गोड्डाः ये गोड्डा है मेरी जान, यहां की चाल-ढाल और अंदाज थोड़ा जुदा है. संथाल में होते हुए भी यहां की आब-ओ-हवा में ठेठ बिहारी अंदाज देखा जा सकता है. यही कारण है कि संथाल परगना का ये एक मात्र लोकसभा सीट ऐसी है, जो जनरल है. शेष दो संथाल प्रमंडल में आने वाले लोकसभा क्षेत्र दुमका और राजमहल की सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है. इतना ही नहीं वर्तमान में यहां के सांसद भी बिहार के भागलपुर जिले के निवासी भी हैं.
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आज ही दिन बना था गोड्डा जिला
आज का दिन गोड्डा के लिए खास है. आज गोड्डा का बर्थ-डे है. 25 मई 1983 को गोड्डा जिला का जन्म हुआ. तत्कालीन मुख्यमंत्री जरनाथ मिश्र ने गोड्डा के लोगों को अलग जिला बना कर एक सौगात दी. जिसे दुमका जिला से अलग कर बनाया गया. इस लिहाज से गोड्डा जिले ने 38 साल पूरे कर लिए हैं. गोड्डावासी जो खुद को गंवई अंदाज में गोडेसियन कहलाने में फक्र महसूस करते हैं. 38 साल में गोड्डा ने कई ऊंचाइयों को छुआ है. काफी कुछ अब करना शेष रह गया है.
![godda-district-turned-38-years-old](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/11893666_vlcsnap.png)
गोड्डा में है एशिया की सबसे बड़ी ओपन कास्ट माइंस
आज गोड्डा को अपना कलेक्टोरिएट से लेकर सदर अस्पताल है. बड़े-बड़े मॉल शो-रूम शहर वाली फीलिंग्स देती है. जिले में गोड्डा के अलावा महगामा नया अनुमंडल बन गया है. जहां एशिया की सबसे बड़ी ओपन कास्ट माइंस की ECL राजमहल परियोजना है. अडानी पावर प्लांट और जिंदल कम्पनी ने गोड्डा में पांव टिकाए हुए है.
पलायन का दर्द झेल रहा गोड्डा
आज भी पलायन गोड्डा के लिए श्राप जैसा है. देश हर राज्यों में यहां के लोग रोजी-रोटी की तलाश में आते देखे जा सकते हैं. पिछले लॉकडाउन में तो वापसी करने वालों की संख्या 50 हजार तक पहुंच गयी थी. जहां रोजगार की संभावनाएं हैं, उस ओर समुचित ध्यान नहीं दिया जाना, एक बड़ी समस्या है. मसलन कृषि को सशक्त बनाने की जरूरत है, जहां कुछ समय के लिए रोजगार होते हैं, पर इसे बेहतर प्रबंधन और कृषि आधारित उद्योग लगाकर रोजगार के अवसर सृजित किए जा सकते हैं.
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आदिवासी और कृषि बहुल इलाका है गोड्डा
गोड्डा जिले के दो प्रखंड सुंदरपहाड़ी और बोआरीजोर आदिवासी बहुल वाला इलाका है. जहां अब-भी जिंदगी प्रकृति के सहारे पहाड़ों और जंगलों बीच रहती है. उन तक सुविधाओं का बहुत छोटा हिस्सा ही पहुंच पाया है. गोड्डा, पोड़ैयाहाट, पथरगामा, महगामा, बसंतराय, मेहरमा और ठाकुरगंगटी की जीवन शैली बिहार की सीमा को छूती है. यहां आज भी मुख्य रूप से खेती धान की खेती होती है. खाने को लेकर यहां कहावत है 'भात मिल गया, तो दिन कट गया'. इसके अलावा कुछ खास घरों चावल को पीस कर बगिया बनाया जाता है. यहां पिट्ठा या फिर लिट्टी चोखा भी बहुत से चाव से खाया जाता है.
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लोगों को गोड्डा में ही रोजगार की उम्मीद
गोड्डा का क्षेत्रफल 2110 वर्ग किमी है. यहां की आबादी 13 लाख से ज्यादा है, लेकिन जिले में रोजगार की कमी है जिसके कारण लोग बिहार, दिल्ली, गुजरात, पंजाब, केरल या कर्नाटक पलायन कर जाते हैं.