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झारखंड में नोटा का खेल, 2014 में 7 विधानसभा सीटों पर NOTA ने बदला राजनीतिक समीकरण, पढ़ें ये स्पेशल रिपोर्ट

2014 के झारखंड विधानसभा चुनाव के दौरान भी प्रत्याशियों के प्रति नाराजगी व्यक्त करने वाले वोटरों की संख्या कम नहीं थी. इस चुनाव में कुल 2 लाख 35 हजार 39 वोटरों ने नोटा में वोट डाले थे.

झारखंड में नोटा का खेल
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Published : Oct 15, 2019, 8:45 PM IST

रांची: किसी भी चुनाव में हर एक वोट हार जीत के लिए मायने रखता है. हालांकि कुछ ऐसे भी वोटर होते हैं जो चुनाव में खड़े प्रत्याशियों से इत्तेफाक नहीं रखते और नोटा में अपना वोट डालकर गुस्से का इजहार करते हैं. 2014 के झारखंड विधानसभा चुनाव के दौरान भी प्रत्याशियों के प्रति नाराजगी व्यक्त करने वाले वोटरों की संख्या कम नहीं थी. इस चुनाव में कुल 2 लाख 35 हजार 39 वोटरों ने नोटा में वोट डाले थे. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि 7 सीटें ऐसी थीं, जहां नोटा में वोट नहीं पड़े होते हार-जीत का आंकड़ा कुछ और ही होता.

वीडियो में देखें ये स्पेशल स्टोरी

नोटा में नहीं जाते वोट तो 7 सीटों का बदल जाता परिणाम
इस समीकरण को समझने के लिए वैसी सीटों पर नजर डालनी होगी जहां हार-जीत के अंतर से ज्यादा वोट नोटा में गए थे. 2014 में ऐसी 7 सीटें थी, जहां 1 हजार से कम वोट के अंतर से प्रत्याशियों की हार जीत हुई. इसमें पहला नाम आता है खूंटी जिले की तोरपा सीट का. तोरपा में झामुमो के पौलुस सुरीन की जीत महज 43 वोट के अंतर से हुई थी, जबकि तोरपा में 3 हजार 828 वोट नोटा में गए थे. अगर यह वोट वैध होते तो दूसरे स्थान पर रहने वाले भाजपा के कोचे मुंडा की भी जीत हो सकती थी या फिर पौलुस की जीत का अंतर बढ़ सकता था.

इसी तरह बड़कागांव की कांग्रेस प्रत्याशी निर्मला देवी की जीत सिर्फ 411 वोट के अंतर से हुई थी, उन्होंने आजसू के रौशन लाल चौधरी को हराया था. जबकि नोटा में पड़े वोट की संख्या 411 से ज्यादा थी. लोहरदगा में आजसू के कमल किशोर भगत ने महज 592 वोट के अंतर से कांग्रेस प्रत्याशी सुखदेव भगत को हराया था. जबकि यहां 1 हजार 868 वोट नोटा में गए थे. राजमहल सीट से भाजपा के अनंत कुमार ने महज 702 वोट के अंतर से झामुमो के मो.ताजुद्दीन को हराया था. राजमहल में नोटा में 2 हजार 268 वोट इधर से उधर हुए होते तो परिणाम कुछ और हो सकता था.

ये भी पढ़ें- झारखंड के कितने विधायक हैं दागदार, देखिए पूरी लिस्ट

बोरिया में भाजपा के ताला मरांडी ने झामुमो के लोबिन हेंब्रम को सिर्फ 712 वोट से के अंतर से हराया था जबकि यहां 3 हजार 182 वोट नोटा में गए थे. सरायकेला में झामुमो के चंपई सोरेन ने भाजपा के गणेश महली को 1 हजार 115 वोट से हराया था. यहां 3 हजार 893 वोट नोटा में गए थे. पांकी में कांग्रेस में विदेश सिंह की जीत 1 हजार 195 वोट से हुई, लेकिन नोटा में जीत के अंतर से ज्यादा वोट पड़े थे. इससे साफ है कि इन सीटों पर नोटा में वोटिंग नहीं हुई होती तो झारखंड की राजनीतिक तस्वीर कुछ और ही होती.

4 सीटें जहां सबसे कम वोट नोटा में पड़े

कहा जाता है कि नोटा में वोटिंग का मतलब प्रत्याशियों के प्रति नाराजगी को दर्शाता है. वहीं, वोटरों की गलती के कारण भी कुछ वोट नोटा में चले जाते हैं. 2014 के चुनाव के दौरान ऐसी 4 सीटें थीं जहां एक हजार से भी कम वोट नोटा में पड़े थे. इस मामले में पहला नाम आता है रांची विधानसभा सीट का. यहां सबसे कम 717 वोट नोटा में गए थे. जबकि ईचागढ़ में 835, गांडेय में 868 और भवनाथपुर में 997 नोटा में पड़े थे.

12 सीटें जहां 4 हजार से ज्यादा वोट नोटा में पड़े

12 सीटों पर हुए चुनाव के दौरान 4 हजार से ज्यादा वोट नोटा में पड़े. सबसे ज्यादा चतरा सीट के लिए हुए चुनाव में 7 हजार 724 वोट नोटा में पड़े. चतरा में भाजपा के जयप्रकाश सिंह भोक्ता ने जेवीएम के सत्यानंद भोक्ता को 20 हजार से ज्यादा वोट के अंतर से हराया. नोटा के मामले में सिमरिया दूसरे स्थान पर रहा. यहां 7 हजार 619 वोट नोटा में गए. यहां जेवीएम की टिकट पर गणेश गंझु ने भाजपा के सुजीत कुमार भारती को हराया था. हालांकि बाद में गणेश गंझु भाजपा में शामिल हो गए. चतरा और सिमरिया के बाद नोटा के मामले में देवघर तीसरे स्थान पर रहा. यहां 5 हजार 761 वोट नोटा में गए.

ये भी पढ़ें- विधानसभा चुनाव 2019: रांची विधानसभा क्षेत्र की जनता ने ईटीवी भारत को गिनाईं समस्याएं, कहा-नहीं ध्यान देते विधायक

नोटा के मामले में बरकट्ठा 5 हजार 140 वोट के साथ चौथे स्थान पर रहा. यहां जेवीएम की टिकट पर जानकी प्रसाद यादव ने भाजपा के अमित कुमार यादव को 8 हजार 207 वोट के अंतर से हराया था. इसके अलावा जगन्नाथपुर में 4 हजार 919, छतरपुर में 4 हजार 903, मनिका में 4 हजार 660, धनवार में 4 हजार 628, बिशुनपुर में 4 हजार 605, शिकारीपाड़ा में 4 हजार 418, लातेहार में 4 हजार 270, मांडर में 4 हजार 281, चंदनकियारी में 4 हजार 119 और तमाड़ में 4 हजार 34 वोट नोटा में पड़े.

रांची: किसी भी चुनाव में हर एक वोट हार जीत के लिए मायने रखता है. हालांकि कुछ ऐसे भी वोटर होते हैं जो चुनाव में खड़े प्रत्याशियों से इत्तेफाक नहीं रखते और नोटा में अपना वोट डालकर गुस्से का इजहार करते हैं. 2014 के झारखंड विधानसभा चुनाव के दौरान भी प्रत्याशियों के प्रति नाराजगी व्यक्त करने वाले वोटरों की संख्या कम नहीं थी. इस चुनाव में कुल 2 लाख 35 हजार 39 वोटरों ने नोटा में वोट डाले थे. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि 7 सीटें ऐसी थीं, जहां नोटा में वोट नहीं पड़े होते हार-जीत का आंकड़ा कुछ और ही होता.

वीडियो में देखें ये स्पेशल स्टोरी

नोटा में नहीं जाते वोट तो 7 सीटों का बदल जाता परिणाम
इस समीकरण को समझने के लिए वैसी सीटों पर नजर डालनी होगी जहां हार-जीत के अंतर से ज्यादा वोट नोटा में गए थे. 2014 में ऐसी 7 सीटें थी, जहां 1 हजार से कम वोट के अंतर से प्रत्याशियों की हार जीत हुई. इसमें पहला नाम आता है खूंटी जिले की तोरपा सीट का. तोरपा में झामुमो के पौलुस सुरीन की जीत महज 43 वोट के अंतर से हुई थी, जबकि तोरपा में 3 हजार 828 वोट नोटा में गए थे. अगर यह वोट वैध होते तो दूसरे स्थान पर रहने वाले भाजपा के कोचे मुंडा की भी जीत हो सकती थी या फिर पौलुस की जीत का अंतर बढ़ सकता था.

इसी तरह बड़कागांव की कांग्रेस प्रत्याशी निर्मला देवी की जीत सिर्फ 411 वोट के अंतर से हुई थी, उन्होंने आजसू के रौशन लाल चौधरी को हराया था. जबकि नोटा में पड़े वोट की संख्या 411 से ज्यादा थी. लोहरदगा में आजसू के कमल किशोर भगत ने महज 592 वोट के अंतर से कांग्रेस प्रत्याशी सुखदेव भगत को हराया था. जबकि यहां 1 हजार 868 वोट नोटा में गए थे. राजमहल सीट से भाजपा के अनंत कुमार ने महज 702 वोट के अंतर से झामुमो के मो.ताजुद्दीन को हराया था. राजमहल में नोटा में 2 हजार 268 वोट इधर से उधर हुए होते तो परिणाम कुछ और हो सकता था.

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बोरिया में भाजपा के ताला मरांडी ने झामुमो के लोबिन हेंब्रम को सिर्फ 712 वोट से के अंतर से हराया था जबकि यहां 3 हजार 182 वोट नोटा में गए थे. सरायकेला में झामुमो के चंपई सोरेन ने भाजपा के गणेश महली को 1 हजार 115 वोट से हराया था. यहां 3 हजार 893 वोट नोटा में गए थे. पांकी में कांग्रेस में विदेश सिंह की जीत 1 हजार 195 वोट से हुई, लेकिन नोटा में जीत के अंतर से ज्यादा वोट पड़े थे. इससे साफ है कि इन सीटों पर नोटा में वोटिंग नहीं हुई होती तो झारखंड की राजनीतिक तस्वीर कुछ और ही होती.

4 सीटें जहां सबसे कम वोट नोटा में पड़े

कहा जाता है कि नोटा में वोटिंग का मतलब प्रत्याशियों के प्रति नाराजगी को दर्शाता है. वहीं, वोटरों की गलती के कारण भी कुछ वोट नोटा में चले जाते हैं. 2014 के चुनाव के दौरान ऐसी 4 सीटें थीं जहां एक हजार से भी कम वोट नोटा में पड़े थे. इस मामले में पहला नाम आता है रांची विधानसभा सीट का. यहां सबसे कम 717 वोट नोटा में गए थे. जबकि ईचागढ़ में 835, गांडेय में 868 और भवनाथपुर में 997 नोटा में पड़े थे.

12 सीटें जहां 4 हजार से ज्यादा वोट नोटा में पड़े

12 सीटों पर हुए चुनाव के दौरान 4 हजार से ज्यादा वोट नोटा में पड़े. सबसे ज्यादा चतरा सीट के लिए हुए चुनाव में 7 हजार 724 वोट नोटा में पड़े. चतरा में भाजपा के जयप्रकाश सिंह भोक्ता ने जेवीएम के सत्यानंद भोक्ता को 20 हजार से ज्यादा वोट के अंतर से हराया. नोटा के मामले में सिमरिया दूसरे स्थान पर रहा. यहां 7 हजार 619 वोट नोटा में गए. यहां जेवीएम की टिकट पर गणेश गंझु ने भाजपा के सुजीत कुमार भारती को हराया था. हालांकि बाद में गणेश गंझु भाजपा में शामिल हो गए. चतरा और सिमरिया के बाद नोटा के मामले में देवघर तीसरे स्थान पर रहा. यहां 5 हजार 761 वोट नोटा में गए.

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नोटा के मामले में बरकट्ठा 5 हजार 140 वोट के साथ चौथे स्थान पर रहा. यहां जेवीएम की टिकट पर जानकी प्रसाद यादव ने भाजपा के अमित कुमार यादव को 8 हजार 207 वोट के अंतर से हराया था. इसके अलावा जगन्नाथपुर में 4 हजार 919, छतरपुर में 4 हजार 903, मनिका में 4 हजार 660, धनवार में 4 हजार 628, बिशुनपुर में 4 हजार 605, शिकारीपाड़ा में 4 हजार 418, लातेहार में 4 हजार 270, मांडर में 4 हजार 281, चंदनकियारी में 4 हजार 119 और तमाड़ में 4 हजार 34 वोट नोटा में पड़े.

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