हजारीबाग: लॉकडाउन के कारण पूरा विश्व आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रहा है. इस वजह से समाज का हर एक वर्ग आर्थिक रूप से परेशान हैं, लेकिन हजारीबाग के किसान इस लॉकडाउन में भी मालामाल हो रहे हैं. आलम यह है कि हजारीबाग के किसानों ने पूरे देश भर में सबसे अधिक ऑनलाइन पेमेंट पाया है.
ई-नाम पोर्टल वरदान
एक ओर लॉकडाउन के कारण किसान अपने उत्पाद को बेचने के लिए परेशान हैं. अनाज बाजारों नहीं पहुंच पाने के कारण उन्हें नुकसान उठाना पड़ रहा है. वहीं दूसरी ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देश पर शुरू की गई ई-नाम पोर्टल इस लॉकडाउन में किसानों के लिए वरदान साबित हो रहा है. इसके जरिए सरकार किसानों को बड़ा बाजार उपलब्ध करा रही है. हजारीबाग में बाजार समिति के जरिए किसानों ने 125 मेट्रिक टन अनाज की बिक्री कर दी है. इसमें सर्वाधिक 120 मैट्रिक टन गेहूं की खरीदारी भी हुई है. इसके बाद सरसों बेचा गया है.
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ई-पेमेंट के मामले में पहले स्थान पर हजारीबाग
सबसे बड़ी बात यह है कि अब तक 27 लाख 16 हजार की राशि इन किसानों के खातों में ऑनलाइन पहुंच चुकी की है. यह आंकड़ा 29 मार्च 2020 से 12 अप्रैल 2020 के बीच की है. हजारीबाग बाजार समिति की पहल राज्य के लिए बड़ा उदाहरण बन गई है. अगर कहा जाए तो ई-पेमेंट के मामले में हजारीबाग पूरे देश में पहले स्थान पर है. हजारीबाग के अलावा सिर्फ गढ़वा में ई-नाम की शुरुआत हुई है, लेकिन वहां किसान सिर्फ 88 हजार रुपए ही पाए हैं.
किसानों की चिंता दूर
हजारीबाग के सुदूरवर्ती इचाक प्रखंड के बरकाखुर्द के किसान अशोक मेहता ने भी अपना अनाज ऑनलाइन ई-नाम पोर्टल के जरिए बेचा है. उनका कहना है कि उन्हें बहुत चिंता थी कि आखिर इस लॉकडाउन के समय खेत में उपजा अनाज (गेहूं) आखिर बाजार में कैसे जाएगा, लेकिन ई-नाम पोर्टल एक ऐसा प्लेटफॉर्म है, जिसके जरिए किसान अपना उत्पाद खुद ही बेच सकते हैं. सिर्फ हजारीबाग के ही नहीं, बल्कि पूरे देश भर के व्यवसायी इस ऑनलाइन के माध्यम से बोली लगाकर फसल खरीदते हैं. सबसे अहम बात यह है कि किसानों को 24 घंटे के अंदर ऑनलाइन के माध्यम से पैसे उनके खाते में पहुंच जाते हैं.
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सोशल डिस्टेंसिंग बरकरार
वहीं, हजारीबाग कृषि उत्पादन बाजार समिति के सचिव राकेश कुमार सिंह ने बताया कि ई-नाम पोर्टल के माध्यम से किसानों को हुए डिजिटल पेमेंट में हजारीबाग पूरे देश में नंबर वन है. लॉकडाउन के समय किसानों के लिए अपने उत्पाद बेचने में ही ई-नाम बेहतर प्लेटफॉर्म है. ऐसे में किसान और व्यापारी के बीच सोशल डिस्टेंसिंग भी बनी रहती है और अनाज की बिक्री भी उचित मूल्य पर हो जाती है.