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कारगिल विजय दिवस विशेष: गुमला के शहीद बिरसा उरांव की जिद ने जीती जंग

कारगिल विजय दिवस के अवसर पर गुमला के शहीद बिरसा उरांव का जिक्र नहीं हो ऐसा नहीं हो सकता है. झारखंड राज्य के गुमला जिला के सिसई प्रखंड क्षेत्र बिरसा उरांव ने कारगिल युद्ध में अपनी जान कुर्बान कर दी थी. बता दें कि बिरसा उरांव बचपन से ही सेना में जाना चाहते थे.

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शहीद जवान बिरसा उरांव
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Published : Jul 25, 2020, 4:23 PM IST

Updated : Jul 26, 2020, 5:01 AM IST

गुमला: झारखंड राज्य के गुमला जिला के सिसई प्रखंड क्षेत्र से आने वाले एक छोटे से गांव बर्री जतराटोली गांव में 12 अक्टूबर 1965 को बुदू उरांव के घर पर बिरसा उरांव नाम के एक लड़के ने जन्म लिया. जो भरी जवानी में देश की रक्षा के लिए 1999 में पाकिस्तान से कारगिल युद्ध लड़ते हुए शहीद हो गए. बिरसा उरांव फौज में रहते हुए अपने कर्तव्य निष्ठा के कारण ही साधारण सिपाही से आगे कदम बढ़ाते हुए भारतीय सेना में नायक फिर हवलदार के पद को प्राप्त किया था.

देखें स्पेशल स्टोरी
परिवारवालों को बताए बगैर पढ़ाई के दौरान ही हो गए थे फौज में शामिल परिवारवाले बताते हैं कि 1983 में मैट्रिक पास करने से पूर्व ही बिरसा को बिहार रेजीमेंट कैंट की ओर से चयनित कर प्रशिक्षण के लिए दानापुर ले जाया गया. जिसकी जानकारी न तो बिरसा के परिवारवालों को थी और न ही दोस्तों को. उनके माता-पिता बिरसा से मिलने लोहरदगा गए हुए थे. उस समय बिरसा लोहरदगा के नदिया स्कूल में रह कर पढ़ाई करते थे. परिवारवाले बताते हैं कि जब वे स्कूल पहुंचे तो बिरसा कहीं दिखाई नहीं दिए. उसके दोस्तों से पूछने पर दोस्तों ने भी जानकारी नहीं होने की बात कही. एक दिन लोहरदगा में इंतजार करने के बाद दूसरे दिन उनके माता-पिता को यह पता चला कि फुटबॉल खेलने के दौरान फौज में भर्ती करने के लिए बिरसा को चयनित कर लिया गया है और उन्हें दानापुर ले जाया गया है. छह महीने बीत जाने के बाद कठिन प्रशिक्षण लेकर बिरसा वापस गांव पहुंचे और फौज में भर्ती होने की बात घरवालों को बताई.
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शहीद जवान बिरसा उरांव की पत्नी

ये भी पढ़ें- नेट और न ही नेटवर्क...कैसे हो देश के सबसे पिछड़े जिले नूंह में ऑनलाइन पढ़ाई


बिरसा उरांव की उपलब्धियां
शहीद बिरसा उरांव प्रथम बिहार रेजीमेंट में हवलदार के पद पर तैनात थे. जिन्हें विभिन्न सेवाओं के लिए सम्मान दिया गया था, जिनमें शामिल हैं
1. सामान्य सेवा मेडल, नागालैंड- भारत सरकार
2. 9 ईयर लॉन्ग सर्विस मेडल- भारत सरकार
3. सैनिक सुरक्षा मेडल- भारत सरकार
4. ओवरसीज मेडल- संयुक्त राष्ट्र संघ
5. बिहार रेजीमेंट की 50 वीं वर्षगांठ पर स्वतंत्रता मेडल
6. विशिष्ट सेवा मेडल ( मरणोपरांत ) भारत सरकार

विशेष योगदान क्षेत्र

1. ऑपरेशन ओचार्ड ( नागालैंड ) 1983-86
2. ऑपरेशन रकक्ष ( पंजाब ) 1992
3. यूएनओ ( दक्षिण अफ्रीका ) 1993-94
4. ऑपरेशन राइनो ( असम ) 1996
5. ऑपरेशन विजय ( कारगिल ) 1999

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शहीद जवान बिरसा उरांव का घर
एक सप्ताह बाद पता चलाशहीद बिरसा उरांव की पत्नी मीला उरांव बताती हैं कि उनके पति की शहादत के एक सप्ताह के बाद उनके सास-ससुर ( बिरसा के माता-पिता ) को यह जानकारी हुई कि उनका सपूत अब इस दुनिया में नहीं रहा. उस समय वह अपने दोनों बच्चों को लेकर मायके गई हुई थी. जहां उन्हें अपने पति की शहादत होने की खबर मिली थी. उन्होंने कहा कि उनकी शहादत के बाद सरकार की ओर से उन्हें आर्थिक सहायता के साथ घर बनाने के लिए भी सहायता मिली थी. इसके साथ ही एक गैस एजेंसी मिली है जिसके सहारे ही वह परिवार का पालन पोषण करती हैं. उनके दो बच्चे हैं, जिनमें एक बड़ी बेटी जो हाल ही में झारखंड पुलिस में दारोगा के पद पर बहाल हुई हैं और बेटा अभी पढ़ाई कर रहा है. शहीद की पत्नी ने कहा कि वे सरकार से यह मांग करना चाहती हैं कि उनके पति की शहादत को हमेशा लोग याद रख सकें. इसके लिए गांव तक जाने के लिए उनके नाम से एक पक्की सड़क और घाघरा प्रखंड के गम्हरिया में एक उनके नाम से तोरण द्वार बनाया जाए.

गुमला: झारखंड राज्य के गुमला जिला के सिसई प्रखंड क्षेत्र से आने वाले एक छोटे से गांव बर्री जतराटोली गांव में 12 अक्टूबर 1965 को बुदू उरांव के घर पर बिरसा उरांव नाम के एक लड़के ने जन्म लिया. जो भरी जवानी में देश की रक्षा के लिए 1999 में पाकिस्तान से कारगिल युद्ध लड़ते हुए शहीद हो गए. बिरसा उरांव फौज में रहते हुए अपने कर्तव्य निष्ठा के कारण ही साधारण सिपाही से आगे कदम बढ़ाते हुए भारतीय सेना में नायक फिर हवलदार के पद को प्राप्त किया था.

देखें स्पेशल स्टोरी
परिवारवालों को बताए बगैर पढ़ाई के दौरान ही हो गए थे फौज में शामिल परिवारवाले बताते हैं कि 1983 में मैट्रिक पास करने से पूर्व ही बिरसा को बिहार रेजीमेंट कैंट की ओर से चयनित कर प्रशिक्षण के लिए दानापुर ले जाया गया. जिसकी जानकारी न तो बिरसा के परिवारवालों को थी और न ही दोस्तों को. उनके माता-पिता बिरसा से मिलने लोहरदगा गए हुए थे. उस समय बिरसा लोहरदगा के नदिया स्कूल में रह कर पढ़ाई करते थे. परिवारवाले बताते हैं कि जब वे स्कूल पहुंचे तो बिरसा कहीं दिखाई नहीं दिए. उसके दोस्तों से पूछने पर दोस्तों ने भी जानकारी नहीं होने की बात कही. एक दिन लोहरदगा में इंतजार करने के बाद दूसरे दिन उनके माता-पिता को यह पता चला कि फुटबॉल खेलने के दौरान फौज में भर्ती करने के लिए बिरसा को चयनित कर लिया गया है और उन्हें दानापुर ले जाया गया है. छह महीने बीत जाने के बाद कठिन प्रशिक्षण लेकर बिरसा वापस गांव पहुंचे और फौज में भर्ती होने की बात घरवालों को बताई.
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शहीद जवान बिरसा उरांव की पत्नी

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बिरसा उरांव की उपलब्धियां
शहीद बिरसा उरांव प्रथम बिहार रेजीमेंट में हवलदार के पद पर तैनात थे. जिन्हें विभिन्न सेवाओं के लिए सम्मान दिया गया था, जिनमें शामिल हैं
1. सामान्य सेवा मेडल, नागालैंड- भारत सरकार
2. 9 ईयर लॉन्ग सर्विस मेडल- भारत सरकार
3. सैनिक सुरक्षा मेडल- भारत सरकार
4. ओवरसीज मेडल- संयुक्त राष्ट्र संघ
5. बिहार रेजीमेंट की 50 वीं वर्षगांठ पर स्वतंत्रता मेडल
6. विशिष्ट सेवा मेडल ( मरणोपरांत ) भारत सरकार

विशेष योगदान क्षेत्र

1. ऑपरेशन ओचार्ड ( नागालैंड ) 1983-86
2. ऑपरेशन रकक्ष ( पंजाब ) 1992
3. यूएनओ ( दक्षिण अफ्रीका ) 1993-94
4. ऑपरेशन राइनो ( असम ) 1996
5. ऑपरेशन विजय ( कारगिल ) 1999

Kargil vijay diwas 2020, Kargil vijay diwas, Martyred jawan birsa oraon in Kargil, birsa oraon of Gumla was martyred in Kargil, कारगिल विजय दिवस 2020, कारगिल विजय दिवस की खबरें, कारगिल में शहीद जवान बिरसा उरांव, कारिगल में शहीद हुए गुमला के बिरसा उरांव
शहीद जवान बिरसा उरांव का घर
एक सप्ताह बाद पता चलाशहीद बिरसा उरांव की पत्नी मीला उरांव बताती हैं कि उनके पति की शहादत के एक सप्ताह के बाद उनके सास-ससुर ( बिरसा के माता-पिता ) को यह जानकारी हुई कि उनका सपूत अब इस दुनिया में नहीं रहा. उस समय वह अपने दोनों बच्चों को लेकर मायके गई हुई थी. जहां उन्हें अपने पति की शहादत होने की खबर मिली थी. उन्होंने कहा कि उनकी शहादत के बाद सरकार की ओर से उन्हें आर्थिक सहायता के साथ घर बनाने के लिए भी सहायता मिली थी. इसके साथ ही एक गैस एजेंसी मिली है जिसके सहारे ही वह परिवार का पालन पोषण करती हैं. उनके दो बच्चे हैं, जिनमें एक बड़ी बेटी जो हाल ही में झारखंड पुलिस में दारोगा के पद पर बहाल हुई हैं और बेटा अभी पढ़ाई कर रहा है. शहीद की पत्नी ने कहा कि वे सरकार से यह मांग करना चाहती हैं कि उनके पति की शहादत को हमेशा लोग याद रख सकें. इसके लिए गांव तक जाने के लिए उनके नाम से एक पक्की सड़क और घाघरा प्रखंड के गम्हरिया में एक उनके नाम से तोरण द्वार बनाया जाए.
Last Updated : Jul 26, 2020, 5:01 AM IST
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