गोड्डाः जिले के राजमहल कोल परियोजना को शुरू हुए चार दशक हो चुके हैं, लेकिन इतने दिनों बाद भी उस पहले गांव का पुनर्वास अब तक ईसीएल प्रबंधन नही करा पायी है, जिसे सबसे पहले विस्थापित किया गया था. यह गांव है हिजुकिता. इस गांव के ग्रामीणों को ललमटिया में नवोदय स्कूल के पास भू-आवंटित कर दिया गया. लेकिन शर्तों के मुताबिक अन्य किसी भी चीज की व्यवस्था नहीं की. आज भी हिजुकिता गांव के विस्थापित परिवार अपने पुनर्वास के लिए संघर्षरत हैं.
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इतना ही नहीं अब ईसीएल प्रबंधन के द्वारा इस गांव को लोगों को वहां से भी बेदखल किया जा रहा है, जहा वो रह रहे हैं. ग्रामीणों का कहना है कि ईसीएल प्रबंधन ने 30-40 साल बीत जाने के बाद भी हमारा पुनर्वास नहीं किया और हम जहा रह रहे हैं, उस जगह को बेतरतीब ढंग से उजाड़ कर बसाया जा रहा है. उसमें भी इस बात का ख्याल नहीं रखा जा रहा है कि आस पास का सांस्कृतिक सामंजस्य बना रहे.
ग्रामीणों का कहना कि सभी जाति धर्म के लोगों को बसाया जाय, जिससे आपसी सौहार्द्र का माहौल बना रहे. इसे लेकर ग्रामीण धरने पर हैं. अब सवाल यह है कि इतने लंबे वक्त के बाद भी जब पुनर्वास नहीं पूरा हुआ तो लोग ईसीएल प्रबंधन पर कैसे भरोसा करें. हाल के दिनों में तालझारी के रैयतों ने ईसीएल के भूमि अधिग्रहण का यही कहते हुए विरोध किया था कि पहले के उनके अनुभव बुरे हैं. जब ईसीएल प्रबंधन को जमीन अधिग्रहण करनी होती है तो वे रैयतों की खूब खातिरदारी करते हैं, लेकिन जमीन अधिग्रहण करते ही उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया जाता है. आए दिन नए भूमि अधिग्रहण का रैयत विरोध करते हैं. जबकि हिज़ुकिता का रवैया ईसीएल की जमीन दाताओं के उपेक्षा पूर्ण रवैये को दिखाता. क्योंकि पहली बार यहीं से कोयला निकला और इन्हें ही अभी तक पुनर्वासित नहीं किया गया है. ऐसे में लोग ईसीएल प्रबंधन पर क्यो भरोसा करे.