हजारीबाग: बड़कागांव प्रखंड की पहचान हजारीबाग के प्रमुख सब्जी और अनाज उत्पादक प्रखंड के रूप में होती है. यही नहीं यह प्रखंड गुड़ की खुशबू के लिए भी दूर-दूर तक जाना जाता है. यहां के गुड़ देश के कई हिस्सों तक पहुंचते हैं. यहां के गुड़ की खुशबू और बेहतरीन स्वाद के कारण दूर-दूर से लोग और व्यापारी गुड़ खरीदने यहां पहुंचते हैं.
अक्टूबर-नवंबर में शुरू होती है गुड़ बनाने की प्रक्रिया: हजारीबाग का बड़कागांव अपनी मिठास के लिए भी दूर तक पहचान बनाए हुए हैं. यहां के किसान ईख की खेती करते हैं. फिर अक्टूबर-नवंबर महीने से गुड़ बनाने की प्रक्रिया शुरू होती है. खासकर मकर संक्रांति के वक्त यहां के गुड़ की मांग कई राज्यों तक होती है. यही कारण है कि व्यापारी यहां खिंचे चले आते हैं. गुड़ बनाने वाले अरुण बताते हैं कि यह एक बड़ी प्रक्रिया है. जनवरी महीने में ईख की बुआई होती है. नवंबर महीने से गुड़ बनाने की प्रक्रिया शुरू होती है. किसान भी बड़े ही उत्साह के साथ गुड़ बनाते हैं.
125-150 हेक्टेयर में गन्ने की खेती: जानकारी के अनुसार बड़कागांव क्षेत्र में एक अनुमान के मुताबित 125-150 हेक्टेयर सालाना गन्ने की उपज होती है, इससे गुड़ तैयार कर बाजार में बेचा जाता है. हाल के दिनों मे कोयला कंपनी बड़कागांव इलाके में जमीन अधिग्रहण कर रही है. इस कारण व्यवसाय थोड़ा अवश्य प्रभावित हुआ है. गुड़ की खेती करने वाली महिला बताती हैं कि इससे पूरे परिवार का भरण पोषण होता है. यह लघु व्यापार का रूप भी ले चुका है. वह खुद के बारे में बताती हैं कि तीन बहन की शादी पढ़ाई-लिखाई घर बनाना सभी गुड़ के व्यवसाय से ही संभव हुआ है. इस कारण इस व्यवसाय को जीवित रखना भी किसानों के लिए बेहद जरूरी है.
गुड़ ने दी पहचान: किसान भी कहते हैं कि गोंदलपुरा ने एनटीपीसी कंपनी को पहचान दी है, लेकिन इसके पहले गोंदलपुरा गुड़ के लिए पूरे राज्य भर में जाना जाता था. अभी भी इस क्षेत्र के गुड़ की मांग सबसे अधिक है. यहां दो तरह का गुड़ बनाए जाते हैं. एक स्पेशल गुड़ होता है जिसमें लौंग, इलायची, अदरक, काली मिर्च, तेजपत्ता देकर अच्छे से तैयार किया जाता है. दूसरा प्लेन गुड़ होता है. दोनों का स्वाद अलग-अलग है. मांग के अनुसार गुड़ बनाया जाता है. खासकर के मकर संक्रांति के समय पूरे राज्य भर से व्यापारी गुड़ लेने के लिए आते हैं. इस मकर संक्रांति को देखते हुए दो महीने पहले से ही गुड़ बनाने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है. गुड़ बनाकर स्टॉक भी किया जाता है ताकि व्यापारियों को उपलब्ध कराया जा सके.
किसान भी कहते हैं कि बाजार में जाने पर ग्राहक बड़कागांव का गुड़ जरूर पूछते हैं. अगर उन्हें बड़कागांव का गुड़ मिल गया तो वह दूसरा गुड़ नहीं खरीदते हैं. यही यहां की असली पहचान है. जरूरत है ऐसे व्यवसाय को जीवित रखने की.
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