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विश्व आदिवासी दिवसः आदिवासी समाज ने राष्ट्रपति को लिखा खत, दी समस्याओं की जानकारी - आदिवासी समाज

झारखंड राज्य का गठन आदिवासी समाज को संरक्षण देने के लिए हुआ है. सरकार के द्वारा आदिवासी समाज के संरक्षण के लिए कई योजनाएं चलाई गईं, लेकिन उन योजनाओं में से उन्हें एक भी नही मिली. ऐसे में हजारीबाग से राष्ट्रपति को विश्व आदिवासी दिवस पर ज्ञापन सौंपने की बात कही गई है.

विश्व आदिवासी दिवस
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Published : Aug 9, 2019, 5:57 PM IST

हजारीबाग: हाथों में मांदर, चेहरे पर मुस्कान लिए ये आदिवासी समाज के लोग हैं. जो प्रकृति के उपासक हैं. जिनसे हम सभी को सीख लेने की आवश्यकता है कि हम तब तक खुश रहेंगे जब तक प्रकृति हम पर मेहरबान रहेगी. इन प्रकृति के उपासक आदिवासी समाज के लोगों के चेहरे भले ही खिले हुए हैं, लेकिन उनके दिलों में आज भी दर्द है.

देखें पूरी खबर

आदिवासी समाज का नहीं हुआ अब तक विकास
दर्द उनके साथ छलावा होने का है. इनका कहना है कि भले ही राज्य का निर्माण आदिवासी समाज के विकास के लिए हुआ हो, लेकिन शायद ही विकास की शुरूआत भी की गई हो. झारखंड राज्य गठन के 18 साल बीत जाने के बाद भी आदिवासी समाज की स्थिति वहीं 18 साल पहले वाली है.


आदिवासी समाज के लोगों का कहना है कि सरकार योजनाएं तो बनाती हैं, लेकिन उसका एक चौथाई हिस्सा भी उनके तक नहीं पहुंच पाता. समाज के लोग अभी भी अशिक्षित हैं. समाज की कुछ जाति अब विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गई है. उनका संरक्षण भी नहीं किया जा रहा और वह अभी भी जंगल झाड़ी में रहने को विवश हैं.


आदिवासी समाज ने राष्ट्रपति को लिखा पत्र
इनका मानना है कि जिस आदिवासी समाज की आवाज यूनओ में गूंजी है, उसके याद में भी भारत में राष्ट्रीय अवकाश नहीं है. अब राष्ट्रपति को हम पत्र लिख रहे हैं, जिसमें यह मांग करेंगे कि विश्व आदिवासी दिवस 9 अगस्त को राष्ट्रीय अवकाश घोषित करना चाहिए. साथ ही जो योजनाएं चल रही हैं, उन योजनाओं का लाभ शत प्रतिशत कैसे मिले इसके लिए कुछ उपाय निकालना चाहिए.


आदिवासी छात्र संघ का क्या है कहना
आदिवासी छात्र संघ झारखंड के केंद्रीय उपाध्यक्ष सुशील ओड़िआ का कहना है कि आदिवासी समाज पर हमले हो रहे हैं. देश की सरकार उनके प्रति उदासीन है, बिचौलियों के कारण योजनांए उन तक नहीं पहुंच रही हैं. ऐसे में जरूरत है कि समाज को सरकारी योजनाओं का लाभ देकर विकास के पायदान में आगे खड़ा किया जाए, ताकि देश की संस्कृति और सभ्यता जिस पर नाज करती हैं वह खुश रहें.

हजारीबाग: हाथों में मांदर, चेहरे पर मुस्कान लिए ये आदिवासी समाज के लोग हैं. जो प्रकृति के उपासक हैं. जिनसे हम सभी को सीख लेने की आवश्यकता है कि हम तब तक खुश रहेंगे जब तक प्रकृति हम पर मेहरबान रहेगी. इन प्रकृति के उपासक आदिवासी समाज के लोगों के चेहरे भले ही खिले हुए हैं, लेकिन उनके दिलों में आज भी दर्द है.

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आदिवासी समाज का नहीं हुआ अब तक विकास
दर्द उनके साथ छलावा होने का है. इनका कहना है कि भले ही राज्य का निर्माण आदिवासी समाज के विकास के लिए हुआ हो, लेकिन शायद ही विकास की शुरूआत भी की गई हो. झारखंड राज्य गठन के 18 साल बीत जाने के बाद भी आदिवासी समाज की स्थिति वहीं 18 साल पहले वाली है.


आदिवासी समाज के लोगों का कहना है कि सरकार योजनाएं तो बनाती हैं, लेकिन उसका एक चौथाई हिस्सा भी उनके तक नहीं पहुंच पाता. समाज के लोग अभी भी अशिक्षित हैं. समाज की कुछ जाति अब विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गई है. उनका संरक्षण भी नहीं किया जा रहा और वह अभी भी जंगल झाड़ी में रहने को विवश हैं.


आदिवासी समाज ने राष्ट्रपति को लिखा पत्र
इनका मानना है कि जिस आदिवासी समाज की आवाज यूनओ में गूंजी है, उसके याद में भी भारत में राष्ट्रीय अवकाश नहीं है. अब राष्ट्रपति को हम पत्र लिख रहे हैं, जिसमें यह मांग करेंगे कि विश्व आदिवासी दिवस 9 अगस्त को राष्ट्रीय अवकाश घोषित करना चाहिए. साथ ही जो योजनाएं चल रही हैं, उन योजनाओं का लाभ शत प्रतिशत कैसे मिले इसके लिए कुछ उपाय निकालना चाहिए.


आदिवासी छात्र संघ का क्या है कहना
आदिवासी छात्र संघ झारखंड के केंद्रीय उपाध्यक्ष सुशील ओड़िआ का कहना है कि आदिवासी समाज पर हमले हो रहे हैं. देश की सरकार उनके प्रति उदासीन है, बिचौलियों के कारण योजनांए उन तक नहीं पहुंच रही हैं. ऐसे में जरूरत है कि समाज को सरकारी योजनाओं का लाभ देकर विकास के पायदान में आगे खड़ा किया जाए, ताकि देश की संस्कृति और सभ्यता जिस पर नाज करती हैं वह खुश रहें.

Intro:आदिवासी सभ्यता है, एक संस्कृति है। जिसे संवारने और संभालने की जरूरत है। हमारे राज्य का गठन भी आदिवासी समाज को संरक्षण देने के लिए बनाया गया। साथ ही साथ यह संकल्प लिया गया कि इस समाज को हम सरकारी योजना का लाभ देंगे ।ताकि यह अपना जीवन शांति के साथ यापन कर सके। लेकिन यह एक बड़ा सवाल है कि क्या इनके विकास के लिए सरकार ने जो योजना बनाई थी वह धरातल पर उतरी है। ऐसे में हजारीबाग से राष्ट्रपति को विश्व आदिवासी दिवस पर ज्ञापन सौंपने की बात कही गई है। जिसे बताया गया है कि किस तरह से उनका जीवन परेशानियों से जूझ रहा है।

पेश है ईटीवी भारत की रिपोर्ट...


Body:हाथों में मांडर चेहरे में मुस्कान लिए यह आदिवासी समाज के लोग है ।जो प्रकृति के उपासक हैं ।जिनसे हम सभी को सीख लेने की आवश्यकता है कि अगर हम तब तक खुश रहेंगे जब तक प्रकृति हम पर मेहरबान रहेगी ।लेकिन प्रकृति के उपासक आदिवासी समाज के लोग के चेहरे भले ही खिले हुए हैं लेकिन उनके दिलों में आज भी दर्द है। दर्द है उनके साथ छलावा होने का। उनका कहना है कि भले ही राज्य का निर्माण हुआ हो आदिवासी समाज के विकास के लिए लेकिन वह नहीं हो पाया। झारखंड राज्य गठन के 18 साल बीत जाने के बाद भी आदिवासी समाज की स्थिति भी 18 साल पहले वाली है। समाज के लोगों का कहना है कि सरकार योजना बनाती है लेकिन उसका एक चौथाई हिस्सा भी उनके तक नहीं पहुंच पाता है। साथी साथ समाज के लोग अभी भी अशिक्षित है ।कुछ समाज के जाती अब विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गया है ।उनका संरक्षण भी नहीं किया जा रहा है और वह अभी भी जंगल झाड़ी में रहने को विवश है ।समाज का कहना भी है जिस आदिवासी समाज की आवाज यूनओ में गूंजी है। उसके याद में भी भारत में राष्ट्रीय अवकाश नहीं है ।अब राष्ट्रपति को पत्र लिख रहे हैं कि विश्व आदिवासी दिवस 9 अगस्त को राष्ट्रीय अवकाश घोषित करें। साथी साथ जो योजना चल रही है उस योजना का लाभ शत प्रतिशत कैसे मिले इसके लिए मेमोरेंडम में लिखा गया है।

byte....सुशील ओड़िआ, केंद्रीय उपाध्यक्ष ,आदिवासी छात्र संघ झारखंड


Conclusion: आदिवासी छात्र संघ झारखंड के केंद्रीय उपाध्यक्ष सुशील ओड़िआ का कहना है कि आदिवासी समाज पर हमला हो रही है। देश की सरकार उनके प्रति उदासीन है ,बीचोलिया के कारण योजना उन तक नहीं पहुंच रही है। सरकार ने योजना बनाया है लेकिन उदासीनता के कारण लाभ नहीं मिल पा रहा है।

ऐसे में जरूरत है समाज को सरकारी योजना का लाभ देखकर विकास के पैदान में आगे खड़ा करना। ताकि देश की संस्कृति और सभ्यता जिस पर नाज करता है वह खुश रहे।
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