गोड्डा: ECL राजमहल परियोजना ललमटिया के मनमाने रवैये से तंग आकर हिजुकीता के भूविस्थापित ग्रामीण भूख हड़ताल पर बैठ गए हैं. ग्रामीणों ने ईसीएल प्रबंधन पर वादा खिलाफी का आरोप लगाया है.
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गौरतलब हो कि ग्रामीणों की जमीन चालीस साल पहले कोयला उत्खनन के लिए ली गयी थी. जिसके बाद इस गांव में राजमहल परियोजना की शुरुआत हुई, लेकिन वादे के मुताबिक उन्हें पुनर्वासित नहीं किया गया. हिजुकीता के ग्रामीणों को ईसीएल परियोजना क्षेत्र में नवोदय विद्यालय के पास एक प्लॉट मेंशन कर दिया गया. लेकिन, वहां भूविस्थापितों को प्रत्येक परिवार के हिसाब से जमीन आवंटित नहीं किया गया. पुनर्वास नियम के तहत प्रबंधन को वो सारी सुविधाएं उपलब्ध करानी होती है, जो एक व्यवस्थित कॉलोनी के लिए अनिवार्य है. इसके तहत पूजा घर, मैदान, तालाब, पार्किंग आदि सभी चीजें हैं. लेकिन इनमें से किसी भी सुविधा की व्यवस्था निर्धारित स्थल पर नहीं है.
खनन पूरा होने के बावजूद नहीं लौटाई जा रही जमीन: इतना ही नहीं ग्रामीणों का कहना है कि उनकी जमीन के एवज में जितने लोगों को एलएलटी के तहत रोजगार मिलने थे, वो भी नहीं मिले और तो और उनकी जमीन के एवज में बाहर के लोगों को नौकरी दे दी गई. जो जमीन उन्होंने ईसीएल प्रबंधन को दिया, उसमें खनन का कार्य पूरा हो गया है. ऐसे में कानूनी प्रावधान के तहत वैसी जमीन जिनमें खनन पूरा हो गया है, उसके गड्ढे को भरकर पुनः रैयतों को जमीन वापस करने का अदालती आदेश है. लेकिन, ईसीएल प्रबंधन को इन सारी चीजों से कोई लेना देना नहीं है. क्योंकि इस जमीन से कोयला निकाला जा चुका है, ऐसे में प्रबंधन इन ग्रामीणों से बात तक नहीं करती.
ईसीएल प्रबंधन कुछ भी बोलने को तैयार नहीं: प्रबंधन अब नई जमीन की तलाश कर रही है, लेकिन पुराने अनुभवों के कारण लोग भूमि देने को तैयार नहीं हो रहे हैं. वहीं ग्रामीणों का कहना है कि एक तो पुनर्वास नहीं किया, वहीं जहां वे रह रहे हैं, उनके उस जगह पर अन्य लोगों को बसाया जा रहा है. इससे उनका सामाजिक समीकरण भी ध्वस्त हो रहा है. इस कारण उनके पास आंदोलन के सिवा कोई दूसरा विकल्प नहीं बचता है. वहीं इस बारे में जब ईसीएल प्रबंधन के महाप्रबंधक रमेश चंद्र महापात्रा से उनका पक्ष जानने की कोशिश की गई तो वो कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हुए. वहीं कंपनी पीआरओ मि.प्रधान ने फोन रिसीव करना जरूरी नहीं समझा.