हजारीबागः विनोबा भावे विश्वविद्यालय के लिए मंगलवार का दिन यादगार पलों में एक रहेगा. भारतीय मानव विज्ञान संघ का 49 वां वार्षिक सम्मेलन सह जनजातीय शोध में मानव विज्ञान और संबंधी विषयों का क्या योगदान है, इस विषय पर राष्ट्रीय सेमिनार आयोजित किया गया. आयोजन स्नाकोत्तर मानव विज्ञान विभाग ने किया है.
बता दें कि भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव विज्ञान संग्रहालय, भोपाल और संस्कृति मंत्रालय के संयुक्त तत्वाधान में इसका आयोजन किया जा रहा है. जिसमें पूरे देश से लगभग 165 विद्वान जुट रहे हैं और जनजातीय विषय पर अपनी बातों को साझा कर रहे हैं. इसमें 131 पत्र पर चर्चा भी की जा रही है.
झारखंड में जनजातियों में आया परिवर्तन
वार्षिक संगोष्ठी में हिस्सा लेने आए मानव शास्त्री बताते हैं कि आज के समय में जनजातियों में बदलाव भी आ रहे हैं. लेकिन यह बदलाव कई परिपेक्ष में हो रहे हैं. उनका मानना है कि झारखंड में बहुत सारी जनजातियां रहती है. अगर भारत के परिपेक्ष में की बात की जाए तो पूरे देश के कई हिस्सों में अलग-अलग तरह के जनजातियों का निवास स्थान रहा है. झारखंड में जो जनजातियां रह रही हैं, उनके व्यवहार में भी परिवर्तन हो रहे हैं. मानव विज्ञान की ओर से समाज विज्ञान क्या उन जनजाति के लिए कर सकता है, इस विषय पर चर्चा की जा रही है. जो निष्कर्ष आएगा उसे सरकार को अवगत भी कराया जाएगा. जिससे सरकार उस निष्कर्ष पर काम करें और इन जनजातियों को सुरक्षित रख सके.
ये भी पढ़ें-सगे भाइयों को गोली मारने के बाद भी चेहरे पर नहीं था खौफ, सैकड़ों की भीड़ में लहराते रहे हथियार
बिरहोर बस्ती का मुआयना
वार्षिक संगोष्ठी में हिस्सा लेने आए मानव वैज्ञानिक के दल ने हजारीबाग के बिरहोर बस्ती का भी मुआयना किया. उनसे बातें कर उनकी स्थिति के बारे में भी जानकारी इकट्ठा की. उनका मानना है कि बिरहोर जनजाति प्रकृति से काफी नजदीक रहती है लेकिन हजारीबाग में उन्हें सड़क के किनारे बसाया गया है. जिसके कारण उनमें कई परिवर्तन भी आ रहे हैं. जो घर बसाया गया है वह भी उनके अनुरूप नहीं है. उनकी संख्या क्यों नहीं बढ़ रही है, इस बात को लेकर भी वहां शोध किया गया.
ये भी पढ़ें-सगे भाइयों को गोली मारने के बाद भी चेहरे पर नहीं था खौफ, सैकड़ों की भीड़ में लहराते रहे हथियार
बिरहोरों हो रहे प्रकृति से दूर
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव विज्ञान संग्रहालय भोपाल के निदेशक सोरिक चौधरी का मानना है कि पूर्णिया में जो बिरहोर रह रहे हैं, उनकी स्थिति हजारीबाग में रहने वाले बिरहोर से अच्छी है. उन्होंने कहा कि शहर के बगल एनएच में बिरहोर को नहीं बसाना चाहिए. वे प्रकृति से दूर होते जाते हैं. जिससे उनके व्यवहार पर भी असर पड़ता है. उन्होंने कहा कि सरकार और विश्वविद्यालय को इस बाबत सोचने की भी आवश्यकता है. इस संगोष्ठी में इस बिंदु पर भी चर्चा की जा रही है, जिससे बिरहोर जो विलुप्त होते जा रहे हैं उसे संग्रहित कर सकें.