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विनोबा भावे विश्वविद्यालय में जनजातीय शोध को लेकर सेमीनार का आयोजन, आदिवासियों में आए बदलाव पर हो रही चर्चा - Indira Gandhi National Anthropological Museum

विनोबा भावे विश्वविद्यालय में इन दिनों मानव विज्ञान के विद्वानों का महाकुंभ लगा है.  देश भर से लगभग 170 मानव विज्ञान शास्त्री का जुटान हुआ है. जो 12 राज्यों से हजारीबाग में पहुंचे हैं, राज्य भर से 131 पत्र पर चर्चा कर रहे हैं.

विनोबा भावे विश्वविद्यालय
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Published : Oct 15, 2019, 11:45 PM IST

हजारीबागः विनोबा भावे विश्वविद्यालय के लिए मंगलवार का दिन यादगार पलों में एक रहेगा. भारतीय मानव विज्ञान संघ का 49 वां वार्षिक सम्मेलन सह जनजातीय शोध में मानव विज्ञान और संबंधी विषयों का क्या योगदान है, इस विषय पर राष्ट्रीय सेमिनार आयोजित किया गया. आयोजन स्नाकोत्तर मानव विज्ञान विभाग ने किया है.

देखें पूरी खबर

बता दें कि भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव विज्ञान संग्रहालय, भोपाल और संस्कृति मंत्रालय के संयुक्त तत्वाधान में इसका आयोजन किया जा रहा है. जिसमें पूरे देश से लगभग 165 विद्वान जुट रहे हैं और जनजातीय विषय पर अपनी बातों को साझा कर रहे हैं. इसमें 131 पत्र पर चर्चा भी की जा रही है.


झारखंड में जनजातियों में आया परिवर्तन

वार्षिक संगोष्ठी में हिस्सा लेने आए मानव शास्त्री बताते हैं कि आज के समय में जनजातियों में बदलाव भी आ रहे हैं. लेकिन यह बदलाव कई परिपेक्ष में हो रहे हैं. उनका मानना है कि झारखंड में बहुत सारी जनजातियां रहती है. अगर भारत के परिपेक्ष में की बात की जाए तो पूरे देश के कई हिस्सों में अलग-अलग तरह के जनजातियों का निवास स्थान रहा है. झारखंड में जो जनजातियां रह रही हैं, उनके व्यवहार में भी परिवर्तन हो रहे हैं. मानव विज्ञान की ओर से समाज विज्ञान क्या उन जनजाति के लिए कर सकता है, इस विषय पर चर्चा की जा रही है. जो निष्कर्ष आएगा उसे सरकार को अवगत भी कराया जाएगा. जिससे सरकार उस निष्कर्ष पर काम करें और इन जनजातियों को सुरक्षित रख सके.

ये भी पढ़ें-सगे भाइयों को गोली मारने के बाद भी चेहरे पर नहीं था खौफ, सैकड़ों की भीड़ में लहराते रहे हथियार

बिरहोर बस्ती का मुआयना

वार्षिक संगोष्ठी में हिस्सा लेने आए मानव वैज्ञानिक के दल ने हजारीबाग के बिरहोर बस्ती का भी मुआयना किया. उनसे बातें कर उनकी स्थिति के बारे में भी जानकारी इकट्ठा की. उनका मानना है कि बिरहोर जनजाति प्रकृति से काफी नजदीक रहती है लेकिन हजारीबाग में उन्हें सड़क के किनारे बसाया गया है. जिसके कारण उनमें कई परिवर्तन भी आ रहे हैं. जो घर बसाया गया है वह भी उनके अनुरूप नहीं है. उनकी संख्या क्यों नहीं बढ़ रही है, इस बात को लेकर भी वहां शोध किया गया.


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बिरहोरों हो रहे प्रकृति से दूर

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव विज्ञान संग्रहालय भोपाल के निदेशक सोरिक चौधरी का मानना है कि पूर्णिया में जो बिरहोर रह रहे हैं, उनकी स्थिति हजारीबाग में रहने वाले बिरहोर से अच्छी है. उन्होंने कहा कि शहर के बगल एनएच में बिरहोर को नहीं बसाना चाहिए. वे प्रकृति से दूर होते जाते हैं. जिससे उनके व्यवहार पर भी असर पड़ता है. उन्होंने कहा कि सरकार और विश्वविद्यालय को इस बाबत सोचने की भी आवश्यकता है. इस संगोष्ठी में इस बिंदु पर भी चर्चा की जा रही है, जिससे बिरहोर जो विलुप्त होते जा रहे हैं उसे संग्रहित कर सकें.

हजारीबागः विनोबा भावे विश्वविद्यालय के लिए मंगलवार का दिन यादगार पलों में एक रहेगा. भारतीय मानव विज्ञान संघ का 49 वां वार्षिक सम्मेलन सह जनजातीय शोध में मानव विज्ञान और संबंधी विषयों का क्या योगदान है, इस विषय पर राष्ट्रीय सेमिनार आयोजित किया गया. आयोजन स्नाकोत्तर मानव विज्ञान विभाग ने किया है.

देखें पूरी खबर

बता दें कि भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव विज्ञान संग्रहालय, भोपाल और संस्कृति मंत्रालय के संयुक्त तत्वाधान में इसका आयोजन किया जा रहा है. जिसमें पूरे देश से लगभग 165 विद्वान जुट रहे हैं और जनजातीय विषय पर अपनी बातों को साझा कर रहे हैं. इसमें 131 पत्र पर चर्चा भी की जा रही है.


झारखंड में जनजातियों में आया परिवर्तन

वार्षिक संगोष्ठी में हिस्सा लेने आए मानव शास्त्री बताते हैं कि आज के समय में जनजातियों में बदलाव भी आ रहे हैं. लेकिन यह बदलाव कई परिपेक्ष में हो रहे हैं. उनका मानना है कि झारखंड में बहुत सारी जनजातियां रहती है. अगर भारत के परिपेक्ष में की बात की जाए तो पूरे देश के कई हिस्सों में अलग-अलग तरह के जनजातियों का निवास स्थान रहा है. झारखंड में जो जनजातियां रह रही हैं, उनके व्यवहार में भी परिवर्तन हो रहे हैं. मानव विज्ञान की ओर से समाज विज्ञान क्या उन जनजाति के लिए कर सकता है, इस विषय पर चर्चा की जा रही है. जो निष्कर्ष आएगा उसे सरकार को अवगत भी कराया जाएगा. जिससे सरकार उस निष्कर्ष पर काम करें और इन जनजातियों को सुरक्षित रख सके.

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बिरहोर बस्ती का मुआयना

वार्षिक संगोष्ठी में हिस्सा लेने आए मानव वैज्ञानिक के दल ने हजारीबाग के बिरहोर बस्ती का भी मुआयना किया. उनसे बातें कर उनकी स्थिति के बारे में भी जानकारी इकट्ठा की. उनका मानना है कि बिरहोर जनजाति प्रकृति से काफी नजदीक रहती है लेकिन हजारीबाग में उन्हें सड़क के किनारे बसाया गया है. जिसके कारण उनमें कई परिवर्तन भी आ रहे हैं. जो घर बसाया गया है वह भी उनके अनुरूप नहीं है. उनकी संख्या क्यों नहीं बढ़ रही है, इस बात को लेकर भी वहां शोध किया गया.


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बिरहोरों हो रहे प्रकृति से दूर

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव विज्ञान संग्रहालय भोपाल के निदेशक सोरिक चौधरी का मानना है कि पूर्णिया में जो बिरहोर रह रहे हैं, उनकी स्थिति हजारीबाग में रहने वाले बिरहोर से अच्छी है. उन्होंने कहा कि शहर के बगल एनएच में बिरहोर को नहीं बसाना चाहिए. वे प्रकृति से दूर होते जाते हैं. जिससे उनके व्यवहार पर भी असर पड़ता है. उन्होंने कहा कि सरकार और विश्वविद्यालय को इस बाबत सोचने की भी आवश्यकता है. इस संगोष्ठी में इस बिंदु पर भी चर्चा की जा रही है, जिससे बिरहोर जो विलुप्त होते जा रहे हैं उसे संग्रहित कर सकें.

Intro:बिनोवा भावे विश्वविद्यालय में इन दिनों मानव विज्ञान के विद्वानों का महाकुंभ लगा है। देश भर से लगभग 170 मानव विज्ञान शास्त्री का जुटान हुआ है। जो 12 राज्यों से हजारीबाग में पहुंचे हैं राज्य भर से 131 पत्र पर चर्चा कर रहे हैं।


Body:विनोबा भावे विश्वविद्यालय के लिए आज दिन यादगार पलों में एक रहेगा ।भारतीय मानव विज्ञान संघ का 49 वां वार्षिक सम्मेलन सह जनजातीय शोध में मानव विज्ञान और संबंधी विषयों का क्या योगदान है इस विषय पर राष्ट्रीय सेमिनार चल रहा है। आयोजन स्नाकोत्तर मानव विज्ञान विभाग ने किया है ।जिसमें भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण ,इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव विज्ञान संग्रहालय ,भोपाल और संस्कृति मंत्रालय के संयुक्त तत्वाधान में आयोजन किया जा रहा है। जिसमें पूरे देश से लगभग 165 विद्वान जुट रहे हैं और जनजातीय विषय पर अपनी बातों को साझा कर रहे हैं। इसमें 131 पत्र पर चर्चा भी की जा रही है ।

जहां मानव विज्ञान शास्त्रीय का कहना है कि आज के समय में मानव विज्ञान एक व्यापक विषय के रूप में उभरा है । इस क्षेत्र में शोध का अपार संभावना है । पूरा विश्व खुला प्रयोगशाला के रूप में माना जा सकता है। वार्षिक संगोष्ठी में हिस्सा लेने आए मानव शास्त्री का कहना है कि वर्तमान समय में जनजातियों में बदलाव भी आ रहा है। लेकिन यह बदलाव कई परिपेक्ष में हो रही है। उनका मानना है कि झारखंड में बहुत सारे जनजाति रहते हैं। अगर भारत की परिपेक्ष में की बात की जाए तो पूरे देश के कई हिस्सों में अलग-अलग तरह के जनजातियों का निवास स्थान रहा है । लेकिन झारखंड में जो जनजातियां रह रही है ।उनके व्यवहार में भी परिवर्तन हो रहे हैं ।मानव विज्ञान की ओर से समाज विज्ञान क्या उन जनजाति के लिए कर सकता है इस विषय पर हम चर्चा कर रहे हैं।जो निष्कर्ष आएगा उसे सरकार को अवगत भी कराया जाएगा।ताकि सरकार उस निष्कर्ष पर काम करें और इन जनजातियों को सुरक्षित रख सके।

वही वार्षिक संगोष्ठी में हिस्सा लेने आए मानव वैज्ञानिक का दल ने हजारीबाग के बिरहोर बस्ती का भी मुआयना किया। उनसे बातें कर उनकी स्थिति के बारे में भी जानकारी इकट्ठा किया। उनका मानना है कि बिरहोर जनजाति प्रकृति से काफी नजदीक रहती है लेकिन हजारीबाग में उन्हें सड़क के किनारे बसाया गया है। जिसके कारण उनमें कई परिवर्तन भी आ रहे हैं ।जो घर बसाया गया है वह भी उनके अनुरूप नहीं है। उन की संख्या क्यों नहीं बढ़ रही है इस बात को लेकर भी वहां शोध किया गया।

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव विज्ञान संग्रहालय भोपाल के निदेशक सोरिक चौधरी का मानना है कि पूर्णिया में जो बिरहोर रह रहे हैं उनकी स्थिति हजारीबाग में रहने वाले बिरहोर से अच्छा है। उन्होंने कहा कि शहर के बगल एनएच में बिरहोर को नहीं बसाना चाहिए। क्योंकि वे प्रकृति से दूर होते जाते हैं। जिससे उनके व्यवहार पर भी असर पड़ता है। उन्होंने कहा कि सरकार और विश्वविद्यालय को इस बाबत सोचने की भी आवश्यकता है। इस संगोष्ठी में हम लोग इस बिंदु पर भी चर्चा कर रहे हैं। उनके लाइफ स्टाइल को कैसे सुधारा जा सके इस पर भी चर्चा होनी चाहिए। ताकि बिरहोर जो विलुप्त होती विजन जाती है उसे संग्रहित कर सके।

byte.... परुण उपाध्याय, जनरल सेक्रेटरी ,इंडियन एंथ्रोपॉलजिकल सोसायटी
byte.... सोरीक चौधरी, निदेशक ,मानव संग्रहालय भोपाल


Conclusion:हजारीबाग के विनोबा भावे विश्वविद्यालय में इंडियन एंथ्रोपॉलजिकल सोसायटी के सदस्य का आना और चर्चा करना यह महत्वपूर्ण बात है ।लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि वे सरकार को जो इनपुट्स दे उस पर सरकार काम करें। ताकि विलुप्त होती जनजातियों को हम सभी संग्रहित कर सके।
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