हजारीबाग: पूरे झारखंड का एकमात्र नरसिंह मंदिर हजारीबाग में स्थित है. बड़कागांव रोड में स्थित इस नरसिंह मंदिर में कार्तिक पूर्णमासी के दिन नरसिंह मेला लगता है, जिसे स्थानीय लोग केतारी मेला भी कहते हैं. यह मंदिर सिर्फ हजारीबाग में ही नहीं बल्कि, पूरे झारखंड में प्रसिद्ध है. यहां राज्य के कोने-कोने से लोग पहुंचते हैं और अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए पूजा करते हैं. यहां एकमात्र नरसिंह भगवान का शांत स्वरूप मूर्ति स्थापित है.
कार्तिक पूर्णिमा का हिंदू-धर्म में विशेष महत्व है. हजारीबाग में कार्तिक पूर्णिमा के रोज नरसिंह मंदिर में विशेष पूजा अर्चना की जाती है. यहां कार्तिक पूर्णिमा के दिन मेला भी लगता है. इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यह काफी जागृत है. यहां भक्तों की मनोकामना पूरी होती है. इस कारण सालों भर यहां भक्तों का आना जाना लगा रहता है. इस मंदिर की खासियत यह है कि पूजा करने के दौरान अगर पुष्प मूर्ति से नीचे गिरा तो आपकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होगी. यहां के पुजारी बताते हैं कि इस मंदिर में इच्छा पूर्ति करने वाले देवता विराजमान हैं. इस कारण इसका विशेष महत्व है.
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भूतल में शिवलिंग विराजमान
इस नरसिंह स्थान मंदिर की स्थापना 1632 ईस्वी में पंडित दामोदर मिश्र ने की थी. तब से यहां भगवान नरसिंह के दर्शन के लिए पूजा का अलग ही महत्व रहा है. ऐसी मान्यता है कि यहां जलाया गया अखंड दीप और मंदिर की परिक्रमा कभी व्यर्थ नहीं जाती है. दर्शन पूजा के साथ-साथ मनोवांछित फलों की कामना को लेकर सालों भर श्रद्धालुओं का आना जाना रहता है. मंदिर के गर्भ गृह में भगवान श्री नरसिंह की 3 फीट की ऊंची ग्रेनाइट पत्थर से बनी प्रतिमा स्थापित है. सामने भूतल में शिवलिंग विराजमान हैं. एक गर्भ गृह में विष्णु और शिव के विराजमान होने का अद्भुत संजोग श्रद्धालुओं को आकर्षित भी करता है.
कोरोना से मुक्ति के लिए विशेष पूजा अर्चना
कार्तिक पूर्णिमा के दिन यहां केतारी मेला लगता है. जहां ईख के व्यवसायी पहुंचते हैं. यहां जो भी व्यक्ति पूजा करने आते है तो यह परंपरा रही है कि अपने साथ एक ईख भी घर ले जाता है, लेकिन इस वर्ष कोरोना के कारण मेला में आकर्षण कम रहा. कम ही भक्त यहां पूजा करने पहुंचे. मेला में इस साल कोरोना से मुक्ति के लिए भी विशेष पूजा अर्चना की गई.