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गोड्डाः छठ आते ही कझिया नदी की तलाश शुरू, अस्तित्व पर संकट के बादल - गोड्डा में कझिया नदी

गोड्डा में छठ पर्व आते ही कझिया नदी की तलाश शुरू हो गई है, जो चुनौतीपूर्ण है. कई संगठन के लोग इस कार्य में लगे हुए हैं. कझिया गोड्डा की एकमात्र नदी ही नहीं है, बल्कि संस्कृति और अतीत की एक अमूल्य धरोहर है, जिसके होने का गर्व हर गोड्डावासियों को हुआ करता था, लेकिन आज कझिया नदी विलुप्त होने के कगार पर है.

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कझिया की तलाश शुरू
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Published : Nov 19, 2020, 12:22 PM IST

गोड्डा: जिला में की कझिया नदी को तलाशने की मुहिम कुछ समाजिक संगठनों ने शुरू कर दी है. जब जब आस्था का महापर्व छठ आता है गोड्डावासियों को कझिया नदी का हालात रुलाता है. कझिया कभी पूरे शहर को सालभर पीने का पानी मुहैया कराती थी. आज नदी का अस्तित्व संकट में पड़ गया है. कई बार कझिया नदी को पोकलेन से तलाश कर निकाला जाता है और यह कार्य नगर परिषद सिर्फ छठ के मौके पर करती है. इस बार भी नदी को तलाशने का कार्य जारी कर दिया गया है, जो एक चुनौती है.

देखें पूरी खबर
कझिया गोड्डा की एकमात्र नदी ही नहीं है, बल्कि संस्कृति और अतीत की एक अमूल्य धरोहर है, जिसके होने का गर्व हर गोड्डावासिओं को हुआ करता था. इसके होने मात्र से लगता था की गोड्डा को कभी प्यासा रहना नहीं पडेगा. ये नदी सालोंभर सिंचाई के लिए किसानों को पानी उप्लब्ध कराता था, लेकिन आज नदी कहां है ये भी पता नहीं चल पा रहा है. छठ का त्योहार बिहार और झारखंड में उत्साह के साथ मनाई जाती है. कझिया नदी भी बिहार और झारखंड दोनों राज्यों में बहती है, लेकिन आज यह नदी विलुप्त होने के कगार पर है. कझिया बिहार के बांका में जाकर गेरुआ नदी मे मिलती है.

इसे भी पढे़ं:- गिरिडीह में महापर्व छठ की धूम, गुरुवार से सूर्य मंदिर में धार्मिक अनुष्ठान

सरकार की गलत नीतियों के कारण कझिया नदी से जगह-जगह बालू की नीलामी की गई और इस प्रकार बड़े पैमाने पर नदी का दोहन हुआ. आज भी हर दिन हजारों सैकड़ों ट्रक बालू कझिया नदी से उठाई जाती है. वहीं पूरे शहर का कचरा भी इसी नदी में डंप किया जाता है. इस ओर प्रशासन की कोई पहल नहीं है. आज कझिया नदी नाले में तब्दील हो गई है.

गोड्डा: जिला में की कझिया नदी को तलाशने की मुहिम कुछ समाजिक संगठनों ने शुरू कर दी है. जब जब आस्था का महापर्व छठ आता है गोड्डावासियों को कझिया नदी का हालात रुलाता है. कझिया कभी पूरे शहर को सालभर पीने का पानी मुहैया कराती थी. आज नदी का अस्तित्व संकट में पड़ गया है. कई बार कझिया नदी को पोकलेन से तलाश कर निकाला जाता है और यह कार्य नगर परिषद सिर्फ छठ के मौके पर करती है. इस बार भी नदी को तलाशने का कार्य जारी कर दिया गया है, जो एक चुनौती है.

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कझिया गोड्डा की एकमात्र नदी ही नहीं है, बल्कि संस्कृति और अतीत की एक अमूल्य धरोहर है, जिसके होने का गर्व हर गोड्डावासिओं को हुआ करता था. इसके होने मात्र से लगता था की गोड्डा को कभी प्यासा रहना नहीं पडेगा. ये नदी सालोंभर सिंचाई के लिए किसानों को पानी उप्लब्ध कराता था, लेकिन आज नदी कहां है ये भी पता नहीं चल पा रहा है. छठ का त्योहार बिहार और झारखंड में उत्साह के साथ मनाई जाती है. कझिया नदी भी बिहार और झारखंड दोनों राज्यों में बहती है, लेकिन आज यह नदी विलुप्त होने के कगार पर है. कझिया बिहार के बांका में जाकर गेरुआ नदी मे मिलती है.

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