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यूक्रेन में फंसा छात्र लौटा हजारीबाग, कई किलो किलोमीटर पैदल यात्रा कर बचाई जान

भारत सरकार यूक्रेन में फंसे भारतीयों को वापस लाने के प्रयास में जुटी है. इसी प्रयास से हजारीबाग के रहने वाले छात्र दानिश अपने घर लौट पाए हैं. दानिश ने वहां युद्ध के बाद की स्थिति और समस्याओं से लेकर स्वदेश लौटने तक का अपना अनुभव ईटीवी भारत के साथ साझा किया है.

Hazaribag News
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Published : Mar 5, 2022, 2:13 PM IST

हजारीबाग: रूस-यूक्रेन युद्ध (Russia Ukraine War) के बीच कई भारतीय फंस गए हैं. भारत सरकार यूक्रेन में फंसे भारतीयों को स्वदेश लाने के लिए ऑपरेशन गंगा चला रही है. इस ऑपरेशन और राज्य सरकार की मदद से यूक्रेन में फंसे दानिश भी हजारीबाग अपने घर लौट पाए हैं. उन्होंने वहां की दर्दनाक मंजर को ईटीवी भारत के साथ साझा करते हुए कहा कि स्थिति बेहद खराब हो चुकी है. उन्होंने बताया कि यूक्रेन में उन्हें किसी भी तरह की मदद नहीं मिल रही थी और ना ही वहां दूतावास सही तरीके से काम कर रहा है. लेकिन पोलैंड आने के बाद एंबेसी का भरपूर सहयोग मिला.

इसे भी पढ़ें: रूस और यूक्रेन के बीच जंग जारी: कीव में हवाई हमले का अलर्ट, सीजफायर का एलान



यूक्रेन की सीमा से बाहर निकलना चुनौती: दानिश का कहना है कि यूक्रेन से पोलैंड सीमा तक पहुंचना चुनौती से कम नहीं है. ट्रेन सेवा पूर्ण रूप से बाधित है. कुछ निजी टैक्सी चल रहीं हैं. लेकिन वह भी छात्रों से मनमाना पैसा वसूल रहे हैं. लगभग 90 किलोमीटर दूर से सीमा तक जाने के लिए टैक्सी ने 4 हजार रुपए की जगह 30 हजार लिए. उसके बाद भी उन्हें रास्ते में ही टैक्सी छोड़ना पड़ा. क्योंकि ट्रैफिक की स्थिति बेहद खराब थी. 45 किलोमीटर टैक्सी और फिर 45 किलोमीटर लगातार पैदल चलना पड़ा. इस दौरान न खाने का इंतजाम था और ना ही वहीं रुकने का. लेकिन फिर भी वहां से लोग किसी तरह जान बचाकर सीमा तक पहुंच पाए हैं. सीमा तक पहुंचने के पहले इमीग्रेशन चेक के लिए भी घंटों इंतजार करना पड़ा. इमीग्रेशन चेक होने के बाद वे लोग पोलैंड सीमा के अंदर पहुंचे और वहां भी घंटों इंतजार करने के बाद उन्हें फ्लाइट में बैठने का मौका मिला. जिसके बाद उन्हें यह विश्वास हुआ कि अब वे सुरक्षित स्वदेश पहुंच सकते हैं.

यूक्रेन से आए छात्र से बात करते संवाददाता गौरव प्रकाश

जान बचाकर भार रहे लोग: दानिश ने बताया कि पोलैंड सीमा पहुंचने के बाद एंबेसी ने उन्हें काफी सुविधाएं दी, हालांकि वहां भी आपाधापी की स्थिति है. अभी भी सैकड़ों छात्र पोलैंड की सीमा पर इंतजार कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि भारतीयों के अलावा दूसरे देशों के भी कई यूक्रेन से अपनी जान बचाकर बाहर निकल रहे हैं. यहां तक कि यूक्रेन के लोग भी जान बचाकर पोलैंड पहुंच रहे हैं. इसलिए वहां लोगों का जमावड़ा लगा हुआ है.

सांसद जयंत सिन्हा ने दिया आश्वासन: दानिश ने बताया कि हजारीबाग सांसद जयंत सिन्हा ने यूक्रेन में फंसे छात्रों से संपर्क कर उन्हें आश्वस्त किया कि उन्हें सुरक्षित स्वेदेश लाया जाएगा. इस आश्वासन के बाद छात्रों को विश्वास हुआ कि स्वदेश लौटने का रास्ता अब खुल जाएगा. दानिश का कहना है युद्ध के पहले ही वे भारत आना चाहते थे लेकिन यूनिवर्सिटी से उन्हें सही सूचना नहीं दी गई और ना ही दूतावास की ओर से लोगों को स्वदेश लौटने को कहा गया. अगर यह काम पहले हो जाता तो यह आपाधापी की स्थिति नहीं रहती.

यूक्रेन क्यों जाते हैं भारतीय छात्र: दरअसल, भारत में मेडिकल की सीट बेहद कम है और यहां पर पढ़ाई भी महंगी है. ऐसे में छात्र मेडिकल की शिक्षा लेना चुनौती भरा रहता है. अगर प्राइवेट मेडिकल कॉलेज में जाकर पढ़ाई की जाए तो करोड़ों रुपये डोनेशन के नाम पर ले लिए जाते हैं. मेडिकल की पढ़ाई का खर्च भी बढ़ जाता है, लेकिन यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई करना, रहना और खाना में महज 35 लाख रुपये खर्च होता है. ऐसे में अगर औसतन देखा जाए तो महज एक चौथाई हिस्से में यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई की जा सकती है. यही कारण है कि भारतीय छात्र जिन्हें मेडिकल कॉलेज में प्रवेश नहीं मिल पाता है, वह यूक्रेन में जाकर पढ़ाई करते हैं.



यूक्रेन से लौटने वाले छात्रों को भविष्य की चिंता: स्वदेश लौटने के बाद छात्रों को इस बात की चिंता है कि अगर वहां स्थिति नहीं सुधरती है तो हम लोगों की पढ़ाई पूरी कैसे होगी. दानिश ने यह भी बताया कि नियम है कि मेडिकल के छात्र एक यूनिवर्सिटी से दूसरे यूनिवर्सिटी अगर ट्रांसफर लेते हैं तो उन्हें मेडिकल प्रैक्टिस करने का लाइसेंस नहीं मिलेगा. ऐसे में हम लोगों का भविष्य भी अधर पर लटका हुआ है. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हम लोगों को उम्मीद है कि वह कुछ रास्ता निकालें जिससे हम लोगों की शिक्षा प्रभावित ना हो.

हजारीबाग: रूस-यूक्रेन युद्ध (Russia Ukraine War) के बीच कई भारतीय फंस गए हैं. भारत सरकार यूक्रेन में फंसे भारतीयों को स्वदेश लाने के लिए ऑपरेशन गंगा चला रही है. इस ऑपरेशन और राज्य सरकार की मदद से यूक्रेन में फंसे दानिश भी हजारीबाग अपने घर लौट पाए हैं. उन्होंने वहां की दर्दनाक मंजर को ईटीवी भारत के साथ साझा करते हुए कहा कि स्थिति बेहद खराब हो चुकी है. उन्होंने बताया कि यूक्रेन में उन्हें किसी भी तरह की मदद नहीं मिल रही थी और ना ही वहां दूतावास सही तरीके से काम कर रहा है. लेकिन पोलैंड आने के बाद एंबेसी का भरपूर सहयोग मिला.

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यूक्रेन की सीमा से बाहर निकलना चुनौती: दानिश का कहना है कि यूक्रेन से पोलैंड सीमा तक पहुंचना चुनौती से कम नहीं है. ट्रेन सेवा पूर्ण रूप से बाधित है. कुछ निजी टैक्सी चल रहीं हैं. लेकिन वह भी छात्रों से मनमाना पैसा वसूल रहे हैं. लगभग 90 किलोमीटर दूर से सीमा तक जाने के लिए टैक्सी ने 4 हजार रुपए की जगह 30 हजार लिए. उसके बाद भी उन्हें रास्ते में ही टैक्सी छोड़ना पड़ा. क्योंकि ट्रैफिक की स्थिति बेहद खराब थी. 45 किलोमीटर टैक्सी और फिर 45 किलोमीटर लगातार पैदल चलना पड़ा. इस दौरान न खाने का इंतजाम था और ना ही वहीं रुकने का. लेकिन फिर भी वहां से लोग किसी तरह जान बचाकर सीमा तक पहुंच पाए हैं. सीमा तक पहुंचने के पहले इमीग्रेशन चेक के लिए भी घंटों इंतजार करना पड़ा. इमीग्रेशन चेक होने के बाद वे लोग पोलैंड सीमा के अंदर पहुंचे और वहां भी घंटों इंतजार करने के बाद उन्हें फ्लाइट में बैठने का मौका मिला. जिसके बाद उन्हें यह विश्वास हुआ कि अब वे सुरक्षित स्वदेश पहुंच सकते हैं.

यूक्रेन से आए छात्र से बात करते संवाददाता गौरव प्रकाश

जान बचाकर भार रहे लोग: दानिश ने बताया कि पोलैंड सीमा पहुंचने के बाद एंबेसी ने उन्हें काफी सुविधाएं दी, हालांकि वहां भी आपाधापी की स्थिति है. अभी भी सैकड़ों छात्र पोलैंड की सीमा पर इंतजार कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि भारतीयों के अलावा दूसरे देशों के भी कई यूक्रेन से अपनी जान बचाकर बाहर निकल रहे हैं. यहां तक कि यूक्रेन के लोग भी जान बचाकर पोलैंड पहुंच रहे हैं. इसलिए वहां लोगों का जमावड़ा लगा हुआ है.

सांसद जयंत सिन्हा ने दिया आश्वासन: दानिश ने बताया कि हजारीबाग सांसद जयंत सिन्हा ने यूक्रेन में फंसे छात्रों से संपर्क कर उन्हें आश्वस्त किया कि उन्हें सुरक्षित स्वेदेश लाया जाएगा. इस आश्वासन के बाद छात्रों को विश्वास हुआ कि स्वदेश लौटने का रास्ता अब खुल जाएगा. दानिश का कहना है युद्ध के पहले ही वे भारत आना चाहते थे लेकिन यूनिवर्सिटी से उन्हें सही सूचना नहीं दी गई और ना ही दूतावास की ओर से लोगों को स्वदेश लौटने को कहा गया. अगर यह काम पहले हो जाता तो यह आपाधापी की स्थिति नहीं रहती.

यूक्रेन क्यों जाते हैं भारतीय छात्र: दरअसल, भारत में मेडिकल की सीट बेहद कम है और यहां पर पढ़ाई भी महंगी है. ऐसे में छात्र मेडिकल की शिक्षा लेना चुनौती भरा रहता है. अगर प्राइवेट मेडिकल कॉलेज में जाकर पढ़ाई की जाए तो करोड़ों रुपये डोनेशन के नाम पर ले लिए जाते हैं. मेडिकल की पढ़ाई का खर्च भी बढ़ जाता है, लेकिन यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई करना, रहना और खाना में महज 35 लाख रुपये खर्च होता है. ऐसे में अगर औसतन देखा जाए तो महज एक चौथाई हिस्से में यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई की जा सकती है. यही कारण है कि भारतीय छात्र जिन्हें मेडिकल कॉलेज में प्रवेश नहीं मिल पाता है, वह यूक्रेन में जाकर पढ़ाई करते हैं.



यूक्रेन से लौटने वाले छात्रों को भविष्य की चिंता: स्वदेश लौटने के बाद छात्रों को इस बात की चिंता है कि अगर वहां स्थिति नहीं सुधरती है तो हम लोगों की पढ़ाई पूरी कैसे होगी. दानिश ने यह भी बताया कि नियम है कि मेडिकल के छात्र एक यूनिवर्सिटी से दूसरे यूनिवर्सिटी अगर ट्रांसफर लेते हैं तो उन्हें मेडिकल प्रैक्टिस करने का लाइसेंस नहीं मिलेगा. ऐसे में हम लोगों का भविष्य भी अधर पर लटका हुआ है. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हम लोगों को उम्मीद है कि वह कुछ रास्ता निकालें जिससे हम लोगों की शिक्षा प्रभावित ना हो.

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