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गोड्डा के नूनबट्टा गांव से कोई पलायन नहीं करता, सब्जी की खेती के बल पर दूसरे गांवों के लोगों को भी दे रहे रोजगार - नूनबट्टा गांव से पलायन नहीं होता

गोड्डा के नूनबट्टा गांव के लोग सब्जी की खेती को अपनाकर अपनी तकदीर बदलने लगे हैं. खेती से ठीक-ठाक जीविकोपार्जन होने से गांव से कोई रोजगार के लिए पलायन नहीं करता. हालांकि यहां के लोग उपज की सही कीमत न मिलने से परेशान हैं.

vegetable farming in noonbatta
नूनबट्टा गांव में सब्जी की खेती
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Published : Jul 18, 2020, 2:40 PM IST

गोड्डाः जहां देश में रोजगार के लिए लोगों का दूसरे राज्यों में जाना आम बात है, वहीं गोड्डा जिले के नूनबट्टा गांव से कोई पलायन नहीं करता. यहां के लोग सब्जी की खेती के बल पर गांव में रहकर न केवल खुद जीविकोपार्जन कर रहे हैं बल्कि दूसरे गांवों के लोगों को भी रोजगार मुहैया करा रहे हैं.

गोड्डा जिला मुख्यालय से दस किलोमीटर दूरी पर बसे गांव नूनबट्टा में करीब 75 परिवार रहते हैं. इनमें से ज्यादातर महतो परिवार हैं. ये परिवार परंपरागत रूप खेती से जुड़े थे पर हाल के दिनों में यहां के किसानों ने सब्जी की खेती और आधुनिक तरीकों को अपनाया. इससे गांव की सूरत ही बदल गई. अब पूरे गांव में सीजनल सब्जी भिंडी, करैला, कद्दू, बोड़ा, कोकड़ी, झिंगली, परवल, परोल की फसल लहलहाती रहती है. इससे ठीक-ठाक आमदनी होने से अब कोई रोजगार के लिए नहीं भटकता. कोरोना के चलते जब देश भर में लोगों का रोजगार छिना है, यहां के लोग इस परेशानी से मुक्त हैं.

ये भी पढ़ें-रांची: ब्लॉक स्तर पर नहीं मिल रहा है किसानों को सुविधा, धान की खेती में हो रही है परेशानी

पश्चिम बंगाल तक जाती है यहां की सब्जी

नूनबट्टा गांव की हरी सब्जी से गोड्डा जिले के सभी बाजार तो भरे ही रहते हैं. यहां की सब्जी व्यापारियों के जरिये पड़ोसी जिलों और पड़ोसी राज्यों बिहार में भागलपुर से पश्चिम बंगाल तक पहुंचती है. सब्जी की खेती से गांव के किसानों की माली हालत तो सुधरी ही, ये दूसरे गांवों के लोगों को भी छोटे-मोटे काम देने में सफल हो रहे हैं.

नूनबट्टा गांव में सब्जी की खेती

कोल्ड स्टोरेज और फूड प्रोसेसिंग प्लांट की जरूरत

गांव के किसानों का कहना है कि वे खेती से जीविकोपार्जन कर रहे हैं पर उनको उचित कीमत मिले इसकी कोई व्यवस्था नहीं है. अभी 10 हजार की लागत पर वे करीब 20 हजार रुपये कमाते हैं जो उनका मेहनत के लिहाज से कम है. इनका कहना है कि वे हरी सब्जी को अधिक दिन रोककर रख नहीं सकते, इससे उपज को औने-पौने दाम में बेचने के लिए मजबूर हैं. अगर आस-पास कोल्ड स्टोरेज या फूड प्रोसेसिंग प्लांट लग जाए तो उनके काम को सम्मान मिलने लगे.

सरकार के साथ की दरकार

रोजगार के नाम पर जहां बड़ी कंपनियां सरकार से तमाम तरह की रियायत हासिल कर लेती हैं. वहीं इन प्रगतिशील किसानों की सरकार ने अभी तक सुधि नहीं ली है. इन्हें किसी प्रकार की सरकारी सहायता नहीं मिलती. अगर सरकार से मदद मिले तो यहां के लोग तरक्की के और रास्ते खोल सकते हैं.

गोड्डाः जहां देश में रोजगार के लिए लोगों का दूसरे राज्यों में जाना आम बात है, वहीं गोड्डा जिले के नूनबट्टा गांव से कोई पलायन नहीं करता. यहां के लोग सब्जी की खेती के बल पर गांव में रहकर न केवल खुद जीविकोपार्जन कर रहे हैं बल्कि दूसरे गांवों के लोगों को भी रोजगार मुहैया करा रहे हैं.

गोड्डा जिला मुख्यालय से दस किलोमीटर दूरी पर बसे गांव नूनबट्टा में करीब 75 परिवार रहते हैं. इनमें से ज्यादातर महतो परिवार हैं. ये परिवार परंपरागत रूप खेती से जुड़े थे पर हाल के दिनों में यहां के किसानों ने सब्जी की खेती और आधुनिक तरीकों को अपनाया. इससे गांव की सूरत ही बदल गई. अब पूरे गांव में सीजनल सब्जी भिंडी, करैला, कद्दू, बोड़ा, कोकड़ी, झिंगली, परवल, परोल की फसल लहलहाती रहती है. इससे ठीक-ठाक आमदनी होने से अब कोई रोजगार के लिए नहीं भटकता. कोरोना के चलते जब देश भर में लोगों का रोजगार छिना है, यहां के लोग इस परेशानी से मुक्त हैं.

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पश्चिम बंगाल तक जाती है यहां की सब्जी

नूनबट्टा गांव की हरी सब्जी से गोड्डा जिले के सभी बाजार तो भरे ही रहते हैं. यहां की सब्जी व्यापारियों के जरिये पड़ोसी जिलों और पड़ोसी राज्यों बिहार में भागलपुर से पश्चिम बंगाल तक पहुंचती है. सब्जी की खेती से गांव के किसानों की माली हालत तो सुधरी ही, ये दूसरे गांवों के लोगों को भी छोटे-मोटे काम देने में सफल हो रहे हैं.

नूनबट्टा गांव में सब्जी की खेती

कोल्ड स्टोरेज और फूड प्रोसेसिंग प्लांट की जरूरत

गांव के किसानों का कहना है कि वे खेती से जीविकोपार्जन कर रहे हैं पर उनको उचित कीमत मिले इसकी कोई व्यवस्था नहीं है. अभी 10 हजार की लागत पर वे करीब 20 हजार रुपये कमाते हैं जो उनका मेहनत के लिहाज से कम है. इनका कहना है कि वे हरी सब्जी को अधिक दिन रोककर रख नहीं सकते, इससे उपज को औने-पौने दाम में बेचने के लिए मजबूर हैं. अगर आस-पास कोल्ड स्टोरेज या फूड प्रोसेसिंग प्लांट लग जाए तो उनके काम को सम्मान मिलने लगे.

सरकार के साथ की दरकार

रोजगार के नाम पर जहां बड़ी कंपनियां सरकार से तमाम तरह की रियायत हासिल कर लेती हैं. वहीं इन प्रगतिशील किसानों की सरकार ने अभी तक सुधि नहीं ली है. इन्हें किसी प्रकार की सरकारी सहायता नहीं मिलती. अगर सरकार से मदद मिले तो यहां के लोग तरक्की के और रास्ते खोल सकते हैं.

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