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हजारीबाग: मास्क की शोभा बढ़ाएंगे कोहबर और सोहराय, प्राचीन कला को बढ़ावा देने में जुटे युवा - हजारीबाग में सोहराय कोहबर को बढ़ावा देने का काम युवा कर रहे

कोरोना जैसे महामारी बीमारी के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए हजारीबाग के कुछ युवा इसकी पहल की शुरुआत की है. जिसका उद्देश्य, झारखंड की प्राचीन कला सोहराय और कोहबर को मास्क पेंटिंग के जरिये लोगों के सामने लाना है.

youth working to promote sohray kohbar in hazaribag
youth working to promote sohray kohbar in hazaribag
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Published : Aug 14, 2020, 11:40 PM IST

हजारीबाग: जिले की 7000 ईसा पूर्व पुरानी कला अब चेहरे की खूबसूरती बनने जा रही है. हजारीबाग के जगदीशपुर गांव के युवा सोहराय और कोहबर कला को देश विदेश तक पहुंचाने के लिए इसे मास्क में उकेर रहे हैं. ताकि यह कला दूर तक पहुंचे.

देखें स्पेशल स्टोरी

विदेशों तक कला पहुंचाना उद्देश्य

हजारीबाग के जगदीशपुर के रहने वाले कुछ युवा कलाकार हजारीबाग की पुरातन कला सोहराय और कोहबर को नया आयाम देने की कोशिश कर रहे हैं. दरअसल, युवा चाहते हैं कि उनके घर की कला देश के कोने कोने के साथ-साथ विदेशों तक पहुंचे. उद्देश्य यह रहे कि हर एक चेहरे पर यह कला दिखे. इसी उद्देश्य से माटीमय संस्था इन दिनों सोहराय कला को मास्क पर उकेर रहे है.

क्या कहते हैं युवा

मास्क बनाने वाले युवा कहते हैं कि मास्क आज के दिन में सबसे अधिक महत्वपूर्ण सामानों में एक हो गई है. जो हमारे साथ दिन भर रहती है. ऐसे में हम चाहते हैं कि सोहराय कला का बना मास्क लोगों तक पहुंचे. इससे दो फायदा होगा हमारी सभ्यता और संस्कृति के बारे में समाज का हर एक तबका जाने तो दूसरी ओर कोरोना से सुरक्षा भी मिलेगा.

'सोहराय' कला है जिंदगी

माटीमय के फाउंडर व युवा फिल्मकार अनिरुद्ध उपाध्याय ने बताया कि 2016 में सोहराय और कोहबर पर फिल्म बनने के दौरान इस कला से ऐसा लगाव हुआ कि यह जीवन का एक हिस्सा बन गया. उन्होंने यही कोशिश की है कि इस कला के बारे में अधिक से अधिक प्रचार प्रसार हो. ताकि लोग इसे समझें. यह कला सिर्फ कला नहीं, हमारी जिंदगी है.

8-10 घंटे पेंटिंग करते हैं युवा

प्रत्येक दिन यहां युवा छात्र-छात्राएं 8 से 10 घंटे पेंटिंग करते हैं. हर रोज लगभग 100 मास्क बनकर तैयार भी हो रहा है. मास्क की मांग इन दिनों धीरे-धीर बढ़ने लगी है. यहां के संस्थापक कहते भी हैं कि इसे वो लोग ऑनलाइन मार्केट में भी लाना चाहते हैं. इस मास्क की कीमत महज 50 रुपए है और यह 3 लेयर का है. इसकी कीमत हम लोगों ने कम इसलिए रखा है, क्योंकि अधिक से अधिक लोगों तक यह मास्क पहुंचे और उनकी संस्कृति के बारे में अधिक से अधिक लोग जान सके.

घर-आंगन की कला का प्रचार

मास्क बनाने वाली महिला बताती है कि पहले उन्हें भी इस कला के बारे में जानकारी नहीं थी, लेकिन जब कला के बारे में जाना तो काफी उत्सुकता हुई. उसी उत्सुकता के कारण आज खुद भी सीख रही है और दूसरों को सिखा भी रही हैं. ताकि हमारी संस्कृति आगे के पीढ़ी तक पहुंचे. उनका भी कहना है कि उन्हें आज बेहद खुशी है कि वे अपनी घर-आंगन की कला का प्रचार कर रही हैं.

ये भी पढ़ें- रांची: वित्त मंत्री ने किया दावा, कहा- 15 अगस्त को लॉन्च होगी मुख्यमंत्री श्रमिक योजना

हजारीबाग के दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्र की सोहराय कोहबर कला जो कभी पत्थर के दीवारों की शोभा हुआ करती थी. समय बीतने के साथ-साथ घर के दीवारों पर उसने अपनी जगह बनाई और अब घर की दीवार से निकलकर लोगों की चेहरे को खूबसूरती प्रदान कर रही है.

हजारीबाग: जिले की 7000 ईसा पूर्व पुरानी कला अब चेहरे की खूबसूरती बनने जा रही है. हजारीबाग के जगदीशपुर गांव के युवा सोहराय और कोहबर कला को देश विदेश तक पहुंचाने के लिए इसे मास्क में उकेर रहे हैं. ताकि यह कला दूर तक पहुंचे.

देखें स्पेशल स्टोरी

विदेशों तक कला पहुंचाना उद्देश्य

हजारीबाग के जगदीशपुर के रहने वाले कुछ युवा कलाकार हजारीबाग की पुरातन कला सोहराय और कोहबर को नया आयाम देने की कोशिश कर रहे हैं. दरअसल, युवा चाहते हैं कि उनके घर की कला देश के कोने कोने के साथ-साथ विदेशों तक पहुंचे. उद्देश्य यह रहे कि हर एक चेहरे पर यह कला दिखे. इसी उद्देश्य से माटीमय संस्था इन दिनों सोहराय कला को मास्क पर उकेर रहे है.

क्या कहते हैं युवा

मास्क बनाने वाले युवा कहते हैं कि मास्क आज के दिन में सबसे अधिक महत्वपूर्ण सामानों में एक हो गई है. जो हमारे साथ दिन भर रहती है. ऐसे में हम चाहते हैं कि सोहराय कला का बना मास्क लोगों तक पहुंचे. इससे दो फायदा होगा हमारी सभ्यता और संस्कृति के बारे में समाज का हर एक तबका जाने तो दूसरी ओर कोरोना से सुरक्षा भी मिलेगा.

'सोहराय' कला है जिंदगी

माटीमय के फाउंडर व युवा फिल्मकार अनिरुद्ध उपाध्याय ने बताया कि 2016 में सोहराय और कोहबर पर फिल्म बनने के दौरान इस कला से ऐसा लगाव हुआ कि यह जीवन का एक हिस्सा बन गया. उन्होंने यही कोशिश की है कि इस कला के बारे में अधिक से अधिक प्रचार प्रसार हो. ताकि लोग इसे समझें. यह कला सिर्फ कला नहीं, हमारी जिंदगी है.

8-10 घंटे पेंटिंग करते हैं युवा

प्रत्येक दिन यहां युवा छात्र-छात्राएं 8 से 10 घंटे पेंटिंग करते हैं. हर रोज लगभग 100 मास्क बनकर तैयार भी हो रहा है. मास्क की मांग इन दिनों धीरे-धीर बढ़ने लगी है. यहां के संस्थापक कहते भी हैं कि इसे वो लोग ऑनलाइन मार्केट में भी लाना चाहते हैं. इस मास्क की कीमत महज 50 रुपए है और यह 3 लेयर का है. इसकी कीमत हम लोगों ने कम इसलिए रखा है, क्योंकि अधिक से अधिक लोगों तक यह मास्क पहुंचे और उनकी संस्कृति के बारे में अधिक से अधिक लोग जान सके.

घर-आंगन की कला का प्रचार

मास्क बनाने वाली महिला बताती है कि पहले उन्हें भी इस कला के बारे में जानकारी नहीं थी, लेकिन जब कला के बारे में जाना तो काफी उत्सुकता हुई. उसी उत्सुकता के कारण आज खुद भी सीख रही है और दूसरों को सिखा भी रही हैं. ताकि हमारी संस्कृति आगे के पीढ़ी तक पहुंचे. उनका भी कहना है कि उन्हें आज बेहद खुशी है कि वे अपनी घर-आंगन की कला का प्रचार कर रही हैं.

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हजारीबाग के दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्र की सोहराय कोहबर कला जो कभी पत्थर के दीवारों की शोभा हुआ करती थी. समय बीतने के साथ-साथ घर के दीवारों पर उसने अपनी जगह बनाई और अब घर की दीवार से निकलकर लोगों की चेहरे को खूबसूरती प्रदान कर रही है.

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