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झारखंड की टैबलेट दीदी! जानिए, कौन हैं ये और कैसे लिख रहीं आत्मनिर्भरता की नई इबारत

झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी की पहल पर स्वयं सहायता समूह से जुड़कर महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही हैं. आज हजारीबाग में 10वीं पास महिलाएं स्वयं सहायता समूह की ऑडिट ऑफिसर बन गयी हैं. वो समूह की लाखों का लेनदेन का हिसाब रख रही हैं. आज ये महिलाएं झारखंड की टैबलेट दीदी के नाम से जानी और पहचानी जाती हैं.

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झारखंड की टैबलेट दीदी
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Published : Apr 16, 2022, 6:08 PM IST

Updated : Apr 16, 2022, 9:03 PM IST

हजारीबागः रोजगार के अवसर पैदा करने हो या फिर लोगों के सामने एक मिसाल बनना हो. झारखंड की महिलाएं मील का पत्थर साबित हो रही हैं. जिनके नक्शेकदम पर अब देश के दूसरे राज्य भी हैं. पिछले कुछ वर्षों में ग्रामीण झारखंड की जो आबोहवा बदली-बदली नजर आ रही है, उसका श्रेय यहां की महिलाओं को जाता है. ये सुदूर और दुर्गम गांव की वो महिलाएं हैं जिन्होंने गरीबी से लड़कर, घर की चौखट लांघकर, ना सिर्फ खुद को बदला बल्कि समाज को भी नई दिशा दे रही हैं. मैट्रिक पास महिलाएं आज करोड़ों रुपया का हिसाब किताब करती है. कहा जाए तो ये महिलाएं गांव की सीए (CA) हैं. जिनके हाथों में ना जाने कितने स्वयं सहायता समूह की महिलाएं जुड़ी हैं.

इसे भी पढ़ें- चाक ने दी महिलाओं के जीवनस्तर को गति! तीन पीढ़ी मिलकर बना रहा मिट्टी का बर्तन


गोद में बच्चा और हाथों में टैबलेट, ये नजारा झारखंड के हजारीबाग के दारू गांव की है. झारखंड के सुदूर गांवों की ये महिलाएं अपने घर-परिवार बच्चों का ध्यान रखने के साथ-साथ अपने घर को चलाने के लिए खूब मेहनत करती है. हाथ में टैबलेट लिए ये महिलाएं, झारखंड की टैबलेट दीदी हैं. जो आज करोड़ों रुपया का लेखा जोखा अपने टैब और रजिस्टर के जरिए करती हैं. ये महिलाएं झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी के दारू गांव की स्वयं सहायता समूह के लेन-देन और बैठक के आंकड़ें ये टैबलेट के जरिए अपलोड करती हैं. जिससे रियल टाइम में ये आंकड़े झारखंड सरकार और भारत सरकार के एमआईएस (MIS) में अपडेट हो जाता है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

सुनीता देवी बताती हैं कि 8 से 10 समूह का एक विओ बनता है. सभी समूह के रजिस्टर का वो लोग ऑडिट करते हैं. इसके लिए उन्हें प्रशिक्षण मिला है, इसके लिए उन्होंने कोई पढ़ाई नहीं की है. लेकिन वो लाखों लाख रुपया का ट्रांजैक्शन अपने रजिस्टर के जरिए करती हैं और फिर अपलोड करती हैं. गरीबी को मात देकर बाहर निकली ये महिलाएं, आज टैबलेट दीदी के रुप में काम करके अपने घर को चला ही रही हैं. साथ ही अपने इलाके से गरीबी को दूर करने के मिशन को भी जमीन पर उतार रही है.

10th pass women become audit officer of self help group in Hazaribag
टैब में पैसों का हिसाब रखती महिलाएं

एक दूसरी महिला बताती हैं कि वो महिला समूह का रजिस्टर का लेखा-जोखा देखते हैं. ग्राम संगठन के जरिए लेखा-जोखा उनके पास पहुंचता है, वो पैसों का हिसाब इसमें करते हैं. समूह में प्रत्येक दीदी 10 रुपये की बचत करती हैं. गांव में कई छोटे-छोटे ऐसे समूह हैं जो ग्राम संगठन तक पैसा जाता है. ग्राम संगठन में पैसा जमा होने के बाद सरकार से भी 15 हजार रुपये की उनको मदद राशि मिलता है. ये पैसा ऋण के रूप मे दिया जाता है.

इसे भी पढ़ें- उपेक्षित आदिम जनजाति अब हो रहे शिक्षित, स्वयं सहायता समूह की महिलाएं जगा रहीं शिक्षा की अलख

समूह की ओर से ऋण देने के लिए भी बैठक होता है. जो महिला लोन लेती है उसे ब्याज समेत पैसा वापस करना पड़ता है. सारा लेनदन पैसा जमा करना ब्याज में पैसा देना इन सभी चीजों का हिसाब करती हैं. महत्वपूर्ण बात यह है कि आज तक एक रुपया का भी गड़बड़ी उनके रजिस्टर में नहीं हुआ है. मेनका कुमारी जो वीओए हैं, उन्होंने उनका कहना है कि लगभग 23 समूह का वो लेन-देन देखती हैं. बैंक लिंकेज से आया पैसा के अलावा मदद राशि का भी लेखा-जोखा होता है.

10th pass women become audit officer of self help group in Hazaribag
रजिस्टर मैनटेन करती महिला

वर्तमान समय में हम लोग 7 से 8 लाख रुपया तक का हिसाब किए हैं. सभी का ऑडिट कर एक रजिस्टर तैयार किया जाता है. हम लोग ऑडिट रिपोर्ट पदाधिकारियों तक भेजते हैं. महत्वपूर्ण बात यह है कि बैंक से भी अगर महिलाओं को लोन मिलता है तो वो ससमय लोन वापस करती हैं. आज तक शायद ही कोई ऐसी महिला हो जो बैंक डिफाल्टर हुई हो. ऐसे में पूरा लेखा-जखा उनके द्वारा तैयार किया जाता है यह एक तरह का ऑडिट है.

गांव की एक दर्जन से अधिक महिलाएं ऑडिट कर रही हैं. जिन्हें रिंकी कुमारी ने प्रशिक्षण दिया है. रिंकी कुमारी का कहना है कि 500 से अधिक महिलाओं को प्रशिक्षित किया गया है. जो पैसा का लेन देन लेखा-जोखा समेत अन्य काम करती हैं. इनके पास 14 रजिस्टर और एक टैब होता है जिसके जरिए पूरा काम होता है. अगर पूछा जाए कि आप के अंतर्गत कितनी महिलाओं ने और कितने पैसों का ऑडिट किया है तो मुझे बताने में तनिक भी संकोच नहीं होगा कि हम लोग करोड़ों रुपया का ऑडिट किया हैं. जिसमें एक रुपए की का भी गड़बड़ी इस ऑडिट में नहीं हुआ है.

हजारीबागः रोजगार के अवसर पैदा करने हो या फिर लोगों के सामने एक मिसाल बनना हो. झारखंड की महिलाएं मील का पत्थर साबित हो रही हैं. जिनके नक्शेकदम पर अब देश के दूसरे राज्य भी हैं. पिछले कुछ वर्षों में ग्रामीण झारखंड की जो आबोहवा बदली-बदली नजर आ रही है, उसका श्रेय यहां की महिलाओं को जाता है. ये सुदूर और दुर्गम गांव की वो महिलाएं हैं जिन्होंने गरीबी से लड़कर, घर की चौखट लांघकर, ना सिर्फ खुद को बदला बल्कि समाज को भी नई दिशा दे रही हैं. मैट्रिक पास महिलाएं आज करोड़ों रुपया का हिसाब किताब करती है. कहा जाए तो ये महिलाएं गांव की सीए (CA) हैं. जिनके हाथों में ना जाने कितने स्वयं सहायता समूह की महिलाएं जुड़ी हैं.

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गोद में बच्चा और हाथों में टैबलेट, ये नजारा झारखंड के हजारीबाग के दारू गांव की है. झारखंड के सुदूर गांवों की ये महिलाएं अपने घर-परिवार बच्चों का ध्यान रखने के साथ-साथ अपने घर को चलाने के लिए खूब मेहनत करती है. हाथ में टैबलेट लिए ये महिलाएं, झारखंड की टैबलेट दीदी हैं. जो आज करोड़ों रुपया का लेखा जोखा अपने टैब और रजिस्टर के जरिए करती हैं. ये महिलाएं झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी के दारू गांव की स्वयं सहायता समूह के लेन-देन और बैठक के आंकड़ें ये टैबलेट के जरिए अपलोड करती हैं. जिससे रियल टाइम में ये आंकड़े झारखंड सरकार और भारत सरकार के एमआईएस (MIS) में अपडेट हो जाता है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

सुनीता देवी बताती हैं कि 8 से 10 समूह का एक विओ बनता है. सभी समूह के रजिस्टर का वो लोग ऑडिट करते हैं. इसके लिए उन्हें प्रशिक्षण मिला है, इसके लिए उन्होंने कोई पढ़ाई नहीं की है. लेकिन वो लाखों लाख रुपया का ट्रांजैक्शन अपने रजिस्टर के जरिए करती हैं और फिर अपलोड करती हैं. गरीबी को मात देकर बाहर निकली ये महिलाएं, आज टैबलेट दीदी के रुप में काम करके अपने घर को चला ही रही हैं. साथ ही अपने इलाके से गरीबी को दूर करने के मिशन को भी जमीन पर उतार रही है.

10th pass women become audit officer of self help group in Hazaribag
टैब में पैसों का हिसाब रखती महिलाएं

एक दूसरी महिला बताती हैं कि वो महिला समूह का रजिस्टर का लेखा-जोखा देखते हैं. ग्राम संगठन के जरिए लेखा-जोखा उनके पास पहुंचता है, वो पैसों का हिसाब इसमें करते हैं. समूह में प्रत्येक दीदी 10 रुपये की बचत करती हैं. गांव में कई छोटे-छोटे ऐसे समूह हैं जो ग्राम संगठन तक पैसा जाता है. ग्राम संगठन में पैसा जमा होने के बाद सरकार से भी 15 हजार रुपये की उनको मदद राशि मिलता है. ये पैसा ऋण के रूप मे दिया जाता है.

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समूह की ओर से ऋण देने के लिए भी बैठक होता है. जो महिला लोन लेती है उसे ब्याज समेत पैसा वापस करना पड़ता है. सारा लेनदन पैसा जमा करना ब्याज में पैसा देना इन सभी चीजों का हिसाब करती हैं. महत्वपूर्ण बात यह है कि आज तक एक रुपया का भी गड़बड़ी उनके रजिस्टर में नहीं हुआ है. मेनका कुमारी जो वीओए हैं, उन्होंने उनका कहना है कि लगभग 23 समूह का वो लेन-देन देखती हैं. बैंक लिंकेज से आया पैसा के अलावा मदद राशि का भी लेखा-जोखा होता है.

10th pass women become audit officer of self help group in Hazaribag
रजिस्टर मैनटेन करती महिला

वर्तमान समय में हम लोग 7 से 8 लाख रुपया तक का हिसाब किए हैं. सभी का ऑडिट कर एक रजिस्टर तैयार किया जाता है. हम लोग ऑडिट रिपोर्ट पदाधिकारियों तक भेजते हैं. महत्वपूर्ण बात यह है कि बैंक से भी अगर महिलाओं को लोन मिलता है तो वो ससमय लोन वापस करती हैं. आज तक शायद ही कोई ऐसी महिला हो जो बैंक डिफाल्टर हुई हो. ऐसे में पूरा लेखा-जखा उनके द्वारा तैयार किया जाता है यह एक तरह का ऑडिट है.

गांव की एक दर्जन से अधिक महिलाएं ऑडिट कर रही हैं. जिन्हें रिंकी कुमारी ने प्रशिक्षण दिया है. रिंकी कुमारी का कहना है कि 500 से अधिक महिलाओं को प्रशिक्षित किया गया है. जो पैसा का लेन देन लेखा-जोखा समेत अन्य काम करती हैं. इनके पास 14 रजिस्टर और एक टैब होता है जिसके जरिए पूरा काम होता है. अगर पूछा जाए कि आप के अंतर्गत कितनी महिलाओं ने और कितने पैसों का ऑडिट किया है तो मुझे बताने में तनिक भी संकोच नहीं होगा कि हम लोग करोड़ों रुपया का ऑडिट किया हैं. जिसमें एक रुपए की का भी गड़बड़ी इस ऑडिट में नहीं हुआ है.

Last Updated : Apr 16, 2022, 9:03 PM IST
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