हजारीबाग: हाथों में मांदर, चेहरे पर मुस्कान लिए ये आदिवासी समाज के लोग हैं. जो प्रकृति के उपासक हैं. जिनसे हम सभी को सीख लेने की आवश्यकता है कि हम तब तक खुश रहेंगे जब तक प्रकृति हम पर मेहरबान रहेगी. इन प्रकृति के उपासक आदिवासी समाज के लोगों के चेहरे भले ही खिले हुए हैं, लेकिन उनके दिलों में आज भी दर्द है.
आदिवासी समाज का नहीं हुआ अब तक विकास
दर्द उनके साथ छलावा होने का है. इनका कहना है कि भले ही राज्य का निर्माण आदिवासी समाज के विकास के लिए हुआ हो, लेकिन शायद ही विकास की शुरूआत भी की गई हो. झारखंड राज्य गठन के 18 साल बीत जाने के बाद भी आदिवासी समाज की स्थिति वहीं 18 साल पहले वाली है.
आदिवासी समाज के लोगों का कहना है कि सरकार योजनाएं तो बनाती हैं, लेकिन उसका एक चौथाई हिस्सा भी उनके तक नहीं पहुंच पाता. समाज के लोग अभी भी अशिक्षित हैं. समाज की कुछ जाति अब विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गई है. उनका संरक्षण भी नहीं किया जा रहा और वह अभी भी जंगल झाड़ी में रहने को विवश हैं.
आदिवासी समाज ने राष्ट्रपति को लिखा पत्र
इनका मानना है कि जिस आदिवासी समाज की आवाज यूनओ में गूंजी है, उसके याद में भी भारत में राष्ट्रीय अवकाश नहीं है. अब राष्ट्रपति को हम पत्र लिख रहे हैं, जिसमें यह मांग करेंगे कि विश्व आदिवासी दिवस 9 अगस्त को राष्ट्रीय अवकाश घोषित करना चाहिए. साथ ही जो योजनाएं चल रही हैं, उन योजनाओं का लाभ शत प्रतिशत कैसे मिले इसके लिए कुछ उपाय निकालना चाहिए.
आदिवासी छात्र संघ का क्या है कहना
आदिवासी छात्र संघ झारखंड के केंद्रीय उपाध्यक्ष सुशील ओड़िआ का कहना है कि आदिवासी समाज पर हमले हो रहे हैं. देश की सरकार उनके प्रति उदासीन है, बिचौलियों के कारण योजनांए उन तक नहीं पहुंच रही हैं. ऐसे में जरूरत है कि समाज को सरकारी योजनाओं का लाभ देकर विकास के पायदान में आगे खड़ा किया जाए, ताकि देश की संस्कृति और सभ्यता जिस पर नाज करती हैं वह खुश रहें.