हजारीबाग: अब बेटियां किसी से कम नहीं हैं. शायद ही ऐसा कोई क्षेत्र है, जहां बेटियों ने अपना दमखम नहीं दिखाया है. सीमा सुरक्षा से लेकर विज्ञान और कला सहित लगभग सभी क्षेत्रों में बेटियों का जलवा है. सभी क्षेत्रों में बेटियों ने एक से बढ़कर एक उपलब्धियां हासिल की हैं. इसके बावजूद अभी भी समाज में बेटियों को बोझ समझा जाता है. ऐसे में कई लोग हैं, जो बेटियों को दुनिया में आने के पहले ही उसे खत्म कर देना चाहते हैं, जो गैर कानूनी है. कई ऐसे चिकित्सक हैं, जो इस अपराध में लोगों की मदद करते हैं. कानून की नजर में वे गुनहगार हैं.
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कन्या भ्रूण हत्या रोकना समाज के हर व्यक्ति की है जिम्मेदारी
लिंग निर्धारण परीक्षण और कन्या भ्रूण हत्या को रोकना समाज के हर एक व्यक्ति की जिम्मेदारी है. वर्तमान समय में लिंगानुपात में बेटियों की कमी समाज के लिए चिंता का विषय भी है. गर्भ में पल रहे भ्रूण की लिंग जांच करवाने के बाद लड़की को पैदा होने से रोकना भ्रूण हत्या है, जो एक अपराध है. अल्ट्रासाउंड या सोनोग्राफी जैसे तकनीकों का इस्तेमाल भ्रूण के स्वास्थ्य जांच के लिए किया जाता है, लेकिन इसी तकनीक से कई लोग लिंग की भी जांच करवाते हैं. ऐसा करना 'गर्भधारण पूर्व और प्रसूति पूर्व तकनीक लिंग चयन प्रतिषेध अधिनियम 1994' के तहत दंडनीय अपराध है. इसके बावजूद कई ऐसे स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने वाली संस्था कानून का दुरुपयोग कर लिंग जांच करते हैं.
भ्रूण हत्या के प्रति जागरूकता फैलाने की जरुरत
हजारीबाग के एक निजी अस्पताल की प्रबंधक जया सिंह कहती हैं कि समाज में बेटियों को आखिर क्यों अभिशाप माना जाता है. यह समझ के परे है. शायद ही ऐसा कोई क्षेत्र है, जहां महिलाएं आज भी काम नहीं कर रही हैं. वे बताती हैं कि उनके अस्पताल में लिंग जांच करना सख्त मना है और महिला अधिकारी होने के नाते इस बात का वह घोर विरोधी भी करती हैं. वहीं, समाज कल्याण पदाधिकारी शिप्रा सिन्हा बताती हैं कि वे लोग समाज के लोगों को जागरूक करने के लिए कई प्रयास करते हैं. बेटियां जब जन्म लेती हैं तो उनके माता-पिता को सम्मानित किया जाता है. बेटियों को प्रोत्साहित करने के लिए उन्हें उपहार भी दिया जाता है. समय-समय पर समाज में कई तरह के कार्यक्रम भी चलाए जाते हैं. कुछ कार्यक्रम बेटियों के उत्साहवर्धन के लिए होता है तो कुछ कार्यक्रम भ्रूण हत्या से लोगों को जागरूक करने के लिए होता है.
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लिंगानुपात में कम गिरावट
समाज कल्याण पदाधिकारी कहते हैं कि भ्रूण जांच एक अपराध है और यह संदेश वे लोग लोगों तक पहुंचाते भी हैं. उनका यह भी कहना है कि अगर किसी क्लीनिक में भ्रूण जांच होती है और अगर उन्हें इसकी जानकारी मिलती है तो संबंधित पदाधिकारी को इसकी जानकारी भी देते हैं, ताकि उस पर कानूनी कार्रवाई हो सके. 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' एक बड़ा कार्यक्रम सरकार चला रही है, जिसका उद्देश्य बेटियों को प्रोत्साहित करना है. 2011 की जनगणना के अनुसार, जिले की कुल आबादी 17 लाख 34 हजार 495 है, जिसमें पुरुषों की संख्या 8 लाख 90 हजार 881 है और महिलाओं की जनसंख्या 8 लाख 43 हजार 614 है. अगर लिंगानुपात देखा जाए तो एक हजार पुरुषों पर सिर्फ 946 महिलाएं थी. वहीं, 2021 की अनुमानित जनसंख्या 21 लाख 08 हजार 452 है, जिसमें पुरुषों की अनुमानित जनसंख्या 10 लाख 82 हजार 955 है और महिलाओं की अनुमानित जनसंख्या 10 लाख 25 हजार 497 है. अगर लिंगानुपात देखा जाए तो प्रति 1 हजार पुरुषों पर 962 महिलाएं हैं.
2018 में हो चुकी है कार्रवाई
हजारीबाग शहर में अवैध तरीके से संचालित नर्सिंग होम के विरुद्ध हजारीबाग जिला प्रशासन ने कार्रवाई की थी, जिसमें दो अल्ट्रा साउंड और तीन नर्सिंग होम को सील कर दिया गया था. कर्रवाई तत्कालीन डीडीसी विजया जाधव के नेतृत्व में की गई थी. यह अल्ट्रासाउंड सेंटर हजारीबाग के नवाबगंज में चलाया जा रहा था. अप्रैल 2018 के तत्कालीन एसडीओ आदित्य रंजन के नेतृत्व में हजारीबाग के विभिन्न अल्ट्रासाउंड में छापेमारी की गई थी, जहां अनियमितता पाया गया था. इसे लेकर 4 अल्ट्रासाउंड सेंटर और एक नर्सिंग होम को सील किया गया था.
कार्रवाई का है प्रावधान
लिंग जांच में 3 साल तक की सजा और 10 हजार तक का जुर्माना हो सकता है. दोबारा अपराध करने पर 5 साल की सजा और 50 हजार तक का जुर्माना है. कोई भी डॉक्टर या तकनीकी सहायक जो ऐसी गैर कानूनी जांच करती है, उसे 3 साल तक की जेल और 10 हजार तक का जुर्माना हो सकता है. लिंग जांच या लिंग चयन के लिए किसी भी प्रकार का विज्ञापन देना दंडनीय है. ऐसा करने पर 3 साल तक की सजा और 10 हजार तक का जुर्माना हो सकता है. इसके बावजूद हजारीबाग के कई ग्रामीण इलाकों में अनाधिकृत रूप से नर्सिंग होम चलाए जा रहे हैं और वहां भ्रूण जांच की जाती है. ऐसे में हजारीबाग के चौपारण थाना क्षेत्र में कार्रवाई भी की गई और अल्ट्रासाउंड सेंटर को बंद भी कर दिया गया.
भ्रूण जांच है कानूनी अपराध
हजारीबाग सदर अस्पताल के सिविल सर्जन बताते हैं कि जिले में 38 अल्ट्रासाउंड सेंटर कानूनी रूप से चलाए जा रहे हैं. इसके अलावा अगर कहीं भी सेंटर चलाए जाने की सूचना मिलती है तो वे कार्रवाई करते हैं. इन सेंटरों पर विशेष रूप से नजर रखी जाती है. किसी भी अल्ट्रासाउंड सेंटर में अगर भ्रूण जांच होती है तो वे उस पर कार्रवाई भी करते हैं. विकसित समाज में बेटा और बेटियों को समान दर्जा दिया जाता है. अगर हम चाहते हैं कि हमारा समाज आगे बढ़े. देश प्रगति करें तो बेटियों को उचित जगह देना होगा. भ्रूण जांच एक कानूनी अपराध है, इसकी सच्चाई हर एक व्यक्ति को समझना चाहिए.