गुमला: एसटी आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष और एकीकृत बिहार में योजना मंत्री रहे कांग्रेस नेता बंदी उरांव का बुधवार को उनके पैतृक गांव गुमला के दतिया बसाइर टोली में राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया. इस मौके पर सैकड़ों लोगों ने नम आंखों से उन्हें अंतिम विदाई दी.
यह भी पढ़ें: बीजापुर की तरह 9 साल पहले बूढ़ापहाड़ में भी माओवादियों ने किया था जवान का अपहरण, जानें कैसे हुई थी रिहाई
बंदी उरांव के एक दर्शन को उमड़ा हुजूम
झारखंड के महान आदिवासी नेता स्व. कार्तिक उरांव की प्रेरणा से सरकारी नौकरी छोड़ कर राजनीति में आए बंदी उरांव सिसई से चार बार विधायक रहे. जैसे ही उनका पार्थिव शरीर दतिया बसाइर टोली गांव पहुंचा उनके अंतिम दर्शन के लिए लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा.
बंदी उरांव ने जहां ग्राम सभा की अवधारणा का सृजन किया. वहीं दूसरी ओर पेसा कानून को लेकर लंबा संघर्ष भी किया था. भूरिया कमेटी के सदस्य के रूप में उरांव ब्रह्मदेव शर्मा के साथ मिल कर पूरे राज्य का सघन भ्रमण करते हुए आदिवासी समाज के हितों व अधिकार के लिए लोगों को जागरूक किया.
सिसई से चार बार विधायक रहे बंदी उरांव
आदिवासी रीति रिवाज से 3.30 बजे कब्र स्थल पर लाया गया. कब्र स्थल पर ही प्रार्थना कर उनकी जीवन और उपलब्धियों पर प्रकाश डालते हुए उनकी जीवन से प्रेरणा लेने की बात कही गई और एक मिनट का मौन धारण कर दिवंगत आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना किया गया. 4 बजकर 15 मिनट पर उन्हें दफनाया गया. बंदी उरांव के बेटे ने कहा कि वे कांग्रेस के एक महान नेता थे. उन्होंने लोगों की सेवा के लिए सरकारी नौकरी का परित्याग कर 1980 में राजनीति में कदम रखा और काफी उपलब्धियां हासिल की. उन्हें राजनीति में लाने में सबसे बड़ा श्रेय कार्तिक बाबू को जाता है. उन्हीं के मार्गदर्शन पर वे सिसई विधानसभा से चार बार विधयक बने और एकीकृत बिहार में मंत्री भी बने.