हजारीबाग: जिले में दिवाली के दिन श्मशान काली की पूजा की गई. दिवाली के अवसर पर हिंदुओं द्वारा देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा की जाती है. लेकिन दिवाली की रात श्मशान की देवी की भी पूजा की जाती है, जिसे श्मशान काली कहा जाता है. हजारीबाग में भी श्मशान काली की पूजा हर साल बड़े ही धूमधाम और विधि-विधान से की जाती है.
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हजारीबाग श्मशान काली सिद्धि देने वाली काली हैं. कार्तिक अमावस्या की रात सिद्धि की रात होती है. इस दिन हजारीबाग में भी विशेष पूजा की जाती है. श्मशान होने के बावजूद यहां लाखों लोग पूजा करने आते हैं. ऐसे में भूतनाथ मंडली की ओर से विशेष व्यवस्था की जाती है. पूरा मंदिर परिसर दूधिया रोशनी से नहाया नजर आता है. भूतनाथ मंडली के अध्यक्ष मनोज गुप्ता भी कहते हैं कि यह मंदिर मनोकामना पूरी करने वाली मां का स्थान है. जहां साल भर लोग पूजा करने आते हैं. लेकिन यह विशेष पूजा दिवाली की रात को की जाती है. जहां न सिर्फ हजारीबाग बल्कि आसपास के जिलों से भी लोग पहुंचते हैं.
मंदिर का पिछला भग श्मशान भूमि: मंदिर का पिछला भाग श्मशान भूमि है. जहां आज दूर-दूर से तांत्रिक सिद्धि करने आते हैं. ऐसे में आम लोग श्मशान घाट की ओर रुख भी नहीं करते हैं. भूतनाथ मंडली के सदस्यों का कहना है कि अगर कोई साधक आता है तो हम उसे परेशान भी नहीं करते. वे चुपचाप आते हैं, साधना करते हैं और फिर मंदिर से चले जाते हैं. सिद्ध स्थान होने के कारण भी यह मंदिर विशेष है.
गर्भगृह के अंदर पंच मुंडी आसन: इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यह तंत्र पीठ है, जहां गर्भगृह के अंदर पंच मुंडी आसन है. मंदिर की खास बात यह है कि श्मशान परिसर के अंदर एक भूमिगत मंदिर है, जहां विशेष पूजा की जाती है. इस भूमिगत मंदिर के अंदर आम लोगों का जाना वर्जित है. यहां केवल मंदिर के पुजारी और तंत्र सिद्ध लोग ही सिद्धि प्राप्त करने के लिए प्रवेश करते हैं. साथ ही पुजारी उन भक्तों को भूमिगत मंदिर में ले जाते हैं, जो नियमों का पालन करते हैं. जबकि महिलाओं का मंदिर में प्रवेश पूरी तरह वर्जित है. इस मंदिर के दरवाजे अमावस्या की रात को खोले जाते हैं और इस दिन तंत्र मंत्र के साधक यहां पूजा करते हैं. इसकी स्थापना कई साल पहले महान तांत्रिक इलाइचिया बाबा ने की थी.