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पारंपरिक पुस्तक व्यवसाय पर कोरोना की मार, ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर बढ़ा युवाओं का रुझान

कोरोना वायरस के कारण लगाए गए लॉकडाउन की वजह से पुस्तक व्यवसाय पर काफी असर पड़ा है. हजारीबाग जिले की सबसे बड़ी किताब दुकान के व्यवसायी के अनुसार करीब 50 से 60 फीसदी तक नुकसान हुआ का है. हालांकि कई युवा उपन्यासकार भी हैं जो अपनी लेखन सामग्री ऑनलाइन उपलब्ध कराते हैं. उनका कहना है कि लॉकडाउन के दौरान लोगों का रुझान उनकी तरफ बढ़ा है.

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पुस्तक व्यवसाय पर लॉकडाउन का असर
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Published : Jan 9, 2021, 6:31 PM IST

हजारीबाग: पुस्तक और छात्र का वही संबंध है जो शरीर और आत्मा का है. छात्र बिना पुस्तक के नहीं रह सकते है, तो शरीर आत्मा के बिना मृत हो जाता है. लॉकडाउन के समय जो छात्र किताब पढ़ने के शौकीन हैं, वह काफी परेशान रहे. तो दूसरी ओर पुस्तक व्यवसाय पर भी बुरा असर पड़ा है. छात्रों ने ऑनलाइन मार्केटिंग की ओर रुख किया. ऑनलाइन मार्केटिंग की वजह से किताब व्यवसाय पर प्रतिकूल असर पड़ा है.

देखें स्पेशल खबर
पुस्तक व्यवसाय पर लॉकडाउन का असरलॉकडाउन के कारण शायद ही ऐसा कोई व्यापार है जिस पर प्रतिकूल असर नहीं पड़ा हो. ऐसे में पुस्तक व्यवसाय पर भी इसका काला साया पड़ा है. हजारीबाग जैसे छोटे शहर में भी इस व्यवसाय से जुड़े लोगों का हाल बेहाल रहा. हजारीबाग की सबसे बड़े किताब व्यवसायी की मानें जाए तो 50 से लेकर 60% तक नुकसान कोरोना के दौरान हुआ है, लेकिन धीरे-धीरे बाजार सामान्य हो रहा है. उनका यह भी कहना है कि जिस स्थिति से बाजार अभी गुजर रहा है यह भी संतोषजनक नहीं है. अभी भी कॉलेज और स्कूल बंद है, ऐसे में छात्रों का दुकान में आना भी कम है.छात्रों को हुई कोरोना काल में परेशानीछात्रों की मानें तो कोरोना काल के दौरान काफी परेशानी का सामना करना पड़ा है. ऑनलाइन बुक तो मिली लेकिन वह क्वालिटी नहीं मिली. दुकान आकर अपनी पसंद से किताब लेने का बात ही कुछ अलग होता है. अगर किताब ऑनलाइन मंगाई तो परेशानी भी हुई. ऑनलाइन किताब पढ़ी तो संतुष्टि भी नहीं मिली है. ऐसे में हम लोग ऑफलाइन ही पढ़ना पसंद करते हैं. क्योंकि इसके जरिए मेमोरी पर भी असर पड़ता है. जब हम लोग किताब पढ़ते हैं तो अंडरलाइन करते है या फिर उस किताब को बार-बार अध्ययन करते हैं इससे लाभ भी मिलता है.ऑफलाइन पढ़ने का अलग मजातो दूसरी ओर हजारीबाग के शिक्षाविद भी कहते हैं कि किताब ऑनलाइन तो कई आई हैं, लेकिन ऑफलाइन पढ़ने का अलग मजा है. हम अपने बच्चों को भी यही टिप्स देते है कि वे किताब दुकान से खरीदकर पढ़ें, लेकिन आज के संचार क्रांति के युग में ऑनलाइन किताब बाजार में आ गई हैं. बच्चे पढ़ते भी है, लेकिन वह क्वालिटी ऑफ एजुकेशन नहीं मिल पाती है.इसे भी पढ़ें- झारखंड के विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की कमी, कैसे सुधरेगी उच्च शिक्षा की स्थिति ?


उपन्यास पढ़ने वालों की संख्या
हजारीबाग के ख्याति प्राप्त पुस्तक व्यवसायी का यह भी कहना है कि लॉकडाउन के दौरान उपन्यास पढ़ने वालों की बढ़ी है. एक से बढ़कर एक उपन्यास बाजार में आ गए हैं. जो कैरियर, ज्ञान, और फिलोस्फी से जुड़ी हुईं हैं. ऐसे में ऑनलाइन मार्केट के कारण असर तो पड़ता है, लेकिन अभी भी अच्छा पढ़ने वाले दुकान की ओर रुख करते हैं, लेकिन कोरोना ने हमारे नोबेल व्यवसाय पर भी असर डाला है.

ऑनलाइन मार्केटिंग एक अच्छा प्लेटफार्म
हजारीबाग के रहने वाले युवा उपन्यासकार कहते हैं कि ऑनलाइन मार्केटिंग एक अच्छा प्लेटफार्म हम लोगों जैसे लेखक के लिए है. निर्भर करता है कि आप किस मीडियम पर किताब अपनी बेच रहे हैं. अगर अच्छा ऑनलाइन मार्केटिंग ग्रुप है तो अच्छा व्यवसाय भी होता है. उनका यह भी मानना है कि कोरोना काल के पहले मुझे कमाई नहीं मिली जो लॉकडाउन के समय मिली है. मैंने लॉकडाउन के दौरान अधिक पैसा कमाया.

हजारीबाग: पुस्तक और छात्र का वही संबंध है जो शरीर और आत्मा का है. छात्र बिना पुस्तक के नहीं रह सकते है, तो शरीर आत्मा के बिना मृत हो जाता है. लॉकडाउन के समय जो छात्र किताब पढ़ने के शौकीन हैं, वह काफी परेशान रहे. तो दूसरी ओर पुस्तक व्यवसाय पर भी बुरा असर पड़ा है. छात्रों ने ऑनलाइन मार्केटिंग की ओर रुख किया. ऑनलाइन मार्केटिंग की वजह से किताब व्यवसाय पर प्रतिकूल असर पड़ा है.

देखें स्पेशल खबर
पुस्तक व्यवसाय पर लॉकडाउन का असरलॉकडाउन के कारण शायद ही ऐसा कोई व्यापार है जिस पर प्रतिकूल असर नहीं पड़ा हो. ऐसे में पुस्तक व्यवसाय पर भी इसका काला साया पड़ा है. हजारीबाग जैसे छोटे शहर में भी इस व्यवसाय से जुड़े लोगों का हाल बेहाल रहा. हजारीबाग की सबसे बड़े किताब व्यवसायी की मानें जाए तो 50 से लेकर 60% तक नुकसान कोरोना के दौरान हुआ है, लेकिन धीरे-धीरे बाजार सामान्य हो रहा है. उनका यह भी कहना है कि जिस स्थिति से बाजार अभी गुजर रहा है यह भी संतोषजनक नहीं है. अभी भी कॉलेज और स्कूल बंद है, ऐसे में छात्रों का दुकान में आना भी कम है.छात्रों को हुई कोरोना काल में परेशानीछात्रों की मानें तो कोरोना काल के दौरान काफी परेशानी का सामना करना पड़ा है. ऑनलाइन बुक तो मिली लेकिन वह क्वालिटी नहीं मिली. दुकान आकर अपनी पसंद से किताब लेने का बात ही कुछ अलग होता है. अगर किताब ऑनलाइन मंगाई तो परेशानी भी हुई. ऑनलाइन किताब पढ़ी तो संतुष्टि भी नहीं मिली है. ऐसे में हम लोग ऑफलाइन ही पढ़ना पसंद करते हैं. क्योंकि इसके जरिए मेमोरी पर भी असर पड़ता है. जब हम लोग किताब पढ़ते हैं तो अंडरलाइन करते है या फिर उस किताब को बार-बार अध्ययन करते हैं इससे लाभ भी मिलता है.ऑफलाइन पढ़ने का अलग मजातो दूसरी ओर हजारीबाग के शिक्षाविद भी कहते हैं कि किताब ऑनलाइन तो कई आई हैं, लेकिन ऑफलाइन पढ़ने का अलग मजा है. हम अपने बच्चों को भी यही टिप्स देते है कि वे किताब दुकान से खरीदकर पढ़ें, लेकिन आज के संचार क्रांति के युग में ऑनलाइन किताब बाजार में आ गई हैं. बच्चे पढ़ते भी है, लेकिन वह क्वालिटी ऑफ एजुकेशन नहीं मिल पाती है.इसे भी पढ़ें- झारखंड के विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की कमी, कैसे सुधरेगी उच्च शिक्षा की स्थिति ?


उपन्यास पढ़ने वालों की संख्या
हजारीबाग के ख्याति प्राप्त पुस्तक व्यवसायी का यह भी कहना है कि लॉकडाउन के दौरान उपन्यास पढ़ने वालों की बढ़ी है. एक से बढ़कर एक उपन्यास बाजार में आ गए हैं. जो कैरियर, ज्ञान, और फिलोस्फी से जुड़ी हुईं हैं. ऐसे में ऑनलाइन मार्केट के कारण असर तो पड़ता है, लेकिन अभी भी अच्छा पढ़ने वाले दुकान की ओर रुख करते हैं, लेकिन कोरोना ने हमारे नोबेल व्यवसाय पर भी असर डाला है.

ऑनलाइन मार्केटिंग एक अच्छा प्लेटफार्म
हजारीबाग के रहने वाले युवा उपन्यासकार कहते हैं कि ऑनलाइन मार्केटिंग एक अच्छा प्लेटफार्म हम लोगों जैसे लेखक के लिए है. निर्भर करता है कि आप किस मीडियम पर किताब अपनी बेच रहे हैं. अगर अच्छा ऑनलाइन मार्केटिंग ग्रुप है तो अच्छा व्यवसाय भी होता है. उनका यह भी मानना है कि कोरोना काल के पहले मुझे कमाई नहीं मिली जो लॉकडाउन के समय मिली है. मैंने लॉकडाउन के दौरान अधिक पैसा कमाया.

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