण क्षेत्र में लंबे समय से स्कूल जाना बच्चों का बंद है. बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं. नतीजा मजदूर वर्ग के लोगों के बच्चों का शिक्षा से, तो वंचित रहना पड़ ही रहा है. साथ ही पेट की आग बुझाने के लिए उन्हें मजदूरी भी करना पड़ रहा है. अधिकतर ग्रामीण क्षेत्र के मजदूर वर्ग के बच्चे अपने माता-पिता के साथ मजदूरी कर रहे हैं या ईट भट्टा में जाकर दो पैसा कमाने के लिए मोहताज हो रहे हैं और अपना जीवन बर्बाद कर रहे हैं.

जो सामर्थ हैं, जिनके पास मोबाइल हैं वह, तो अपने बच्चे को घर पर पढ़ा लेते हैं. खिला देते हैं, लेकिन जिनके पास समर्थ नहीं है उनकी मजदूरी करना मजबूरी है. ऐसे वर्ग के लोगों के बच्चों को न शिक्षा ही मिल रहा है और न ही कोई साधन. सामाजिक कार्यकर्ता बताते हैं कि कोरोना महामारी में स्कूल बंद रहने से सबसे ज्यादा प्रभाव मजदूर वर्ग के बच्चों पर पड़ा है. वे अपने माता-पिता के साथ मजदूरी करने को मजबूर हैं. ऐसे में सरकार को पहल करने की आवश्यकता है.

बाल श्रम को लेकर बनाए गए हैं कानून

वहीं, 14 साल से कम उम्र के बच्चे को मजदूरी करना कराना बाल श्रम उन्मूलन अधिनियम के तहत कानूनन अपराध माना गया है और बाल श्रम कराना कानूनन दंडनीय अपराध के साथ-साथ कानून में सजा का प्रावधान भी किया गया है. इसके अलावा सरकार की ओर से बाल श्रम उन्मूलन को लेकर कई तरह की योजनाएं चलाई जा रहीं हैं.

श्रम विभाग की ओर से चलाया जाता है जागरूकता अभियान

श्रम विभाग की ओर से बाल श्रम उन्मूलन को लेकर समय-समय पर कार्रवाई भी की जाती है और इसे लेकर जागरूकता अभियान भी चलाया जाता है ताकि, मजदूर वर्ग के बच्चे मजदूरी न करके स्कूल में पढ़ें और शिक्षित बने उनका जीवन संवर सके. इसे लेकर सरकार की ओर से योजनाएं भी चलाई जाती हैं.

श्रम विभाग और सरकार की ओर से जहां 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चे से काम लिया जाता है, वहां से उन्हें मुक्त कराकर स्कूल में दाखिला दिलाना, छात्रवृत्ति देना और सरकार की ओर से चलाए जा रहे कल्याणकारी योजनाओं को उनके अभिभावकों तक पहुंचाने का भी प्रावधान किया गया है. बावजूद इसके इसमें कितना लाभ मजदूर वर्ग के लोगों को मिल पाता है यह तो विभाग ही जानता है.

जिले में बनाया गया है बाल कल्याण कोष

बताया जाता है कि मजदूर वर्ग के बच्चों के हित के कल्याण के लिए जिले में बाल कल्याण कोष का गठन किया गया है. जिस राशि से मजदूर वर्ग के बच्चों के हित के लिए काम किया जाता है.

क्या कहते हैं श्रम अधीक्षक

कोरोना के महामारी में मजदूर वर्ग के बच्चे को लेकर मजदूरी करना और उन्हें शिक्षा दिलाने की वैकल्पिक व्यवस्था को लेकर जब जामताड़ा जिले के श्रम विभाग के श्रम अधीक्षक से संपर्क किया गया तो उनकी ओर से बताया गया कि बाल श्रम उन्मूलन को लेकर बनाए गए कानून के तहत, जो कार्रवाई की जाती है और जागरूकता अभियान भी चलाते हैं. साथ ही कहा कि बाल कल्याण कोष का गठन किया गया है. जिसकी राशि से मजदूर वर्ग के बच्चों के हित के लिए काम किया जाता है.

जामताड़ा: कोरोना महामारी के दौर में सबसे ज्यादा प्रभाव गरीब मजदूर वर्ग के लोगों पर पड़ रहा है. मजदूर वर्ग के लोगों को जहां रोजगार के अभाव में आर्थिक संकट से जूझना पड़ रहा है. वहीं, उनके बच्चे भी ईंट-भट्टा में अपना बचपन झोंक रहे हैं, जहां मजदूरी करना उनकी मजबूरी बन गई है.

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मजदूर वर्ग पड़ रहा बुरा प्रभाव

कोरोना संकट के दौर में गरीब मजदूर वर्ग के लोगों पर भी काफी प्रभाव पड़ रहा है. वहीं, उनके बच्चे पर भी काफी बुरा प्रभाव पड़ रहा है. बच्चे अपने घर परिवार चलाने को लेकर अपना जिंदगी भी मजदूरी में झोंक रहे हैं. ईंट-भट्टा में काम करना उनकी मजबूरी बन गई है, जिसके प्रति न सरकार का ध्यान है न ही प्रशासन का.

झोक रहे हैं अपना बचपन

ग्रामीण क्षेत्र में लंबे समय से स्कूल जाना बच्चों का बंद है. बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं. नतीजा मजदूर वर्ग के लोगों के बच्चों का शिक्षा से, तो वंचित रहना पड़ ही रहा है. साथ ही पेट की आग बुझाने के लिए उन्हें मजदूरी भी करना पड़ रहा है. अधिकतर ग्रामीण क्षेत्र के मजदूर वर्ग के बच्चे अपने माता-पिता के साथ मजदूरी कर रहे हैं या ईट भट्टा में जाकर दो पैसा कमाने के लिए मोहताज हो रहे हैं और अपना जीवन बर्बाद कर रहे हैं.

जो सामर्थ हैं, जिनके पास मोबाइल हैं वह, तो अपने बच्चे को घर पर पढ़ा लेते हैं. खिला देते हैं, लेकिन जिनके पास समर्थ नहीं है उनकी मजदूरी करना मजबूरी है. ऐसे वर्ग के लोगों के बच्चों को न शिक्षा ही मिल रहा है और न ही कोई साधन. सामाजिक कार्यकर्ता बताते हैं कि कोरोना महामारी में स्कूल बंद रहने से सबसे ज्यादा प्रभाव मजदूर वर्ग के बच्चों पर पड़ा है. वे अपने माता-पिता के साथ मजदूरी करने को मजबूर हैं. ऐसे में सरकार को पहल करने की आवश्यकता है.

बाल श्रम को लेकर बनाए गए हैं कानून

वहीं, 14 साल से कम उम्र के बच्चे को मजदूरी करना कराना बाल श्रम उन्मूलन अधिनियम के तहत कानूनन अपराध माना गया है और बाल श्रम कराना कानूनन दंडनीय अपराध के साथ-साथ कानून में सजा का प्रावधान भी किया गया है. इसके अलावा सरकार की ओर से बाल श्रम उन्मूलन को लेकर कई तरह की योजनाएं चलाई जा रहीं हैं.

श्रम विभाग की ओर से चलाया जाता है जागरूकता अभियान

श्रम विभाग की ओर से बाल श्रम उन्मूलन को लेकर समय-समय पर कार्रवाई भी की जाती है और इसे लेकर जागरूकता अभियान भी चलाया जाता है ताकि, मजदूर वर्ग के बच्चे मजदूरी न करके स्कूल में पढ़ें और शिक्षित बने उनका जीवन संवर सके. इसे लेकर सरकार की ओर से योजनाएं भी चलाई जाती हैं.

श्रम विभाग और सरकार की ओर से जहां 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चे से काम लिया जाता है, वहां से उन्हें मुक्त कराकर स्कूल में दाखिला दिलाना, छात्रवृत्ति देना और सरकार की ओर से चलाए जा रहे कल्याणकारी योजनाओं को उनके अभिभावकों तक पहुंचाने का भी प्रावधान किया गया है. बावजूद इसके इसमें कितना लाभ मजदूर वर्ग के लोगों को मिल पाता है यह तो विभाग ही जानता है.

जिले में बनाया गया है बाल कल्याण कोष

बताया जाता है कि मजदूर वर्ग के बच्चों के हित के कल्याण के लिए जिले में बाल कल्याण कोष का गठन किया गया है. जिस राशि से मजदूर वर्ग के बच्चों के हित के लिए काम किया जाता है.

क्या कहते हैं श्रम अधीक्षक

कोरोना के महामारी में मजदूर वर्ग के बच्चे को लेकर मजदूरी करना और उन्हें शिक्षा दिलाने की वैकल्पिक व्यवस्था को लेकर जब जामताड़ा जिले के श्रम विभाग के श्रम अधीक्षक से संपर्क किया गया तो उनकी ओर से बताया गया कि बाल श्रम उन्मूलन को लेकर बनाए गए कानून के तहत, जो कार्रवाई की जाती है और जागरूकता अभियान भी चलाते हैं. साथ ही कहा कि बाल कल्याण कोष का गठन किया गया है. जिसकी राशि से मजदूर वर्ग के बच्चों के हित के लिए काम किया जाता है.

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