हजारीबागः जिले की पहचान बहुत जल्द ही बौद्ध सर्किट के रूप में हो सकती है. इसके साक्ष्य भी मिलने शुरू हो गये हैं. हजारीबाग के सीतागढ़ा पहाड़ी की तलहटी के घने जंगलों में कई स्थानों पर बौद्ध के छोटे-छोटे टीले मिले हैं. जिनका उत्खनन भारतीय पुरातत्व विभाग कर रही है. उत्खनन के दौरान कई बहुमूल्य ऐतिहासिक सामान भी मिले हैं, जो यह इशारा करता है कि आने वाले समय में यह क्षेत्र ऐतिहासिक धरोहर के रूप में जाना जाएगा.
बौद्ध भिक्षुओं के मिले साक्ष्य
सीता गढ़ा के पहले टीले की खुदाई की जा रही है, जिसमें दीवार सहित अन्य मृदभांड लोहे की कील आदि सामान बरामद हो रहे हैं. हर दिन 5 से 6 इंच खुदाई की जा रही है. जिस तरह से पहले टीले में मृदभांड और ईंट की दीवार मिली है, इसे देखते हुए दूसरे टीले की भी खुदाई शुरू कर दी गई है. उस टीले में भी ईट के दीवार मिल रही है. दूसरा टीला जिसकी खुदाई शुरू हुई है, वह पहले टीले से 50 मीटर की दूरी पर है. यह कटोरा के आकार का है जो 20 मीटर वर्ग में फैला हुआ है. जिस तरह से यह माउंटेन का आकार है, उससे अंदाजा लगाया जा रहा है कि यहां कुछ बड़े धरोहर हो सकते हैं. वर्तमान में खुदाई स्थल पर दो टीले मिले हैं वह वर्तमान ईंट से 3 गुना अधिक चौड़े और लंबे हैं. खुदाई के दौरान ईंट के आकार का पत्थर भी मिला है. पत्थर के समीप एक कील भी मिला है जिससे यह अंदाजा लगाया जा रहा है कि बौद्ध भिक्षु यहां पत्थरों में नक्काशी का कार्य भी करते थे. मृदभांड के टुकड़े को भी खुदाई स्थल पर सहेज के रखा जा रहा है. बकायदा इसके लिए अलग से जालीदार जगह बनायी गयी है, जहां क्रमवार अवशेष रखे जा रहे हैं.
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पाल साम्राज्य से रिश्ता
जानकार और पुरातात्विक नेताओं ने इस खुदाई को लेकर किसी भी तरह की टिप्पणी नहीं की है. लेकिन यह जरूर बताया है कि ईंट जो हैं वह पाल वंश के समय के हैं. पाल वंश की बात की जाए तो 750 से 1174 ईसवी तक चला. पाल राजा हिंदू थे, परंतु वे बौद्ध धर्म को भी मानने वाले थे. पाल राजाओं के समय बौद्ध धर्म को बहुत संरक्षण मिला. उनके काल में बौद्ध धर्म के उत्थान के लिए भी कई कार्य किए गए, जो इतिहास में अंकित हैं. बिहार और बंगाल के कई क्षेत्र पाल साम्राज्य के हिस्सा थे, इसलिए इस क्षेत्र को पाल साम्राज्य से जोड़कर भी देखा जा रहा.