हजारीबाग: नक्सल और उग्रवादियों के खिलाफ सीआरपीएफ और झारखंड पुलिस के संयुक्त अभियान के कारण उनकी कमर टूट गई है. धीरे-धीरे घटना में भी गिरावट दर्ज की गई है. लेकिन अभी भी कुछ क्षेत्रों में इनकी धमक है. ऐसे में इन्हें पूरी तरह से खत्म करने के लिए अभियान भी चलाया जा रहा है. लेकिन अब उग्रवादी और माओवादी ग्रामीणों का फोन बातचीत के लिए उपयोग में ला रहे हैं. जो पुलिस के लिए मुसीबत बनती जा रही है.
दूसरे के नाम से मोबाइल सिम का उपयोगनक्सली खुद को सुरक्षित करने के लिए कई हथकंडे अपनाते रहे हैं. कभी शहरों को ठिकाना बनात हैं, तो कभी दूसरे के नाम से मोबाइल सिम का उपयोग करते हैं. लेकिन अब नक्सली और अन्य उग्रवादी संगठन ग्रामीणों का मोबाइल अपनी बातचीत के लिए उपयोग में ला रहे हैं. इस बात की जानकारी हजारीबाग के एएसपी अभियान रमेश ने दी है. उनका कहना है कि ग्रामीणों को डरा धमका कर केवल फोन लेते हैं और फिर उसका उपयोग कर उन्हें वापस लौटा देते हैं. जिससे माओवादी और उग्रवादियों को ट्रेस करने में मुसीबत आ रही है. जब हम मालूम करते हैं कि फोन करने का क्षेत्र क्या है तो हमें मालूम चलता है कि वह किसी किसान या मजदूर का मोबाइल है. ऐसे हजारीबाग एएसपी का यह भी कहना है कि हम लोग व्हाट्सएप को भी अब ट्रेस करने की कोशिश कर रहे हैं. इसके लिए तकनीकी विभाग हमें मदद भी करता है. लेकिन हम ग्रामीणों से अब अपील भी कर रहे हैं कि अगर वह मोबाइल का उपयोग करते हैं तो माओवादी या उग्रवादियों को न दें.
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पीएलएफआई समेत अन्य आपराधिक गिरोह
वहीं पहले महिलाओं को संगठन में जोड़ने का कार्य पीएलएफआई समेत अन्य अपराधिक गिरोह करते रहे हैं. लेकिन अब धीरे-धीरे यह ट्रेंड भी घटता जा रहा है. वहीं बच्चों को भी संगठन में नहीं जोड़ा जा रहा है. जिसका कारण सूचना लीक करना बताया जा रहा है. लेकिन ग्रामीणों का मोबाइल नक्सली और उग्रवादियों का उपयोग करना अब पुलिस के लिए चुनौती बनती जा रही है.