हजारीबाग: भारत कृषि प्रधान देश है. हमारी अर्थव्यवस्था भी कृषि पर निर्भर करती है. मॉनसून के वक्त किसानों के चेहरे पर मुस्कान दिखती है, क्योंकि सालभर का दाना-पानी मॉनसून पर ही निर्भर करता है. लेकिन धान रोपने का काम महिलाएं ही क्यों करती हैं, ये जानने वाली बात है.
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धान रोपने की परंपरा है प्राचीन
शायद ही आपको ऐसा कोई खेत दिखे, जहां धान रोपते पुरुष दिखे. प्राचीन काल से ही खेती-बाड़ी में धान रोपनी महिलाएं ही करती रही हैं. आज भी हम अगर गांव में जाएंगे, तो महिलाएं मॉनसून के वक्त धान रोपने का काम करती हैं. पुरुषों की अगर बात की जाए, तो वे खेत जोतने, मेढ बनाने और बिहन तैयार करने का काम करते हैं. बिहन तैयार होने के बाद महिलाएं बिहन का गीत गाती हैं, पूजा करती हैं और फिर धान रोपनी करती हैं.
सृजन की प्रतीक है महिलाएं
दरअसल, प्राचीन काल से ही यह मान्यता रही है कि महिलाएं सृजन की प्रतीक हैं. इन्हीं से दुनिया चलती है. खेती में भी धान रोपना सृजन का प्रतीक है. इसी के चलते महिलाओं से ही धान रोपने की परंपरा पिछले ना जाने कितने समय से चलती आ रही है. हजारीबाग के किसान चंदन मेहता कहते हैं कि घर में काफी लोग हैं, लेकिन धान रोपते नहीं हैं. बस धान रोपने में महिलाओं की मदद करते हैं. हमारी मां-भाभी और दूसरी महिलाएं मिलकर धान रोपने का काम करती हैं.
गांव में लोकगीत की परंपरा जीवित
धान रोपनी के दौरान सारा वातावरण लोकगीत से गूंजायमान हो उठता है. शहर में जहां यह लोकगीत अब धीरे-धीरे विलुप्त हो रहे हैं, वहीं गांव की महिलाओं ने अपनी परंपरा को आज भी जीवित रखा है. ग्रामीण महिलाएं सामूहिक रूप से लोकगीत गाती हैं. इस लोकगीत का अर्थ होता है मेघ, जिसे कृषक समाज देवता मानते हैं. उनसे बरसने के लिए प्रार्थना की जाती है.
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लोकगीत का महत्व
गीत के जरिए भगवान को खुश किया जाता है, ताकि हमेशा किसानों पर उनका आशीर्वाद बना रहे. किसानों का घर-आंगन हमेशा अनाज से भरा रहे. ये भी कहा जाता है कि घर के पुरुष हर रोज खेत जाते हैं, उनपर भी भगवान की कृपा रहे. गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि महिलाओं से हल नहीं चलवाया जाता. अगर महिलाएं हल चलाएंगी, तो बहुत बड़ा अनर्थ और पाप हो जाएगा. इसलिए महिलाएं कभी हल नहीं चलाती. वह सिर्फ और सिर्फ धान रोपती हैं. ऐसे में कहना गलत नहीं होगा कि महिलाओं का अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान है. मिलजुल कर खेती करना ही देश को कृषि प्रधान देश बनाता है.