गिरिडीहः फर्जी कागजात के सहारे जाति प्रमाण पत्र बनाकर आरक्षण का लाभ लेने के आरोपों से घिरे गिरिडीह नगर निगम के मेयर सुनील कुमार पासवान की सदस्यता रद्द कर दी गयी है. नगर विकास एवं आवास विभाग ने इसे लेकर आदेश जारी कर दिया गया है. झारखंड राज्यपाल के आदेश से सरकार के सचिव विनय कुमार चौबे द्वारा जारी किए गए पत्र में इस कार्रवाई के पीछे गलत कागजातों के सहारे जाति प्रमाण पत्र प्राप्त करने को कारण बताया गया है.
क्या कहा गया है पत्र में
पत्र में कहा गया है कि गिरिडीह के महापौर के पद पर सुनील कुमार पासवान का निर्वाचन वर्ष 2018 में हुआ था. इस बीच डीसी गिरिडीह के पत्रांक 770 दिनांक 02 दिसम्बर 2019 को प्रतिवेदित किया गया कि सुनील कुमार पासवान ग्राम शीतलपुर, सिरसिया के नाम से निर्गत अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र को जाति छानबीन समिति द्वारा उपर्युक्त अंकित मूल निवास स्थान प्रमाणित नहीं होने के कारण रद्द कर दिया गया.
डीसी के प्रतिवेदन के आलोक में झारखंड नगरपालिक निर्वाचित प्रतिनिधि ( अनुशासन एवं अपील) नियमावली 2020 के नियम 4.7 के प्रावधानों के अंर्तगत सुनील कुमार पासवान के विरुद्ध उपर्युक्त आरोप एवं उनसे प्राप्त बचाव-बयान की सुनवाई के लिए नगर विकास एवं आवास विभाग के द्वारा 21 सितंबर 2020 को दो सदस्यीय जांच समिति गठित की गयी.
जांच कमेटी द्वारा पासवान के विरुद्ध आरोपों को प्रमाणित करते हुए 21 अक्तूबर 2020 को मामले की अंतिम सुनवाई करते हुए विभाग को अनुशंसित किया गया कि झारखंड नगरपालिक निर्वाचित प्रतिनिधि ( अनुशासन एवं अपील) नियमावली 2020 के नियम 4.12 सहपठित झारखंड नगरपालिक अधिनियम 2011 की धारा - 26 (2) तथा 584 (1) के प्रावधानों के आलोक में सुनील कुमार पासवान को गिरिडीह नगर निगम के महापौर के पद से पद मुक्त की जाए.
क्या है नियम
पत्र में कहा गया है कि झारखंड नगरपालिक निर्वाचित प्रतिनिधि ( अनुशासन एवं अपील) नियमावली 2020 के नियम 3.16 के प्रावधान के अनुसार यदि कोई व्यक्ति अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ा वर्ग या महिलाओं के लिए आरक्षित स्थानों के मामले में, जो यथास्थिति उस जाति या वर्ग का सदस्य या महिला नहीं है या गलत प्रमाण पत्र या मिथ्या साक्ष्य के आधार बनाकर ऐसे ऐसे स्थान के लिए निर्वाचित हो गया हो तो निर्वाचित किसी जनप्रतिनिधि को अयोग्य घोषित करते हुए सदस्यता समाप्त की जा सकती है.
न्यायालय जाएंगे: सुनील
इधर सुनील कुमार पासवान ने कहा कि हाईकोर्ट ने इस मामले पर किसी तरह की कार्रवाई पर रोक लगायी थी इसके बाद भी सरकार ने किसी प्रकार का कदम उठाया है तो यह सोचनीय बात है. वे आगे इस निर्णय के खिलाफ हाईकोर्ट जाएंगे.