गुमला: वर्षों बाद भगवान श्री राम की जन्मभूमि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का सपना पूरा हो रहा है. पूरे भारतवर्ष में श्री राम मंदिर को लेकर सनातन धर्म में हर्ष और उल्लास देखा जा रहा है. वैसे भगवान श्री राम के सबसे बड़े भक्त हनुमान को माना गया है. मान्यता है कि हनुमान जी का जन्म गुमला जिला में स्थित आंजन पहाड़ पर हुआ था. अब जब राम जन्मभूमि में श्री राम मंदिर निर्माण के लिए शिलान्यास होना है तो राम भक्त हनुमान की जन्म स्थली गुमला जिला में हनुमान भक्तों में खुशी की लहर है. गुमला जिलावासियों और बजरंग दल के लोग श्री राम मंदिर के शिलान्यास के दिन हनुमान की जन्म स्थली आंजन में भी विशेष पूजा अर्चना की तैयारी में जुटे हैं.
माता अंजनी के नाम से ही पड़ा गांव का नाम, आंजन
मूर्ति को सुरक्षा की दृष्टि से वर्षों पूर्व गांव में स्थित मंदिर में प्रतिस्थापित की गई है. उन्होंने बताया कि जनजातीय जनश्रुति के अनुसार मान्यता है कि आंजन गांव का नाम माता अंजनी के नाम से ही पड़ा है. इस गांव में आज भी सैकड़ों शिवलिंग जहां-तहां बिखरे पड़े हैं, जबकि कई भूमिगत हैं. बताया जाता है कि इस गांव के आसपास 360 तालाब, 360 शिवलिंग और 360 महुआ के पेड़ हुआ करते थे. जिसमें माता अंजनी प्रतिदिन एक महुआ की पेड़ से दतवन कर, एक तालाब में स्नान करतीं और एक शिवलिंग में जल अर्पण करती थीं.
खुद को हनुमान का वंशज मानते हैं यहां के लोग
यहां की उरांव जनजाति खुद को हनुमान का वंशज मानते हैं. उरांव जाति अपने गोत्र में तिग्गा लिखते हैं, तिग्गा का अर्थ होता है वानर. जनजाति यह मानते हैं कि राम रावण के बीच जब युद्ध हुआ था उस समय उरांव जनजाति सैनिक के रूप में भाग लिए थे. इसी तरीके से उरांव जनजाति में एक और बात है जैसे कि भगवान श्री राम के पितामह अज थे. उसी तरह उरांव जनजाति अपने दादा को आजा बोलते हैं. इसी तरह संथाल परगना में भी संथाल हो जनजाति है, जो अपने उपनाम में बानरा शब्द का प्रयोग करते हैं. यह जाति भी अपने आप को हनुमान जी का वंशज मानती है. हनुमान जी केवल भगवान स्वरूप के रूप में प्रतिस्थापित नहीं हैं, बल्कि हनुमान जी को यहां के लोग अपना रिश्तेदार भी मानते हैं. यहां तक कि जनजाति जो अपनी उपचार पद्धति अपनाते हैं, उसमें भी सबसे पहले हनुमान जी का ही आह्वान करते हैं. यही वजह है कि झारखंड में अगर कोई सबसे बड़ा त्यौहार के रूप में है, तो वह रामनवमी का त्यौहार है. यहां ऐसा कोई घर नहीं होता, जहां महावीरी पताका न लहराता हो.
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अंजनी को दिया गया था श्राप
वहीं, मंदिर के पुजारी ने बताया कि माता अंजनी को यह श्राप मिला था कि वे बिन ब्याही मां बनेंगी. जिसके कारण वह इस अनजान पर्वत में आकर रहने लगी थी. जिसके कारण ही इस पर्वत का नाम आंजन पड़ा और फिर वर्षों बाद जब यहां आबादी बढ़ी तो इस गांव को आंजन गांव से जाना जाने लगा. मंदिर के पुजारी ने बताया कि माता अंजनी के दरबार में आकर जो भी सच्चे मन से मन्नत मांगता है, उनकी मन्नत जरूर पूरी होती है.