कोडरमा: जैसे जैसे लॉकडाउन की अवधि बढ़ती जा रही हैं वैसे-वैसे समाजसेवियों के हाथ सेवा भाव के लिए बढ़ते जा रहे हैं. कोडरमा में ऐसा ही कुछ नजारा देखने को मिल रहा है. बिहार-झारखंड की सीमा पर कोडरमा घाटी में इन दिनों स्थानीय युवक घर लौटने वाले प्रवासी मजदूरों को खाना खिला रहे हैं, साथ ही पैदल अपने घर लौट रहे प्रवासी मजदूरों की आर्थिक मदद भी दे रहे हैं.
प्रवासी मजदूरों की घर वापसी के लिए सरकार ने भले ही दिशा-निर्देश जारी किए हो कि उनकी घर वापसी के लिए ट्रेन या बस की व्यवस्था की गई है, लेकिन कई ऐसे प्रवासी मजदूर आज भी जो लाचार होकर पैदल ही अपने घर वापस लौट रहे हैं. उनके पास न ही पैसे हैं और न ही खाने का कोई सामान. अपने घर वापस लौट रहे प्रवासी मजदूरों को बिहार-झारखंड की सीमा पर स्तिथ कोडरमा घाटी के मेघातरी में स्थानीय युवक मदद पहुंचा रहे हैं. ये युवक मजदूरों को हर सुविधा मुहैया कर रहे हैं. स्थानीय युवक प्रवासी मजदूरों की सहायता के लिए बीच जंगल में सेवा के लिए सदैव खड़े रहते हैं. ये स्थानीय युवक रास्ते से गुजरने वाले प्रवासी मजदूरों के लिए खाने पीने का इंतजाम करते हैं, साथ ही पैदल अपने घर लौटने वाले जरूरतमंद प्रवासी मजदूरों की आर्थिक मदद भी करते हैं.
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रांची-पटना मुख्य मार्ग पर स्थित कोडरमा घाटी लगभग 20 किलोमीटर लंबी घाटी है इस घाटी में कहीं भी कोई ढाबा या होटल नहीं हैं जहा लोगों को खाना मिल सके. ऐसे में मेघातरी गांव के युवक गरीबों की सेवा के लिए आगे आए हैं. इन दिनों इस रास्ते से होकर हर दिन हजारों प्रवासी मजदूर बस, ट्रक या पैदल गुजरते हैं और 20 किलोमीटर इस लंबी घाटी में सबसे ज्यादा परेशानी पैदल लौट रहे प्रवासी मजदूरों को होती है. ऐसे में इन स्थानीय युवकों का यह प्रयास काफी सराहनीय है. मेघातरी के स्थानीय युवक बीच घाटी में युवा रसोई चला रहे हैं और जो पैदल चलने वाले प्रवासी मजदूर हैं उन्हें बैठाकर खाना खिला रहे हैं. जो लोग बस, ट्रक या अपने निजी वाहन से घर लौट रहें हैं उन्हें तैयार किया गया फूड्स पैकेड मुहैया करा रहे हैं. ये युवक पैदल घर लौट रहे प्रवासी मजदूरों को रास्ते के लिए बिस्कुट मुढ़ी का पैकेड भी देते हैं, ताकि उन्हें रास्ते मे खाने की कोई परेशानी न हो इसके अलावा जो जरूरतमंद प्रवासी मजदूरों के पास पैसे नहीं होते हैं उनकी ये आर्थिक मदद भी करते हैं.