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तरक्की की ओर आधी आबादी...नई तकनीक से अब महिलाएं भी कर रही हैं मछली पालन

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Published : Oct 28, 2021, 7:51 PM IST

Updated : Oct 28, 2021, 9:00 PM IST

सरकार की इच्छाशक्ति, जिला प्रशासन और विभागों के आपसी तालमेल और सक्रियता से कैसे लोगों की जिंदगी में गुणात्मक परिवर्तन आ रहा है, इसकी बानगी देखनी हो तो आपको हजारीबाग के बरही डैम आना होगा. यहां महिला और पुरुष मिलकर केज विधि से फिश फार्मिंग कर रहे हैं. अब आंध्र प्रदेश की मछली की जगह लोकल मछली का स्वाद चखा जा सकता है जिसमें महिलाओं का योगदान भी अहम है.

Cage method of fish farming in Hazaribagh
हजारीबाग में केज विधि से मछली पालन

हजारीबाग: मछली पालन आज के समय में बड़ा व्यापार के रूप में देखा जा रहा है. जहां महिलाएं भी अब अपनी सहभागिता सुनिश्चित कर रही हैं. ऐसे तो मछली पालन पुरुषों से जुड़ा व्यवसाय है क्योंकि इसमें पानी में उतरकर मछली पकड़ना पड़ता है. लेकिन अब उन्नत तकनीक से इस व्यवसाय में महिलाएं भी साथ निभा रही हैं.

यह भी पढ़ें: एक पेंटर ऐसा भी...बड़े-बड़े चित्रकारों को टक्कर दे सकती है टिंकू की पेंटिंग, महज 17 साल की उम्र में जीत लिए 50 से ज्यादा मेडल

7 से 9 महीने के अंदर तैयार हो जाती है मछली

हजारीबाग के बरही प्रखंड के तिलैया डैम में इन दिनों श्यामाप्रसाद मुखर्जी रुर्बन मिशन के तहत मत्स्य पालन किया जा रहा है. जिसमें महिला और पुरुष एक साथ मिलकर केज विधि से मछली पालन कर रहे हैं. जिसमें मछली 7 से 9 महीना के अंदर तैयार हो जाता है. ग्राहक इनके पास ही आकर मछली खरीद लेते हैं. श्यामाप्रसाद मुखर्जी रुर्बन मिशन योजना केंद्र सरकार की तरफ से चलाई जा रही है. इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्र के लोगों का जीवन स्तर ऊंचा उठाना है. इसमें केंद्र सरकार की ओर से सहायता राशि दी जाती है और कुछ पैसा लाभुक को अपनी तरफ से लगाना होता है. यहां के किसान कहते हैं कि पहले से हमारा जीवन स्तर ऊंचा हुआ है और हम लोग मछली पालन करके आत्मनिर्भर बन रहे हैं.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

कम मेहनत में हो जाता है मछली पालन

चूंकि, इस व्यवसाय में महिलाओं की सहभागिता भी सुनिश्चित हुई है, ऐसे में महिलाओं का कहना है कि हमलोग पहली बार मछली पालन कर रहे हैं. लाभ होगा या नहीं यह आगे पता चलेगा. आने वाले दिनों में जब मछली बिकेगी तब पता चलेगा कि कितना मुनाफा हो रहा है. लेकिन मेहनत से मछली पालन कर रहे हैं. जो पैसा आएगा उस पैसे से अपने परिवार का भरण पोषण करेंगे. हम लोग हर दिन मछली पालन करने के लिए नाव से केज पर जाते हैं. फिर मछली को चारा देते हैं. यह काम दिन भर में 2 बार करना होता है. समय की परेशानी नहीं होती है. सिर्फ एक घंटा सुबह और एक घंटा शाम मेहनत करना पड़ता है. जब मछली को चारा देने जाते हैं तो मछली केज की ऊपरी सतह में पहुंच जाती हैं. यह एक नई और उन्नत तकनीक है. जिसमें मछली पकड़ने की जरूरत नहीं होती है. केज में ही मछली तैयार होती है. इसमें महिलाओं को ज्यादा परेशानी नहीं होती है.

Cage method of fish farming in Hazaribagh
सुबह-शाम मछलियों को चारा दिया जाता है.

कैसे होती है केज विधि से फार्मिंग

केज कल्चर में जलाशयों में निर्धारित जगह पर प्लॉटिंग ब्लॉक बनाए जाते हैं. सभी ब्लॉक इंटरलॉकिंग रहते हैं. ब्लॉक में 6 गुना के जाल लगाए जाते हैं. इसी में मछली का चारा डाला जाता है जो बाद में तैयार हो जाती है. जब मछली का वजन करीब एक किलो हो जाता है तब उसे बेचने के लिए निकाला जाता है. मछलियों को हर दिन आहार दिया जाता है. फ्लोटिंग ब्लॉक पर 3 मीटर हिस्सा पानी में डूबा रहता है और 1 मीटर ऊपर तैरता हुए दिखाई देता है. केज कल्चर में कई प्रजाति की मछलियों का पालन होता है जो 10 महीने के अंदर 1 किलो तक की हो जाती है. इसमें मछली पालन करने के लिए ट्रेनिंग भी दिया जाता है.

हजारीबाग: मछली पालन आज के समय में बड़ा व्यापार के रूप में देखा जा रहा है. जहां महिलाएं भी अब अपनी सहभागिता सुनिश्चित कर रही हैं. ऐसे तो मछली पालन पुरुषों से जुड़ा व्यवसाय है क्योंकि इसमें पानी में उतरकर मछली पकड़ना पड़ता है. लेकिन अब उन्नत तकनीक से इस व्यवसाय में महिलाएं भी साथ निभा रही हैं.

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7 से 9 महीने के अंदर तैयार हो जाती है मछली

हजारीबाग के बरही प्रखंड के तिलैया डैम में इन दिनों श्यामाप्रसाद मुखर्जी रुर्बन मिशन के तहत मत्स्य पालन किया जा रहा है. जिसमें महिला और पुरुष एक साथ मिलकर केज विधि से मछली पालन कर रहे हैं. जिसमें मछली 7 से 9 महीना के अंदर तैयार हो जाता है. ग्राहक इनके पास ही आकर मछली खरीद लेते हैं. श्यामाप्रसाद मुखर्जी रुर्बन मिशन योजना केंद्र सरकार की तरफ से चलाई जा रही है. इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्र के लोगों का जीवन स्तर ऊंचा उठाना है. इसमें केंद्र सरकार की ओर से सहायता राशि दी जाती है और कुछ पैसा लाभुक को अपनी तरफ से लगाना होता है. यहां के किसान कहते हैं कि पहले से हमारा जीवन स्तर ऊंचा हुआ है और हम लोग मछली पालन करके आत्मनिर्भर बन रहे हैं.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

कम मेहनत में हो जाता है मछली पालन

चूंकि, इस व्यवसाय में महिलाओं की सहभागिता भी सुनिश्चित हुई है, ऐसे में महिलाओं का कहना है कि हमलोग पहली बार मछली पालन कर रहे हैं. लाभ होगा या नहीं यह आगे पता चलेगा. आने वाले दिनों में जब मछली बिकेगी तब पता चलेगा कि कितना मुनाफा हो रहा है. लेकिन मेहनत से मछली पालन कर रहे हैं. जो पैसा आएगा उस पैसे से अपने परिवार का भरण पोषण करेंगे. हम लोग हर दिन मछली पालन करने के लिए नाव से केज पर जाते हैं. फिर मछली को चारा देते हैं. यह काम दिन भर में 2 बार करना होता है. समय की परेशानी नहीं होती है. सिर्फ एक घंटा सुबह और एक घंटा शाम मेहनत करना पड़ता है. जब मछली को चारा देने जाते हैं तो मछली केज की ऊपरी सतह में पहुंच जाती हैं. यह एक नई और उन्नत तकनीक है. जिसमें मछली पकड़ने की जरूरत नहीं होती है. केज में ही मछली तैयार होती है. इसमें महिलाओं को ज्यादा परेशानी नहीं होती है.

Cage method of fish farming in Hazaribagh
सुबह-शाम मछलियों को चारा दिया जाता है.

कैसे होती है केज विधि से फार्मिंग

केज कल्चर में जलाशयों में निर्धारित जगह पर प्लॉटिंग ब्लॉक बनाए जाते हैं. सभी ब्लॉक इंटरलॉकिंग रहते हैं. ब्लॉक में 6 गुना के जाल लगाए जाते हैं. इसी में मछली का चारा डाला जाता है जो बाद में तैयार हो जाती है. जब मछली का वजन करीब एक किलो हो जाता है तब उसे बेचने के लिए निकाला जाता है. मछलियों को हर दिन आहार दिया जाता है. फ्लोटिंग ब्लॉक पर 3 मीटर हिस्सा पानी में डूबा रहता है और 1 मीटर ऊपर तैरता हुए दिखाई देता है. केज कल्चर में कई प्रजाति की मछलियों का पालन होता है जो 10 महीने के अंदर 1 किलो तक की हो जाती है. इसमें मछली पालन करने के लिए ट्रेनिंग भी दिया जाता है.

Last Updated : Oct 28, 2021, 9:00 PM IST
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