जामताड़ा: जिला और आसपास के क्षेत्र में इन दिनों पलाश के फूल अपनी सुंदरता बिखेर रहे हैं. प्रकृति के चारों तरफ वातावरण पलाश के फूल सा खिलने लगा है. जिसकी सुंदरता से माहौल खुशनुमा हो गया है. बसंत ऋतु के आते ही जंगल में पलाश के फूल उग आते हैं. जामताड़ा समेत पूरे संथाल परगना में पलाश के पेड़ बहुतायत मात्रा में पाए जाते हैं. जामताड़ा और आसपास के क्षेत्र व संथाल परगना में पलाश के जंगल भी पाए जाते हैं. बसंत ऋतु में पलाश के पेड़ से पत्ते झड़ जाते हैं और फूल उग आते हैं, जो प्राकृतिक सुंदरता में चार चांद लगा देते हैं.
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आदिवासी समाज में पलाश का खास महत्व: आदिवासी समाज और संस्कृति में पलाश के पेड़, फूल और पत्ते का काफी महत्त्व है. आदिवासी समाज पूजा पाठ में पलाश के पेड़, पत्ते और फूलों को उपयोग में लाते हैं. पलाश के फूल, पेड़ और पौधों का आदिवासी समाज और संस्कृति में महत्व और उसकी विशेषता के बारे में जानकारी देते हुए आदिवासी समाज के प्रसिद्ध साहित्यकार, लेखक और राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक सुशील बास्की बताते हैं कि पलाश के पेड़ पौधे और पत्ते आदिवासी समाज-संस्कृति से जुड़े हुए हैं. वे बताते हैं कि पलाश के फूलों से रंग निकलता है जिससे आदिवासी समाज के लोग अपने घरों को रंगते हैं. वहीं इसके पत्तों से दोना बनाया जाता है और भी कई धार्मिक अनुष्ठानों में इनका इस्तेमाल किया जाता है.
पलाश के फूलों में औषधीय गुण: आदिवासी समाज और संस्कृति में जहां पलाश के पेड़ों की विशेषता और महत्ता है. वहीं इसमें काफी औषधीय गुण भी मौजूद हैं. पलाश के फूल, बीज और इसके पौधों से कई रोगों से मुक्ति के लिए दवाइयां भी बनाई जाती है. खासकर, आदिवासी समाज पलाश के पत्तों से दोना बनाकर रोजगार भी करते हैं. अच्छी बात यह है कि पलाश का पेड़ पर्यावरण का संरक्षण भी करता है.