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डाक टिकटों के संग्रह का शौक बना जुनून, इस रंगबिरंगी दुनिया के आप भी हो जाएंगे मुरीद - डाक टिकट के संग्रह का शौक

भले ही चिठ्ठी अब पुरानी बात हो गई है, लेकिन डाक टिकटों को कलेक्ट करने के शौकीन लोग आज भी इसे सहेज कर रखे हुए हैं. बच्चों में खासतौर पर डाक टिकटों का संग्रह करना एक जुनून सा है. ऐसे ही एक छात्रा गुनगुन गुप्ता है. जिन्होंने काफी समय से डाक टिकटों को संग्रहित कर के रखा है.

stamp collecting
टिकटों का संग्रह
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Published : Dec 17, 2019, 3:29 PM IST

हजारीबागः टेक्नोलॉजी के युग में चिट्ठी का दौर तो खत्म हो चुका है, लेकिन उस पर लगने वाले टिकट आकर्षण के केंद्र बने हुए हैं. डाक टिकटों को संग्रह कर उन्हें सुरक्षित करना कई लोगों का शौक रहा है. कई लोग तो बचपन से ही इसके शौकीन रहे हैं. इसी शौक ने डाक टिकट की प्रासंगिकता बरकरार रखी है. बच्चों में खासतौर पर डाक टिकटों का संग्रह करना एक जुनून सा है. ऐसे ही एक छात्रा गुनगुन गुप्ता है जिसने क्लास 9वीं से टिकट संग्रह करना शुरू किया. आज उसके पास लगभग 5 हजार से अधिक डाक टिकट हैं.

देखें स्पेशल स्टोरी

गुनगुन गुप्ता बताती हैं कि एकबार पोस्ट ऑफिस में डाक टिकट का प्रदर्शन लगा. उस प्रदर्शनी से वह इतनी प्रभावित हुई कि उसके दिलों में भी टिकट संग्रह करने का जुनून आ गया. धीरे-धीरे उन्होंने टिकट संग्रह करना शुरू किया. इसे लेकर वह हजारों रुपए भी खर्च कर चुकी है. जहां भी टिकट बिकते हैं वहां से खरीद कर टिकट जमा करती. उसके पास आज विदेशों के भी टिकट है. वो कहती है कि डाक टिकट का संग्रहालय सिर्फ रोचकता के लिए नहीं, बल्कि सभ्यता और संस्कृति का भी परिचायक है. 2 देशों की संधि हो या फिर महात्मा गांधी की याद या फिर स्वच्छ भारत अभियान सबकी झलक डाक टिकट में दिखती है.

ये भी पढ़ें- झारखंड हाई कोर्ट के तीन जज बने स्थाई जज, 19 दिसंबर को दिलाई जाएगी गोपनीयता का शपथ

वहीं, हजारीबाग के एक अन्य डाक टिकट के प्रेमी बताते हैं कि जब वह पढ़ते थे उस वक्त उनके दोस्त टिकट संग्रह करते थे. उस समय से लेकर अब तक उनके पास लगभग 10 हजार से अधिक टिकट हैं. उनमें से कुछ टिकट ऐसे भी हैं जो अब दुर्लभ हो गए हैं. उनका कहना है कि खासकर छात्रों में डाक टिकट को लेकर सबसे अधिक उत्सुकता होती है.

हजारीबागः टेक्नोलॉजी के युग में चिट्ठी का दौर तो खत्म हो चुका है, लेकिन उस पर लगने वाले टिकट आकर्षण के केंद्र बने हुए हैं. डाक टिकटों को संग्रह कर उन्हें सुरक्षित करना कई लोगों का शौक रहा है. कई लोग तो बचपन से ही इसके शौकीन रहे हैं. इसी शौक ने डाक टिकट की प्रासंगिकता बरकरार रखी है. बच्चों में खासतौर पर डाक टिकटों का संग्रह करना एक जुनून सा है. ऐसे ही एक छात्रा गुनगुन गुप्ता है जिसने क्लास 9वीं से टिकट संग्रह करना शुरू किया. आज उसके पास लगभग 5 हजार से अधिक डाक टिकट हैं.

देखें स्पेशल स्टोरी

गुनगुन गुप्ता बताती हैं कि एकबार पोस्ट ऑफिस में डाक टिकट का प्रदर्शन लगा. उस प्रदर्शनी से वह इतनी प्रभावित हुई कि उसके दिलों में भी टिकट संग्रह करने का जुनून आ गया. धीरे-धीरे उन्होंने टिकट संग्रह करना शुरू किया. इसे लेकर वह हजारों रुपए भी खर्च कर चुकी है. जहां भी टिकट बिकते हैं वहां से खरीद कर टिकट जमा करती. उसके पास आज विदेशों के भी टिकट है. वो कहती है कि डाक टिकट का संग्रहालय सिर्फ रोचकता के लिए नहीं, बल्कि सभ्यता और संस्कृति का भी परिचायक है. 2 देशों की संधि हो या फिर महात्मा गांधी की याद या फिर स्वच्छ भारत अभियान सबकी झलक डाक टिकट में दिखती है.

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वहीं, हजारीबाग के एक अन्य डाक टिकट के प्रेमी बताते हैं कि जब वह पढ़ते थे उस वक्त उनके दोस्त टिकट संग्रह करते थे. उस समय से लेकर अब तक उनके पास लगभग 10 हजार से अधिक टिकट हैं. उनमें से कुछ टिकट ऐसे भी हैं जो अब दुर्लभ हो गए हैं. उनका कहना है कि खासकर छात्रों में डाक टिकट को लेकर सबसे अधिक उत्सुकता होती है.

Intro:दिल में कब और कौन अरमान मचल जाए और कौन किसके लिए दीवाना हो जाए यह कहा नहीं जा सकता ।ऐसा ही कुछ हजारीबाग में 11वीं में पढ़ने वाली छात्रा गुनगुन के साथ हुआ है। गुनगुन नौवीं क्लास से पढ़ते हुए डाक टिकटों का संग्रह का शौक लगा और आज जुनून हद को पार कर चुका है।


Body:आज के टेक्नोलॉजी के युग में चिट्ठी तो आना बंद ही हो चुका है। लेकिन उस पर लगने वाले टिकट किया आज भी आकर्षण का केंद्र बिंदु है। डाक टिकटों को संग्रह कर उन्हें सुरक्षित करना कई लोगों का शौक रहा है। कई लोग तो बचपन से ही इसके शौकीन रहे हैं। इसी शौक ने डाक टिकट की आज भी प्रासंगिकता बरकरार रखी है ।बच्चों में खासतौर पर डाक टिकटों का संग्रह करना एक जुनून सा है ।ऐसे ही एक छात्रा है हजारीबाग की जिसने क्लास 9वी से टिकट संग्रह करना शुरू किया और आज उसके पास लगभग 5000 से अधिक डाक टिकट है जो विभिन्न देश और दुनिया के हैं। यहां तक कि उसके पास जो टिकट है वह भारत की सभ्यता और संस्कृति को भी दर्शाने वाला है। आलम यह है कि आज उसे सब डाक टिकट वाली दीदी कह कर पुकारते भी हैं ।वह बताती है कि एकबार पोस्ट ऑफिस में डाक टिकट का प्रदर्शन लगा और उस प्रदर्शनी से वह इतनी प्रभावित हुई कि उसके दिलों में भी टिकट संग्रह करने का जुनून आ गया। धीरे धीरे टिकट संग्रह करना शुरू किया। खास करके वैसे टिकट जिसका ऐतिहासिक महत्व है वह उसे संग्रह करती है। इसे लेकर वह हजारों रुपया भी अपना खर्च कर चुकी है। जहां भी टिकट बिकता वहां से खरीद कर टिकट जमा करती । उसके पास आज विदेशों के भी टिकट है। वह बताती है कि नोएडा में एक बार डाक प्रदर्शनी लगा और वहां डाक टिकट बिक्री के भी थे। वह टिकट वहां से भी खरीद कर अपने संग्रहालय में जमा की। उसका मानना है कि डाक टिकट का संग्रहालय सिर्फ रोचकता के लिए नहीं नहीं बल्कि सभ्यता और संस्कृति का भी परिचायक है ।2 देशों का संधि हो या फिर महात्मा गांधी की याद या फिर स्वच्छ भारत अभियान सबकी झलक डाक टिकट में दिखती है। इसलिए डाक टिकट खुद में ही एक इतिहास है । इसी इतिहास को वह संग्रह करना चाहती है। आलम यह है कि स्कूल में भी इसके कई दोस्त अब उससे डाक टिकट के बारे में पूछते हैं।


वही हजारीबाग के एक अन्य डाक टिकट के प्रेमी बताते हैं कि जब वह बीआरटी महेशरा में पढ़ते थे उस वक्त उनके दोस्त टिकट संग्रह करते थे । उस समय से लेकर अब तक उनके पास लगभग 10,000 से अधिक टिकट है। उनमें से कुछ टिकट ऐसे भी हैं जो अब दुर्लभ हो गए हैं ।लेकिन उनके घर के संग्रहालय में उनकी शान बढा रहे है। उनका कहना है कि खासकर छात्रों में डाक टिकट को लेकर सबसे अधिक उत्सुकता होती है। वर्तमान समय में अब चिट्ठी लिखना एक सपने जैसा है ।लेकिन उसमें लगे डाक टिकट सभी के लिए आकर्षण का केंद्र बिंदु रहता है। इस कारण आज कई छात्र-छात्राएं उनसे टिकट के बारे में पूछते है। वह भी कहते हैं कि हर एक व्यक्ति को अपने इतिहास के बारे में जानने की उत्सुकता होती है और डाक टिकट उत्सुकता को बताने का एक माध्यम है।

byte.... गुनगुन गुप्ता, टिकट संग्रह करने वाली छात्रा
byte..... अनिल कुमार राणा, टिकट संग्रह करने वाले


Conclusion:कहां जाए तो डाक टिकट का संग्रह शौक है, जो सभी के दिलों में होता है ।लेकिन उस शौक को जुनून बनाना खुद में एक चुनौती से कम नहीं है।
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